मेट्रो जैसी सुविधाओं का मजा अब छोटे शहरों के लोग भी उठा पाएंगे. 1 फरवरी को पेश किए गए बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इंफ्रास्ट्रक्चर पर काफी जोर दिया है.
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नई दिल्ली: मेट्रो जैसी सुविधाओं का मजा अब छोटे शहरों के लोग भी उठा पाएंगे. 1 फरवरी को पेश किए गए बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इंफ्रास्ट्रक्चर पर काफी जोर दिया है. सरकार चाहती है कि टियर-2 और टियर-3 शहरों में मेट्रो नियो (Metroneo) और मेट्रो लाइट (MetroLite) की शुरुआत की जाए ताकि छोटे शहरों का भी ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर हो. इसका सीधा फायदा इन शहरों में रहने वाले लोगों को होगा.
सरकार देशभर में मेट्रो नेटवर्क का जाल बिछाना चाहती है. सरकार की योजना है कि आने वाले 3-4 साल में 50 से ज्यादा शहरों में मेट्रो सर्विस शुरू की जाएगी. इतने बड़े पैमाने पर मेट्रो का जाल बिछाना एक चुनौती है, जिसे सरकार मेट्रो लाइट और मेट्रो नियो के जरिए पूरा करेगी.
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सरकार को गोरखपुर, प्रयागराज, जम्मू, श्रीनगर, राजकोट, बड़ौदा, देहरादून, कोयम्बटूर, भिवाड़ी जैसे शहरों से मेट्रो नियो और मेट्रो लाइट के प्रस्ताव मिले हैं. नासिक में मेट्रो नियो का प्रस्ताव काफी पहले मिला हुआ है, जो शहरी विकास मंत्रालय में विचाराधीन है.
एक लाइन में कहें तो इनको बनाने में खर्च सामान्य मेट्रो के मुकाबले काफी कम आता है. अभी एक एलिवेटेड मेट्रो को बनाने में प्रति किलोमीटर का खर्च 300-350 करोड़ रुपये आता है. अंडर ग्राउंड में यही लागत 600-800 करोड़ रुपये तक पहुंच जाती है. जबकि
एक मेट्रो नियो पर प्रति किलोमीटर खर्च 50-70 करोड़ रुपये आएगा. जबकि मेट्रो लाइट के लिए 100-135 करोड़ रुपये होगा.
ये दोनों ही मेट्रो एलिवेटेड बनेंगी. दूसरी बात ये कि मेट्रो नियो और लाइट में एल्यूमीनियम के कोच होते हैं. कोच की संख्या भी कम होती है और स्टेशन भी भारी भरकम न होकर छोटे होते हैं, जिससे उनके रखरखाव का खर्च भी 50 परसेंट से कम आता है.
दूसरी बात ये कि, दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में राइडरशिप होती है. इसको ऐसे समझिए कि 1 घंटे में एक दिशा में कितने यात्री सफर करते हैं. मेट्रो में ये संख्या 40,000 यात्रियों की है, जबकि मेट्रो नियो में 8000 और मेट्रो लाइट में 15000 है. चूंकि छोटे शहरों में यात्रियों की संख्या काफी कम होती है, इसलिए बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर भी नहीं दिया जा सकता है.
मेट्रो नियो (Metroneo) और मेट्रो लाइट (MetroLite) को छोटे शहरों के लिए खासतौर पर शुरू किया जाएगा. चूंकि इसे बनाने में काफी कम लागत आएगी, इसलिए सफर भी काफी सस्ता होगा. इसमें यात्रियों की क्षमता सामान्य मेट्रो से कम होगी, इसके लिए सड़क से अलग एक डेडिकेटेड कॉरिडोर तैयार किया जाएगा. इस मेट्रो सिस्टम से छोटे शहर के लोगों को भी सड़क के जाम से निजात मिलेगी.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी को इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर पर काफी फोकस किया. मेट्रो नियो और लाइट के लिए भी इस बजट में अलग से आवंटन किया गया है. पूरे देश में 708 किमी का मेट्रो रूट है, 85 लाख लोग इसमें सफर करते हैं. अभी 1016 किलोमीटर पर काम जारी है. सरकार का लक्ष्य है कि मार्च 2022 तक जो मौजूदा 708 किलोमीटर का रूट है इसे 1000 किलोमीटर तक किया जाए. मेट्रो राइडरशिप (मेट्रो के जरिए जो लोग सफर करते हैं) उनका लक्ष्य 85 लाख से बढ़ाकर 2 करोड़ कर दिया जाए.
इस नए तरह की मेट्रो के बनाने के लिए पिछले शुक्रवार को पुणे में शहरी विकास मंत्रालय सेक्रेटरी ने मेट्रो कोच बनाने वाली कपनियों के साथ अहम मीटिंग की. इसमें बॉम्बार्डियर, सीमेंस, एल्सटॉम, टीटागढ़ वैगंस, BEML, Bell, टाटा मोटर्स, Daimler, मैल्को, ABB, टूलटेक के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. सरकार इन कंपनियों से बोलियां मंगवाएगी. सरकार के टेंडर में मेक इन इंडिया का एक स्पेशल क्लॉज भी रखा जाएगा. आपको बता दें कि टीटागढ़ वैगंस तो अभी एल्यूमीनियम आधारित मेट्रो कोच पुणे को जून तक सौंप भी रही है.
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