16 दिसंबर को पूरा देश निर्भया कांड की 5वीं बरसी मनाएगा. दिल्ली में निर्भया के साथ जो दरिंदगी हुई उससे पूरा देश हिल गया, निर्भया के दोषियों को फांसी की सज़ा भी हुई, लेकिन इन पांच सालों में बदला कुछ भी नहीं है.
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नई दिल्ली: 16 दिसंबर को पूरा देश निर्भया कांड की 5वीं बरसी मनाएगा. दिल्ली में निर्भया के साथ जो दरिंदगी हुई उससे पूरा देश हिल गया, निर्भया के दोषियों को फांसी की सज़ा भी हुई, लेकिन इन पांच सालों में बदला कुछ भी नहीं है. निर्भया को जब पूरा देश याद कर रहा होगा ठीक उससे एक हफ़्ते पहले हरियाणा से हिला देने वाली ख़बर आई है. हिसार के अकलाना गांव में 5 साल की बच्ची के साथ बलात्कार और फिर उस मासूम बच्ची के साथ ऐसी दरिंदगी की गई की कलेजा मुंह को आ जाए. 5 साल की मासूम बच्ची से बलात्कार करने के बाद भी बलात्कारी का वहशी मन नहीं भरा उसने मासूम के प्राइवेट पार्ट में 2 फीट लकड़ी डाल दी जिससे बच्ची का गर्भाशय और आंत बुरी तरह ज़ख्मी हुई और नन्ही सी जान की जान निकल गई. ये लिखते वक्त हाथ कांप रहे हैं आखिर कोई इतना निर्दयी, इतना वहशी कैसे हो सकता है. लेकिन ये घटना उतनी ही सच है जितनी निर्भया वाली थी. निर्भया से गैंगरेप के बाद उसके जिस्म में भी सरिया डाला गया था और इस क़दर क्रूरता की गई की शैतान भी शरमा जाए.
दूसरी खबर उत्तरप्रदेश के लखनऊ से है जहां 16 साल की कैंसर पीड़ित लड़की के साथ उसके ही परिचितों ने सामूहिक बलात्कार किया. जब पीड़ित लड़की ने बाइक सवार से मदद मांगी तो उसने भी लड़की के साथ रेप किया. कहा जा रहा है कि बलात्कार करने वाला तीसरा आरोपी 4 बच्चियों का पिता है. दो दिन पहले ही मध्यप्रदेश के सागर में 15 साल की बच्ची को गैंगरेप के बाद ज़िंदा जला दिया गया. 6 दिसंबर को दिल्ली में 8 साल की बच्ची से बलात्कार की खबर आई. और बलात्कार करने का आरोप 87 साल के बुज़ुर्ग पर लगा, जिसे बच्ची की मां ने अपनी बेटी के साथ जबरदस्ती करते देखा. ये सिर्फ़ एक हफ़्ते के अंदर की कुछ घटनाएं हैं. जो हमारे समाज का आइना दिखा रही हैं.
5 साल की मासूम बच्ची के साथ हैवानियत करने वाला इंसान ही है, हमारी आपकी तरह ही है. पुलिस उसे गिरफ्तार भी कर लेगी, शायद कानून कड़ी से कड़ी सज़ा भी दे दे, लेकिन क्या बदल जाएगा इससे. क्योंकि बदलता कुछ नही है ना इस घटना के बाद बदलेगा ना ही निर्भया कांड के बाद कुछ बदला. हम उम्मीद लगा लेते हैं कि बलात्कारियों को फांसी दिए जाने से इस तरह की घटनाएं कम हो जाएंगी, लेकिन हम भूल जाते हैं कि फांसी पर इंसान लड़क सकता है मानसिकता नहीं. आखिर उस मानसिकता को फांसी पर कैसे लटकाएंगे जो डेढ़ साल की बच्ची से लेकर 95 साल की महिला तक का बलात्कार करती है. निर्भया कांड के बाद बड़े आंदोलन हुए लेकिन उसके बाद सबकुछ सामान्य हो गया है. बेटियां गलियां, घरों, बाज़ारों, सड़कों कहीं सुरक्षित नहीं हैं, लेकिन हमें धर्म और राजनीति के नाम पर लड़ने से फुर्सत नहीं है. कोई भी बच्चियों, महिलाओं को लेकर फिक्रमंद नज़र नहीं आता है. हां बलात्कार तब ज्यादा संगीन हो जाता है जब बलात्कारी किसी और जात, धर्म से ताल्लुक रखता हो.
दरअसल औरत को जानवरों से बदतर बना दिया गया है. दिल्ली में निर्भया कांड हुआ तो मीडिया से लेकर देश विदेश में इसकी चर्चा हुई. हज़ारों लोग सड़कों पर उतर आए और फिर एक लंबी खामोशी हो गई. दिल्ली में होने वाली घटना ही सुर्खियां बटोरती है वरना दूर-दराज़ के इलाकों में रोज़ाना कहीं ना कहीं कोई निर्भया दरिंदों का शिकार होती है. हम संजीदा नहीं है महिला सुरक्षा को लेकर हम संजीदा हैं सिर्फ़ दिखावे को लेकर, हम संजीदा हैं सिर्फ़ लड़कियों को घरों में क़ैद करने का लेकर. लेकिन बच्चियां तो घरों में भी सुरक्षित नहीं है.
आख़िर ऐसी कौन सी हवस है जो डेढ़ साल की बच्ची से लेकर 100 साल की बुज़ुर्ग को भी नहीं बख़्शती है. अफ़सोस की बात ये है कि बच्चियों के बलात्कार के मामले में तो थोड़ा बहुत गुस्सा नज़र भी आता है लेकिन जब किसी नौजवान लड़की के साथ बलात्कार होता है तो नसीहतों का दौर शुरु हो जाता है. एक तरह से बलात्कार को जस्टीफाई किया जाता है. कहा जाता है कि लड़की को रात में नहीं निकला चाहिए, लड़की को अकेले नहीं निकलना चाहिए, लड़की को एहतियात बरतने जैसी सलाहें दी जाती हैं. दरअसल इस तरह के बयान बलात्कारियों के, अपराधियों के हौसले बुलंद करते हैं. हमें शर्मिंदा होना चाहिए कि हमारे समाज का हिस्सा इस तरह के बलात्कारी भी हैं. हमें शर्मिंदा होना चाहिए कि हमारे आस-पास इंसान के भेष में भेड़िए जानवर घूम रहे हैं जो किसी को भी अपना शिकार बना सकते हैं. हम बच्चियों को सुरक्षित समाज नहीं दे सकते हैं तो ईश्वर से प्रार्थना है कि वो बच्चियों को इस दुनिया में ही ना भेजे.
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक विषयों पर टिप्पणीकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)