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नौकरी बदलने के तुरंत बाद न निकालें PF का पैसा, होते हैं ये बड़े नुकसान

प्राइवेट सेक्टर में काम करने वालों को सही ग्रोथ के लिए समय-समय पर नौकरी बदलनी पड़ती है. इससे पोस्ट और पैसे दोनों का ग्रोथ होता है. जॉब बदलते समय कई बार लोग नए संस्थान में ज्वाइन करने के बाद पुराने संस्थान में कटे एम्प्लॉई प्रोविडेंट फंड (EPF) के पैसे को निकाल लेते हैं. लेकिन एक्सपर्ट्स की राय है कि जॉब बदलने के बाद पीएफ (PF Amount) का पैसा निकलना नहीं चाहिए बल्कि उसे ट्रांसफर (Transfer PF Amount) करवा लेना चाहिए. यहां जाने पीएफ के पैसे क्यों नहीं निकालने चाहिए. 

जॉब बदलने के बाद भी सेव रखें पीएफ के पैसे

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जॉब बदलने के बाद भी सेव रखें पीएफ के पैसे

प्राइवेट जॉब में अक्सर ही नौकरी बदलना पड़ता है. ऐसे में सवाल है कि नौकरी बदलने के बाद पुराने संस्थान से PF के पैसे निकाल लेना कितना सही है? एक्सपर्ट्स कहते हैं कि नौकरी बदलने के बाद EPF निकाल लेना सही फैसला नहीं है. बल्कि  इसके कई नुकसान हैं, इसलिए जॉब बदलने के बाद PF की राशि एम्प्लॉई को नहीं निकलना चाहिए.

ट्रांसफर करवाएं पैसा

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ट्रांसफर करवाएं पैसा

जॉब बदलने पर EPF का पैसा निकालने के बजाय आप अपना EPF और एम्प्लॉईज पेंशन स्कीम (EPS) का पैसा नए EPF अकाउंट में ट्रांसफर करवा लें. इससे आपको मिले वाले बेनेफिट्स पर कोई असर नहीं पड़ेगा. साथ ही आप एकमुश्त रकम उठा पाएंगे.

टैक्स बेनेफिट खत्म

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टैक्स बेनेफिट खत्म

पीएफ का पैसा पहले निकल लेने का सबसे बड़ा नुकसान ये है कि अगर आप 5 साल तक कॉन्ट्रिब्यूशन पूरा होने से पहले EPF का पूरा पैसा निकाल लेते हैं तो टैक्स बेनेफिट खत्म हो जाएगा. मतलब EPF में कॉन्ट्रिब्यूशन पर इनकम टैक्स के सेक्शन 80C के तहत जो टैक्स में छूट मिलता है, वह नहीं मिलेगा. वहीं,अगर आप पीएफ खाते में जमा राशि को एक PF अकाउंट से दूसरे PF अकाउंट में ट्रांसफर करते हैं तो टैक्स छूट का फायदा मिलेगा. 

पीएफ के फायदे

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पीएफ के फायदे

EPFO के नियम के अनुसार, अगर EPS मेंबर 10 साल का कॉन्ट्रिब्यूशन पूरा कर लेता है तो 58 साल की उम्र के बाद उसे पेंशन मिलती है. अगर कोई कर्मचारी 58 साल की उम्र से पहले ही रिटायर हो जाता है, और EPS में 10 साल का कॉन्ट्रिब्यूशन है तो उसे भी पेंशन मिलती है. इसका मतलब है कि EPS में 10 साल का का योगदान अनिवार्य है.

ऐसे करें कैलकुलेशन

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ऐसे करें कैलकुलेशन

अगर आप भी EPFO के पेंशन का कैलकुलेशन करना चाहते हैं तो इस फार्मूला को फॉलो करें.  मंथली पेंशन= (सैलरी में पेंशन का हिस्सा X नौकरी के साल) / 70 ध्यान दें कि जिन लोगों ने 16 नवंबर 1995 के बाद नौकरी ज्वाइन किया है, उनके लिए पेंशनेबल सैलरी EPS कॉन्ट्रिब्यूशन बंद करने से पहले के 60 महीनों का औसत होगा. फिलहाल मैक्सिमम पेंशनेबल सैलरी 15,000 रुपये महीना है. तो कैलकुलेशन के समय जॉइनिंग का ध्यान रखें.

किसे मिलती है पेंशन

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किसे मिलती है पेंशन

पेंशन उन्हीं लोगों को मिल सकती है, जो ईपीएस (EPS) यानी एंप्लॉई पेंशन स्कीम (Employees Pension Scheme) 1995 में 16 नवंबर 1995 को या उससे पहले शामिल हुए हों. साथ ही कर्मचारी को EPS अकाउंट में कम से कम 10 साल तक सैलरी का कुछ अंश भी देना पड़ता है. कर्मचारी की तरफ से ये अंशदान एक नियोक्ता या एक से अधिक नियोक्ताओं के तहत किया जा सकता है.

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