कभी साफ करते थे गाड़ियां, PF के पैसों से शुरू किया बिजनेस; इस तरह बदली किस्‍मत
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कभी साफ करते थे गाड़ियां, PF के पैसों से शुरू किया बिजनेस; इस तरह बदली किस्‍मत

AQUAPOT RO कंपनी के फाउंडर की कहानी बहुत ही प्रेरणादायक है. वे स्कूल में काफी एवरेज स्टूडेंट हुआ करते थे और काफी गरीब परिवार से आते थे. उन्होंने बैंगलोर जा कर कई नौकरियां कीं लेकिन उन्हें वे रास नहीं आईं. कुछ दिनों बाद उन्होंने अपने PF के पैसों से एक कंपनी स्टार्ट की जो कि आज करोड़ों की कंपनी है.

कभी साफ करते थे गाड़ियां, PF के पैसों से शुरू किया बिजनेस; इस तरह बदली किस्‍मत

नई दिल्ली: सफल होने के लिए बहुत मेहनत और दृढ़ संकल्प की जरूरत होती है और ऐसी ही है एक्वापोट (AQUAPOT) के फाउंडर और सीईओ बीएम बालकृष्ण (B.M. Balakrishna) की कहानी. उन्होंने अपने शुरुआती दिनों में खूब मेहनत की और अपने बिजनेस को नई ऊंचाइयों पर ले गए. आइए जानते हैं बालकृष्ण की सक्सेस स्टोरी.

  1. एक्वापोट के फाउंडर की सक्सेस स्टोरी
  2. कभी पैसों की तंगी में धुलते थे कारें
  3. पीएफ के पैसों से शुरू किया बिजनेस
  4.  

मैथ्स में 6 बार फेल हुए बालकृष्ण

बालकृष्ण का जन्म आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के एक छोटे से गांव शंकरयालपेटा (Sankarayalapeta) में हुआ था. उनके पिता एक किसान थे और उनकी मां घर पर सिलाई के अलावा एक आंगनवाड़ी स्कूल में शिक्षक के रूप में काम करती थीं. उनका दूध का भी कारोबार था. वे अपने स्कूली दिनों में बहुत अच्छे छात्र नहीं थे और 6 बार गणित (Maths) में फेल भी हुए थे. उन्होंने किसी तरह अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की.

ऑटोमोबाइल में किया डिप्लोमा

स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने नेल्लोर में ऑटोमोबाइल में डिप्लोमा किया. इस दौरान उन्होंने फैसला किया कि वे ज्यादा समय बर्बाद नहीं करेंगे. जब वह डिप्लोमा कर रहे थे, तो उसके माता-पिता मुश्किल से उनकी फीस भर सकते थे. बालकृष्ण नहीं चाहते थे कि उनकी मेहनत बेकार जाए. उन्होंने अपने माता-पिता के समर्थन के महत्व को महसूस किया. उन दिनों, दूध 3 रुपये प्रति लीटर बेचा जाता था, जिसका मतलब था कि उसके माता-पिता उसे 1000 रुपये भेजने के लिए 350 लीटर दूध बेचेंगे. यह सब महसूस करते हुए उन्होंने लगन से पढ़ाई की, 74% के साथ परीक्षा पास की और अपने कॉलेज के दूसरे टॉपर रहे. उनके माता-पिता उनके परिणाम से बेहद खुश थे और उन्हें आगे की पढ़ाई करने देना चाहते थे. बालकृष्ण अपने परिवार की जीवन शैली में सुधार करना चाहते थे और घर पर आर्थिक मदद करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने नौकरी की तलाश शुरू कर दी. उस दौरान उनकी मां ने उन्हें 1,000 रुपये दिए और उन्हें बेंगलुरु के आसपास नौकरी खोजने के लिए कहा.

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कारों को धुलने का काम किया

बालकृष्ण तब बेंगलुरु आए और कई ऑटोमोबाइल कंपनियों में नौकरी के लिए आवेदन किया लेकिन कहीं भी सफलता नहीं मिली. उनका सारा उत्साह चकनाचूर हो गया. अंत में उन्होंने फैसला किया कि वह कोई भी काम करेंगे और कुछ दिनों के बाद उन्होंने कारों की धुलाई शुरू कर दी. यहां काम करने के दौरान उन्हें 500 रुपए सैलरी मिलती थी. उन्होंने एक टेलीफोन बूथ में भी 300 रुपये प्रति माह के लिए काम किया. ऐसा करते हुए उन्हें पंप चलाने का बिजनेस ऑफर किया गया. यह उनके स्किल से नहीं जुड़ा था, लेकिन उन्हें 2,000 रुपये वेतन मिल रहा था जो उनके परिवार की मदद के लिए काफी थे. इसलिए वह वहां मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव के पद पर काम करने लगे, उन्होंने वहां 14 साल तक काम किया.

पीएफ के पैसों से शुरू किया बिजनेस

काम के ज्यादा बोझ के कारण उन्होंने नौकरी छोड़ दी और यहीं से उनके सपनों को पूरा करने की शुरुआत हुई. साल 2010 में उन्होंने अपने प्रोविडेंट फंड के अकाउंट के 1.27 लाख रुपये के साथ अपना खुद का ब्रांड AQUAPOT शुरू किया. बिजनेस शुरू करने के शुरुआती दिनों में उनके लिए फंड इकट्ठा करना थोड़ा मुश्किल टास्क था.

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मार्केटिंग पर किया खास फोकस

बालकृष्ण ने केवल अपने दिल की सुनी. शुरुआत में उन्होंने बहुत कम लोगों के साथ काम करना शुरू किया. वह खुद RO की पंपों की मरम्मत के लिए जाते थे. लोगों से उनके संबंध काफी अच्छे थे, जल्द ही उनका कस्टमर बेस बढ़ने लगा और उन्होंने एक थोक व्यवसाय शुरू किया. उन्होंने मार्केटिंग पर बहुत मेहनत की. उन्होंने टी-शर्ट, ब्रोशर जैसी चीजें बांटना शुरू कर दिया. अंतत: उनका प्रयास रंग लाया. उनका उत्पाद AQUAPOT देश के शीर्ष 20 वॉटर प्यूरीफायर में अपना नाम बनाने में कामयाब रहा. आज उनकी कंपनी के उत्पाद पूरे देश में यूज किए जाते हैं. उनकी ब्रांच हैदराबाद, बेंगलुरु, विजयवाड़ा, तिरुपति और हुबली तक भी फैली हुई है और फिलहाल उनका कारोबार 25 करोड़ रुपये तक हो गया है.

बालकृष्ण कभी ब्रेक नहीं लेते हैं और लगातार काम करते हैं. वह निश्चित रूप से कई युवाओं के लिए जीवन में कुछ बड़ा हासिल करने की ख्वाहिश रखने वाले प्रेरणास्रोत हैं.

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