Seeking Death- a boon with a curse के साथ लेखन की दुनिया में कदम रखेंगी Mini Bhardwaj
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Seeking Death- a boon with a curse के साथ लेखन की दुनिया में कदम रखेंगी Mini Bhardwaj

मिनी भारद्वाज ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से अपना ग्रेजुएशन कंप्लीट किया है. Seeking Death- a boon with a curse के साथ मिनी अपना राइटिंग डेब्यू करने जा रही हैं. Seeking Death- a boon with a curse एक इंस्पायर नोबेल है.

Seeking Death- a boon with a curse के साथ लेखन की दुनिया में कदम रखेंगी Mini Bhardwaj

नई दिल्ली: दिल्ली की रहने वाली मिनी भारद्वाज जल्द ही अपना राइटिंग डेब्यू करने जा रही हैं. मिनी भारद्वाज ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से अपना ग्रेजुएशन कंप्लीट किया है. Seeking Death- a boon with a curse के साथ मिनी अपना राइटिंग डेब्यू करने जा रही हैं. Seeking Death- a boon with a curse मिनी भारद्वाज की जिंदगी से इंस्पायर नोबेल है. जो की मार्च या अप्रैल 2021 के बीच लॉन्च होने वाली है.

एक लेखक के तौर पर अपनी जर्नी के बारे में बात करते हुए मिनी भारद्वाज ने कहा- 'मैं महाभारत और रामायण की कहानियां सुनते हुए बड़ी हुई हूं, क्योंकि मैं एक ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती हूं. पौराणिक कथाओं के बारे में शोध करना मेरे लिए किसी जुनून की तरह है जो मैं अपने बचपन के दिनों से करती आ रही हूं. मैंने कई पौराणिक किताबें पढ़ी हैं. लेकिन, जब भी मैं महाभारत पढ़ती थी, तो इसमें एक कैरेक्टर हमेशा मुझे आकर्षित करता था और वह था अश्वथामा (द्रोणाचार्य का पुत्र).'

'पिछले तीन सालों से मैं इस पर रिसर्च कर रही हूं और मुझे आज तक समझ नहीं आया कि आखिर अश्वथामा की जर्नी मुझे इतना आकर्षित क्यों करती है. मेरे दोस्तों और मेरी बहन ने मुझे अश्वथामा पर एक किताब लिखने के लिए प्रेरित किया. जिसके बाद, पहले तो मैंने एक छोटा ड्राफ्ट लिखा और अपने दोस्तों और परिवार को दिखाया. उन्होंने इसके लिए मेरी बहुत तारीफ की. इस किताब को कंप्लीट करने में मुझे दो सालों का समय लग गया. Seeking Death- a boon with a curse एक ऐसी लड़की की कहानी है, जिसे अश्वथामा की पीड़ा आकर्षित करती है, जिसे इस कलयुग में जीवित कहा गया है."

उन्होंने आगे कहा- 'इस किताब को लिखने के दौरान मुझे खुद में कई बदलाव महसूस हुए. जब मैंने यह किताब लिखने का फैसला किया, तब मुझे कोई आइडिया नहीं था कि क्या लिखूं. कैसे शुरुआत करूं. मेरे पास टुकड़ों में इन्फॉर्मेशन थी. ऐसे में मैंने दोबारा किताब पढ़ी. लेकिन, इस बार एक पाठक के तौर पर नहीं, बल्कि मैंने अपने आप को अश्वथामा की जगह पर रखकर किताब पढ़ी और इसके बाद मैंने चीजों को ग्रहण करना शुरू किया कि किताब के लेखक ने इसे लिखना शुरू किया और शब्दों के साथ अपने विचारों को कैसे प्रकट किया.'

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