ऑनलाइन शॉपिंग करने वाले हो जाएं सावधान! कॉम्पिटिशन कमीशन से आई ये चौंकाने वाली रिपोर्ट
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ऑनलाइन शॉपिंग करने वाले हो जाएं सावधान! कॉम्पिटिशन कमीशन से आई ये चौंकाने वाली रिपोर्ट

दुकानदार और ऑनलाइन प्लेटफार्म के डिस्काउंट में ज्यादा अंतर नहीं होगा.

जांच होगी तो कंपनियों को डीप डिस्काउंट बंद करना ही पड़ेगा. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

नई दिल्ली: ऑनलाइन शॉपिंग पर आपको मिलने वाले ज्यादा डिस्काउंट के दिन लदने वाले हैं. ई-कॉमर्स कंपनियों के कामकाज पर कॉम्पिटिशन कमीशन ने रिपोर्ट निकाली है. रिपोर्ट में पाया गया है कि "इन कंपनियों के तौर तरीके नियमों के हिसाब से नहीं हैं. ये कंपनियां बड़ी छूट दे रही हैं. अपने सप्लायर्स के साथ एक्सक्लूसिव एग्रीमेंट कर रही हैं, सप्लायर की रेटिंग और प्रोडक्ट की रेटिंग को मैनिपुलेट कर रही हैं और कीमतों को प्रभावित करने का काम भी कर रही हैं."

कॉम्पिटिशन कमीशन ने यह भी पाया ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म दोहरी भूमिका में काम कर रहे हैं. एक तरफ तो हो अपने सप्लायर (सेलर या सर्विस प्रोवाइडर) के साथ में मनचाहे तरीके से एकतरफा कॉन्ट्रैक्ट करते हैं.  उनमें से कुछ को चहेते बनाकर उनके उनको अलग से प्रेफरेंस देते हैं. संभव है कि जो चहेते हैं, वह उनकी या उन्हीं से जुड़ी हुई कंपनी का हिस्सा हों. वहीं, इनसे सर्विस प्रोवाइडर की रेटिंग भी प्रभावित करते हैं. इसके अलावा प्रोडक्ट की रेटिंग भी प्रभावित करते हैं.

न्यूट्रल प्लेटफार्म नहीं हैं
इससे यह उपभोक्ता के दिमाग में अलग प्रभाव पैदा करते हैं. यानी प्लेटफार्म न्यूट्रल प्लेटफार्म नहीं हैं. इसके अलावा जो सेलर उनके चहेते नहीं हैं, उनको कई तरह की समस्या का सामना करना पड़ता है. वह अपने सेलर से इस तरह का कांट्रेक्ट करती हैं कि वह सबसे कम दाम वाली चीज या सर्विस उनके ही प्लेटफार्म पर बेचेंगे, दूसरे प्लेटफार्म पर वह इस दाम पर बेच नहीं सकते और भी कई शर्ते हैं जिससे सेलर या सप्लायर को नुकसान होता है. अब कॉम्पिटिशन कमीशन के सामने कंपनियों की अलग-अलग जांच कर सकता है.

कंपनियों के लिए एक वेक-अप कॉल
कॉम्पिटिशन मामलों के वकील उदयन जैन कहते हैं, "रिपोर्ट कंपनियों के लिए एक वेक-अप कॉल है. इन कंपनियों के जितने भी बिजनेस टैक्टिस है, जितने भी इश्यू हैं वह आईडेंटिफाई कर लिए गए हैं. उन्हें कहा गया है कि पारदर्शिता से काम करना शुरू कर दीजिए. एक तरह से उनको चांस दिया है कि काम नियमों के तहत कीजिए, वरना आने वाले समय में कार्रवाई के लिए तैयार रहिए, क्योंकि केस टू केस बेसिस पर जांच करने का काम शुरू हो रहा है. जब भी कॉम्पिटिशन कमीशन जांच करेगा तो अपनी रिपोर्ट के आधार पर ही जांच करेगा, क्योंकि उसे मालूम है कि यह इश्यू मौजूद है. जांच में गलत तौर-तरीके सामने आ ही जाएंगे और इसका परिणाम भुगतना होगा."

आपके ऊपर कैसे पड़ेगा इसका प्रभाव
इस समय ई-कॉमर्स कंपनियां ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर आपको 80-90% परसेंट तक डिस्काउंट दे देती हैं, लेकिन कभी सोचा है कि यह डिस्काउंट कंपनियां कैसे दे रही हैं? बाकी दुकानदारों की बजाय इन कंपनियों के पास ऐसे कौन से रास्ते हैं जिससे यह इतना ज्यादा डिस्काउंट दे रही हैं. कुछ कंपनियां तो घाटा खा कर दे रही हैं और लागत से भी कम पर बेच रही हैं या तो इन्हें बाहर से कोई फंड मिल रहा है या फिर इनका कोई ऐसा बिजनेस अरेंजमेंट है जिससे यह मार्केट में बनी हुई हैं. हालांकि रिपोर्ट में यह पता नहीं लग पाया कि इन कंपनियों का वो तरीका कौन-सा है जिससे यह मौजूदा हालात में भी बनी हुई हैं.

दूसरे दुकानदारों को खतरा
लेकिन यह जरूर पता लगता है कि कंपनियां बाजार के नियमों का उल्लंघन कर रही हैं. इससे दूसरे दुकानदारों को खतरा पैदा हो रहा है, क्योंकि दूसरों के पास यह विकल्प ही नहीं कि वह अपनी लागत से कम पर प्रोडक्ट या सर्विस बेचे या फिर बहुत ज्यादा डिस्काउंट पर बेचें. ऐसे में उनका मार्केट में रहना संभव नहीं होगा, वह ख़त्म हो जाएंगे, इसे प्रीडेटरी प्राइसिंग कहा जाता है. प्रीडेटरी प्राइसिंग का मकसद शायद कुछ और भी सकता है (शायद बाज़ार कब्ज़ाना)  इसलिएये कंपनियां कुछ दूसरे तरीकों से बाजार में बनी हैं.

नियमों के हिसाब से इन कंपनियों बेचने वाले और खरीदने वालों के बीच में एक तकनीकी माध्यम बनना है. कंपनियां अपनी तरफ से ऐसा कहती भी रही हैं कि वह केवल माध्यम हैं जबकि पाया गया कि वो कीमतों को फिक्स करने में भी शामिल हैं.

घाटा खाकर भी अपना ग्रोथ बढ़ा रही हैं
कहीं ये बाकी लोगों को पूरी तरह से खत्म करने पर तो नहीं काम कर रही हैं यानी वह घाटा खाकर भी अपना ग्रोथ बढ़ा रही हैं. यानी ऐसी आशंका है कि वे कंपनियां व्यापार नहीं कर रहीं बल्कि दूसरों को मिटाने पर काम कर रही हैं. लिहाजा जांच की जरूरत बची है. जांच होगी तो कंपनियों को डीप डिस्काउंट बंद करना ही पड़ेगा.

कॉम्पिटिशन कमीशन के पूर्व रजिस्ट्रार और इन मामलों के जानकार एमएम शर्मा ने बताया, ''जो कंपनियां मार्केट में ग़लत तरीके इस्तेमाल कर रही कॉम्पिटिशन को डिस्टर्ब कर रही हैं, उनके लिए यह एक चेतावनी है. प्रेडेटरी प्राइसिंग नहीं चलेगा. 80-90% डिस्काउंट दिए जाते हैं उस पर असर ज़रूर पड़ेगा. वो बंद हो सकते हैं, क्योंकि यह कंपनियां उस बारे में सोचेंगी और कंपनियों को सोचना पड़ेगा भी.

हालांकि ऐसा नहीं होगा कि ग्राहकों को डिस्काउंट मिलना बंद हो जाए. लेकिन हां डीप डिस्काउंट नहीं मिलेगा. यानि दुकानदार और ऑनलाइन प्लेटफार्म के डिस्काउंट में ज्यादा अंतर नहीं होगा.

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के ज़रिए खरीददारी केवल बिजनेस की बात नहीं, बल्कि इससे छोटे-छोटे लोगों की रोजी रोटी और सामाजिक तानाबाना भी जुड़ा हुआ है. ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म की वजह से आ रही समस्याओं पर कॉम्पिटिशन कमीशन की तरफ से दी जा रही चेतावनी कंपनियों को सीरियस लेना ही चाहिए.

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