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कहते हैं कि राष्ट्र नीति, कूटनीति और सिद्धांतों से कहीं ऊपर होती है दिलों के रिश्ते। इसीलिए देश के पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल की 'लोगों से लोगों के संबंध' की थ्योरी आज भी टिकी है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की पाकिस्तान यात्रा के दौरान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की मां शमीम अख्तर का सुषमा को बेटी कहकर संबोधित करना और दोनों देशों के बीच संबंधों को ठीक करने का वादा लेना इस बात को साबित करने के लिए काफी है।
दो दिन पहले एक अनौपचारिक मुलाकात में सुषमा ने जब अपनी पाकिस्तान यात्रा के कुछ भावनात्मक पल पत्रकारों से शेयर किये तो समझ में आया कि रिश्ते सुधर सकते हैं बशर्ते राष्ट्र नीति और कूटनीति से थोड़ा अलग हटकर हम 'लोगों से लोगों के संबंध' के सिद्धांत को अपनाएं। बकौल सुषमा, हार्ट ऑफ एशिया समिट में 8 दिसंबर को भारत का प्रतिनिधित्व करने इस्लामाबाद गईं भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज आज भी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की मां और बेटी से मुलाकातों के पल को याद कर इतनी भावुक हो जाती हैं कि शरीर में सिरहन पैदा हो जाती हैं और आंखें नम हो जाती हैं। नवाज की मां शमीम अख्तर के प्यार, उनके मिलने का अंदाज और ऊपर से भारत-पाकिस्तान के बीच की वैमनस्यता दूर करने की उनकी बेकरारी ने सुषमा को खासा प्रभावित किया। सुषमा के कथनानुसार, नवाज की बेटी मरियम के स्वभाव ने भी उनका दिल जीत लिया।
सुषमा बताती हैं कि नवाज की मां शमीम का मुझे बेटी कहकर गले लगाने का अंदाज, बार-बार पेशानी चूमने की ख्वाहिश और स्नेह ने बेहद अपनेपन का अहसास कराया। शमीम बार-बार इस लाइन को दुहरा रही थीं, 'बेटी सुषमा! भारत-पाकिस्तान के संबंधों की गाड़ी ठीक करके जाओ। कम से कम इसका वादा तो तुम करके ही जाओ।' सुषमा के मुताबिक, नवाज की मां ने पीएम मोदी द्वारा पिछले साल तोहफे में भेजी गई शॉल को भी याद करते हुए बताया कि जब भी प्रधानमंत्री मोदी मियां नवाज से बात करते हैं, मेरा हाल लेना नहीं भूलते हैं। शमीम अख्तर ने भारत आने की भी ख्वाहिश जाहिर की।
सुषमा ने बताया, 'पाकिस्तान से समग्र वार्ता पर सहमति बनने के बाद जब मैंने नवाज की बेटी मरियम को फोन किया और कहा कि अपनी दादी से कहना सुषमा सब-कुछ ठीक (भारत-पाकिस्तान के संबंध) कर आई है तो मरियम का जवाब था कि आप लोगों की बातचीत के दौरान दादी लगातार टीवी देख रही थी और बोली भी कि देखो! वह आई और सब कुछ ठीक करके जा रही है।
दरअसल, कूटनीति में कई बार साहसिक निर्णय लेने पड़ते हैं और यह निर्णय सिर्फ राष्ट्राध्यक्ष ही ले सकता है। पाकिस्तान के साथ भारी तनाव के बावजूद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने यह साहस दिखाया था। अब निर्णय की डोर मोदी के हाथ में है। अनुभव बताता है कि दोनों देशों की जनता सुख और शांति से रहना चाहती है लेकिन पिछले करीब छह दशक से कश्मीर विवाद को जिन्दा रखकर कुछ राजनैतिक दल और संगठन अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं।
भारत यह अच्छी तरह से जानता है कि पड़ोसी देश में सत्ता का असली केंद्र सेना है। वहां की चुनी हुई जो सरकार है वह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारे के बिना कोई बड़ा कदम नहीं उठा सकती। हमें यह भी पता होना चाहिए कि कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी संगठनों के सिर पर आईएसआई का हाथ है और कुख्यात दाउद इब्राहिम अभी तक आईएसआई की शरण में है। इसके बावजूद मोदी सरकार ने बातचीत को बहाल करने का निर्णय लिया है इसे एक साहसिक कदम कहा जाना चाहिए।
इस काम में अमेरिका जैसा देश भी शामिल है, जो तनाव और असुरक्षा की आड़ में दोनों देशों (भारत-पाकिस्तान) को अरबों डॉलर का हथियार बेचता है। यह बात भी सब जानते हैं कि युद्ध या सेना के बल पर कभी किसी समस्या का स्थाई हल नहीं निकाला जा सकता है। दोनों विश्व युद्ध के बाद भी वार्ता के माध्यम से समझौता हुआ था। भारत-पाक के बीच अब तक चार जंग (कारगिल सहित) हो चुकी हैं, फिर भी कश्मीर की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अगले साल सार्क सम्मलेन में भाग लेने इस्लामाबाद जाना है। इस यात्रा से पहले दोनों देश 2013 से टूटे बातचीत के बंधन को बहाल करना चाहते हैं। यह काम कठिन जरूर है लेकिन असंभव नहीं। शिखर वार्ता से पहले वीजा छूट, व्यापार वृद्धि, सीमा खोलने, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, खेल संबंध जोड़ने जैसे कदम उठाये जा सकते हैं। छोटी-छोटी पहल बड़े समझौते का आधार बन सकती हैं। यह काम जितना पारदर्शी होगा, उसे उतना ही जन-समर्थन मिलेगा।