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साल 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने के बाद से अब तक भारतीय विदेश नीति के मद्देनजर कई अहम कदम उठाए जा चुके हैं। केंद्र में एनडीए शासन के अभी डेढ़ साल से कुछ अधिक समय हुए हैं, मगर इतने कम समय में ही मोदी अमेरिका, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन सरीखे कई ताकतवर देशों अन्य कई देशों का दौरों कर आए हैं। भारतीय विदेश नीति और मोदी के इन विदेशी दौरों के कई महत्वपूर्ण मायने हैं। हाल में देश और दुनिया को चौंकाते हुए मोदी का पाकिस्तान दौरे पर जाना और लाहौर में नवाज शरीफ के निजी कार्यक्रम में शामिल होना, ये भी काफी कुछ दर्शाता है। अफगानिस्तान से लौटते वक्त मोदी अचानक पाकिस्तान चले गए। दोनों देशों के रिश्तों को लेकर इसे मोदी का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। विदेशी दौरों के समय 'मोदी-मोदी' की खूब गूंज रही, मगर यह आने वाला समय बताएगा कि मोदी की इस विदेशी डिप्लोमेसी का भारत का कितना और किस हद तक फायदा मिलता है। तमाम घटनाओं के बीच भी नरेंद्र मोदी के कदम मजबूती से बढ़ते जा रहे हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि दुनिया में भारत को एक नए नजरिये से देखा जाने लगा।
वैसे भी भारतीय विदेश नीति के मोर्चे पर मोदी खुद कितना सक्रिय हैं, यह अब किसी से छिपा नहीं है। एक बात जो स्पष्ट है कि भारत के बेहतर भविष्य को लेकर पीएम के मन में काफी कुछ है। इस बात का परिचय मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में ही दे दिया था, जब उन्होंने तमाम पड़ोसी देशों के राष्ट्राध्यक्षों को इसके लिए आमंत्रित किया था। संभवत: इसके पीछे यह दृष्टिकोण भी हो सकता है कि दक्षिण एशिया में भारत एक सशक्त देश के तौर पर उभरे। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन के अलावा भारत और पाकिस्तान दक्षिण एशिया में महत्त्वपूर्ण देश हैं।
क्रिसमस के दिन अफगानिस्तान से लौटते समय मोदी के लाहौर में रुकने और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से मिलने को इस साल का भारतीय विदेश नीति की सबसे बड़ी पहल करार दिया जा सकता है। भारत-पाक रिश्तों के मद्देनजर यह दिन भारतीय विदेश नीति के इतिहास में संभवत: हमेशा याद रखा जाएगा। अपनी विदेश यात्रा के दौरान किसी भी राष्ट्रप्रमुख का अपने महत्त्वपूर्ण, पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों को दरकिनार कर पड़ोसी देश के प्रघानमंत्री को जन्मदिन की बधाई देने पहुंच जाना, एक बड़ी घटना है। ज्ञात हो कि पाकिस्तान के साथ भारत के तीन युद्ध हो चुके हैं, ऐसे में मोदी की ये पहल वाकई में एक असामान्य घटना है। पिछले एक दशक से अधिक समय से भारत के किसी प्रधानमंत्री ने पड़ोसी होते हुए जिस देश (पाकिस्तान) का दौरा नहीं किया, वहां मोदी का अचानक चले जाना, भारतीय विदेश नीति की एक ऐतिहासिक घटना है। मोदी पहली बार पाकिस्तान की धरती पर गए, वहीं 11 साल बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री पाक गया। बीते कुछ समय से भारत और पाक के बीच नाजुक रिश्तों के साये में पीएम मोदी का यह कदम भी विदेश नीति के मोर्चे पर काफी कुछ बयां करता है।
पाकिस्तान की हाल के यात्रा के अलावा पड़ोसियों से रिश्ते बेहतर करने की मंशा से मोदी चीन की यात्रा पर भी गए। चीन ने भी मोदी के स्वागत में कोई कसर नहीं रखी। पहली बार मोदी के लिए ही चीन के राष्ट्रपति ने राजधानी बीजिंग से बाहर किसी राजकीय अतिथि का स्वागत किया था। पाकिस्तान और चीन के दौरों के समय दुनिया की निगाहें मोदी की ओर ही थी। दुनिया के देशों में दौरा कर मोदी ने भारत का डंका बजाना शुरू किया। मोदी फ्रांस, जर्मनी और कनाडा के दौरे पर भी गए। 42 साल बाद भारत का कोई प्रधानमंत्री कनाडा जैसे देश में गया था, जहां हजारों भारतीय रहते हैं। मोदी के कनाडा दौरे से दोनों देशों के बीच रिश्तों की नई शुरुआत हुई। जिस अमेरिका ने मोदी को कभी वीजा नहीं दिया था उस अमेरिका में साल भर के भीतर मोदी दूसरी बार पहुंचे। एक साल में तीसरी बार उन्होंने यहां राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात की। राष्ट्रपति बराक ओबामा का भारत आना और गणतंत्र दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करना भी विदेश नीति के मामले में भारत के दृष्टिकोण से एक बड़ी घटना थी। इसके बाद तो भारत और अमेरिका के रिश्तों में निरंतर मजबूती ही देखने को मिली है।
एक चीज जो अब साफ नजर आने लगी है, वह यह कि वैश्विक स्तर पर आर्थिक और कूटनीतिक मोर्चे पर भारत को जो स्थान अभी मिल रहा है, वह पहले नहीं था। इन मामलों में भारत की स्थिति बेहतर और मजबूत हुई है। दुनिया भी अब भारत को तवज्जो देने लगा है और प्रमुख वैश्विक कार्यक्रमों में भारत को महत्व देने लगा है। इसका असर यह भी हुआ कि विदेशी ताकतें भारत के साथ संबंधों को अब खासा महत्व देने लगी हैं। मोदी की विदेशी नीति का एक बड़ा लाभ यह भी हुआ कि भारत को सामरिक क्षेत्र में सफलता मिलने लगी हैं।
मोदी की अगुवाई कई देशों के साथ परमाणु कूटनीति, असैन्य परमाणु करार, वैश्विक सौर ऊर्जा गठबंधन में 122 देशों की सहभागिता आदि ऐसे कुछ कदम हैं, जिसने भारत का मान बढ़ाया। जापानी निवेश की सहायता से बुलेट ट्रेन परियोजना समझौता, रूस के साथ रक्षा और परमाणु क्षमता समझौता, भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन की मेजबानी, लीबिया, सीरिया और यमन से भारतीयों को निकालकर स्वदेश लाने आदि प्रमुख घटनाएं यह दर्शाती हैं कि भारत ने कूटनीतिक और विदेशी रिश्तों के मोर्चे पर कितनी बेहतर सफलता अर्जित की है। कांग्रेस व विपक्षी दल भले ही पीएम मोदी के विदेश दौरों पर सवाल उठाते रहे हों और अर्थव्यवस्था से लेकर विदेश मामलों तक हर मोर्चे पर मोदी सरकार को विफल ठहराते रहे हों, लेकिन पीएम की जो मौजूदा नीति है, उसने भारत के बेहतर भविष्य को लेकर एक उम्मीद तो जरूर जगा दी है।
इसमें कोई संशय नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी के विभिन्न देशों के दौरों ने भारतीय कूटनीति को एक नया आयाम दिया है। इसके आर्थिक पहलू भी हैं, जो अब विभिन्न रुपों में नजर भी आने लगे हैं। अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में विदेशी निवेश एक अहम कड़ी है और हाल के कुछ महीनों में भारत को इसमें कुछ बड़ी सफलता भी मिली है। निवेश तो पहले भी आए लेकिन अब दुनिया के कई देशों का भारत के प्रति अधिक झुकाव होना और यहां आकर कई सेक्टरों में निवेश करना भी विदेशी नीति और कूटनीति के मोर्चें पर बड़ी सफलता है। मोदी की अगुवाई में आज जिस प्रकार की वैश्विक कूटनीति का परिचय दिया जा रहा है, उसमें सबकी बेहतरी ही समाहित है।