महाराष्ट्र के लातूर में किसानों का नया मंत्र बना ‘जैविक खेती’
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महाराष्ट्र के लातूर में किसानों का नया मंत्र बना ‘जैविक खेती’

महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित लातूर जिले के किसान खेती की लागत घटाने और पैदावार बढ़ाने के लिए धीरे-धीरे जैविक खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं। यहां के किसानों ने फसलों के स्वस्थ विकास और मिट्टी के स्थिरीकरण के लिए अपने खेतों में जैविक खाद और जैविक कीटनाशक के प्रयोग का तरीका अपनाया है जो कि मानव उपभोग के लिए सुरक्षित है। 

लातूर (महाराष्ट्र) : महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित लातूर जिले के किसान खेती की लागत घटाने और पैदावार बढ़ाने के लिए धीरे-धीरे जैविक खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं। यहां के किसानों ने फसलों के स्वस्थ विकास और मिट्टी के स्थिरीकरण के लिए अपने खेतों में जैविक खाद और जैविक कीटनाशक के प्रयोग का तरीका अपनाया है जो कि मानव उपभोग के लिए सुरक्षित है। 

लातूर के श्री श्री इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी ट्रस्ट के प्रमुख महादेव गोमारे ने बताया कि अभी तक सरकार और शोधकर्ता मुख्य रूप से पैदावार बढ़ाने पर बल देते रहे हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में, महंगे खाद, कीटनाशकों और वाणिज्यिक बीजों के प्रयोग के कारण खेती काफी महंगी हो गयी। 

यदि किसान अपनी फसल 100 रूपये में बेचते हैं तो उसकी उत्पादन लागत 80 रूपये होती है और इस तरह उसे केवल 20 रूपये का लाभ होता है। और जब फसल बर्बाद हो जाती है तो लागत में उच्च निवेश के कारण वे भारी कर्ज में डूब जाते हैं। उन्होंने बताया कि यह ट्रस्ट ‘शून्य लागत खेती’ और ‘सिंचाई के सतत प्रयोग’ के माध्यम से किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने का प्रयास कर रहा है।

गोमारे ने बताया कि भूमि स्वयं एक आत्मनिर्भर इकाई है जो सभी जरूरी उर्वरकों और कीटनाशकों का उत्पादन कर सकती है। पहला कदम ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाना है। प्रत्येक एकड़ में करीब 40 पेड़ होने चाहिए। इसके लिए शीशम, चंदन और नीम सबसे आदर्श पेड़ हैं। ये करीब 3-4 साल में बड़े हो जाते हैं और जमीन को उपजाऊ बनाए रखने के लिए पर्याप्त जैविक तत्वों का उत्पादन कर देते हैं। 

इन पेड़ों की जड़ों के जरिए जमीन में पानी पहुंचाने में मदद मिलती है और मिट्टी का कटाव रूकता है। नीम का पेड़ जैविक कीटनाशक का सबसे बेहतर रूप है। लातूर जिले के अयूसा गांव के किसान त्रिम्बकदास जंवार जैविक खाद से उत्पादित पैदावार को लेकर उत्साहित हैं। उन्होंने बताया कि इससे न केवल उनका लाभ बढ़ा है बल्कि यह मानव उपभोग के लिए भी सुरक्षित है।

जंवार ने बताया कि दो एकड़ की भूमि में अनार उत्पादन के लिए करीब 50,000 रूपये की लागत आई है। पूरी राशि शत-प्रतिशत जैविक कृषि पर खर्च की गयी। इस पर 18 लाख रूपये मुनाफा हुआ। पिछले साल इस फसल के उत्पादन के लिए हमने रसायनिक खाद का प्रयोग किया था जिसमें एक लाख रूपये प्रति एकड़ की लागत आई थी। उस समय करीब 3 से 4 लाख रूपये का ही लाभ हुआ था।

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