Petrol Price Today: पेट्रोल-डीजल को GST के दायरे में लाने की वकालत वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कर चुकी हैं, अब SBI की रिपोर्ट ने भी कह दिया है कि अगर तेल की कीमतें घटानी हैं तो इसे GST के दायरे में लाना होगा, रिपोर्ट में एक फॉर्मूला भी सुझाया गया है.
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मुंबई: Petrol Price Today: पेट्रोल आपको 75 रुपये प्रति लीटर में मिल सकता है, लेकिन कैसे? इसका हिसाब लगाया है SBI के अर्थशास्त्रियों ने और एक रिपोर्ट भी जारी की है. क्योंकि जिस तरह से पेट्रोल-डीजल की कीमतें बेलगाम हुईं हैं, इससे आम-आदमी के घर का ही बजट नहीं बिगड़ा बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को ही खतरा पैदा होने लगा है.
SBI इकोनॉमिस्ट्स का कहना है कि पेट्रोल का दाम 75 रुपये प्रति लीटर हो सकता है अगर इसे Goods and Services Tax (GST) के दायरे में लाया जाए, लेकिन यहां पर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है, जिससे तेल की कीमतें दुनिया में सबसे ज्यादा हैं. डीजल के दाम भी 68 रुपये हो सकते हैं, इससे केंद्र और राज्य सरकारों की कमाई में सिर्फ 1 लाख करोड़ रुपये की गिरावट आएगी जो कि GDP का सिर्फ 0.4 परसेंट है.
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पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लेकर ये सारी गणित SBI के अर्थशास्त्रियों ने 60 रुपये प्रति बैरल कच्चा तेल और 73 रुपये प्रति डॉलर के एक्सचेंज रेट को आधार मानकर निकाली है. अभी हर राज्य पेट्रोल-डीजल पर अपने हिसाब से टैक्स वसूलता है, जबकि केंद्र सरकार भी ड्यूटी और सेस से कमाई करती है. पेट्रोल की कीमतें देश के कुछ हिस्सों जैसे राजस्थान के श्रीगंगानगर में 100 रुपये प्रति लीटर के पार चली गईं हैं और इस बात की चिंता जताई जा रही है कि ऊंचे टैक्स की वजह से तेल महंगा हो रहा है.
SBI के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि पेट्रोल और डीजल को GST के दायरे में लाना GST फ्रेमवर्क का एक अधूरा एजेंडा है और कीमतों को नए इनडायरेक्ट टैक्स फ्रेमवर्क में लाने से मदद मिल सकती है. GST के इकोनॉमिस्ट्स का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकारें कच्चे तेल के उत्पादों को GST के दायरे में लाने से बचती हैं क्योंकि पेट्रोलियम प्रोडक्ट पर सेल्स टैक्स/VAT उनकी कमाई का बड़ा जरिया है. इसलिए पेट्रोलियम प्रोडक्ट को GST के दायरे में लाने को लेकर एक राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है.
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि फिलहाल राज्य अपनी जरूरतों के हिसाब से एड वेलोरम टैक्स, सेस, एक्स्ट्रा VAT/सरचार्ज लगाते हैं, और ये सबकुछ कच्चे तेल की कीमतें, ट्रांसपोर्टेशन चार्ज, डीलर कमीशन, फ्लैट एक्साइज ड्यूटी को ध्यान में रखते हुए लगाया जाता है. कच्चा तेल और डॉलर रेट के लिए मान लेते हैं कि डीजल के लिए ट्रांसपोर्टेशन चार्ज 7.25 रुपये और पेट्रोल के लिए 3.82 रुपये है. डीजल के लिए डीलर कमीशन 2.53 रुपये और पेट्रोल के लिए 3.67 रुपये है, पेट्रोल पर सेस 30 रुपये और डीजल पर सेस 20 रुपये है जो कि केंद्र और राज्य सरकारों में बराबर बंटता है, और GST रेट 28 परसेंट है.
रिपोर्ट के मुताबिक खपत में बढ़त की बात की जाए तो अगर डीजल की खपत 15 परसेंट और पेट्रोल की खपत 10 परसेंट बढ़े, तो GST के अंदर वित्तीय घाटा सिर्फ 1 लाख करोड़ रुपये का होगा. कच्चे तेल की कीमत में 1 डॉलर की बढ़ोतरी पेट्रोल के दाम 50 पैसे बढ़ा देगी और डीजल की कीमतें 1.50 रुपये बढ़ जाएंगी और कुल अंतर को करीब 1500 करोड़ रुपये कम कर देगा.
रिपोर्ट के मुताबिक मजेदार बात ये है कि अगर कच्चे तेल के दाम 10 डॉलर प्रति बैरल गिर जाते हैं, इसका फायदा कंज्यूमर को नहीं दिया जाता है और कीमतों को बेसलाइन पर रखते हैं तो केंद्र और राज्य सरकारों को 18,000 करोड़ रुपये की बचत होती है. जो कि 9000 करोड़ रुपये की बचत से ज्यादा है जब कीमतें इसी पैमाने पर बढ़ती हैं. इसलिए हम सरकार को एक ऑयल प्राइस स्टैबलाइजेशन फंड बनाने का प्रस्ताव देते हैं, जिसका इस्तेमाल बुरे वक्त में रेवेन्यू में आई कमी के लिए किया जा सकता है, इससे उपभोक्ताओं पर भी असर नहीं होगा.
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