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नई दिल्ली: म्यूचुअल फंड निवेशक (Mutual Funds investors) जोखिम (Risk) को ठीक तरह से पहचान सकें, इसके लिए सेबी (SEBI) ने जोखिम मापने के पैमाने में बदलाव करने का आदेश दिया है. सेबी की ओर से जारी सर्कुलर के मुताबिक सभी म्यूचुअल फंड्स को अब रिस्क-ओ-मीटर (Risk-o-meter) में 5 के बदले 6 संकेत दिखाने होंगे.
सेबी के सर्कुलर के मुताबिक अब एक संकेत वेरी हाई रिस्क (very high risk) का भी होगा. म्यूचुअल फंड्स की सभी स्कीम के लिए 1 जनवरी से वेरी हाई रिस्क का संकेत देना ज़रूरी होगा. नई स्कीम के साथ साथ पुरानी स्कीमों के लिए भी ऐसा करना अनिवार्य होगा. म्यूचुअल फंड्स चाहें तो इसके पहले भी इसे अपना सकते हैं.
नए साल से लागू होंगे नियम
सभी म्यूचुअल फंड्स के लिए हर महीने इस रिस्क-ओ-मीटर की समीक्षा करनी होगी. बदलाव की जानकारी ई-मेल या SMS के ज़रिए सभी यूनिटहोल्डर्स को देना होगा. पोर्टफोलियो का ब्यौरा भी महीना पूरा होने के 10 दिन के भीतर अपनी और AMFI वेबसाइट पर बताना होगा. AMFI म्यूचुअल फंड्स का संगठन है.
साथ ही कारोबारी साल खत्म होने के बाद भी इसका ब्यौरा साझा करना होगा. जिसमें ये बताना होगा कि कारोबारी साल की शुरुआत में क्या था और कारोबारी साल के अंत में रिस्क-ओ-मीटर में क्या बदलाव हुआ और कितनी बार हुआ.
साफ साफ दिखाना होगा जोखिम का संकेत
म्यूचुअल फंड्स को नए इश्यू लाते समय अप्लीकेशन फॉर्म और स्कीम से जुड़े सभी अहम दस्तावेजों में इसका ब्यौरा देना होगा. रिस्क-ओ-मीटर के संकेत को भी स्कीम के नाम के पास ही साफ साफ बताना होगा. साथ ही विज्ञापनों में भी इसकी जानकारी स्पष्ट तरीके से देनी होगी. ताकि निवेशक आसानी से समझ पाएं और उन्हें किसी तरह की दुविधा न हो. रिस्क-ओ-मीटर में बदलाव का मतलब ये नहीं कि स्कीम का फंडामेंटल ही बदला हुआ मान लिया जाए.
अभी क्या हैं जोखिम के संकेत
अभी लो रिस्क, लो टू मॉडरेट रिस्क, मॉडरेट रिस्क, मॉडरेट टू हाई रिस्क और हाई रिस्क का संकेत होता है. नए साल से अब एक और संकेत वेरी हाई रिस्क का होगा. यानि पांच की जगह अब 6 संकेत होंगे.
डेट में कैसे परखा जाएगा जोखिम
रिस्क-ओ-मीटर में जोखिम किस आधार पर तय होंगे सेबी ने इसका भी पूरा ब्यौरा दिया है. मसलन अगर कोई डेट सिक्योरिटी है तो उसके लिए क्रेडिट रिस्क वैल्यू, इंटरेस्ट रेट रिस्क वैल्यू और लिक्विडिटी रिस्क वैल्यू अहम पैमाना होगा. क्रेडिट रिस्क में क्रेडिट रेटिंग के आधार पर जोखिम तय होगा. जबकि लिक्विडिटी रिस्क निकालने के लिए क्रेडिट रेटिंग के अलावा लिस्टिंग की स्थिति और डेट के स्ट्रक्चर को आधार बनाया जाएगा.
इक्विटी में कैसे परखा जाएगा जोखिम
इसी तरह इक्विटी सेगमेंट में मार्केट कैपिटलाइजेशन, वोलाटिलिटी और इंपैक्ट कॉस्ट को पैमाना बनाया गया है. मार्केट कैपिटलाइजेशन डेटा AMFI की छमाही रिपोर्ट से तय होगी। जबकि वोलाटिलिटी के लिए सिक्योरिटी की कीमत में रोजाना उतार चढ़ाव आधार होगा. हालांकि इसके लिए दो साल के आंकड़ों को आधार बनाया जाएगा.
जबकि इंपैक्ट कॉस्ट इससे तय होगा कि शेयर को बेचने और खरीदने की लागत कितनी आती है. ये शेयर की लिक्विटी पर आधारित होती है. नए लिस्टेड शेयरों के लिए भी इसी तरह का पैमाना होगा. सेबी ने इक्विटी डेरिवेटिव सेगमेंट, इंडेक्स और स्टॉक प्यूचर्स, इंडेक्स और स्टॉक ऑप्शंस, REIT और InvITs के साथ साथ गोल्ड, फॉरेन सिक्योरिटीज़ और म्यूचुअल फंड स्कीम्स के लिए भी पैमाना तय किया है.