आमतौर पर अभी, ज्यादातर कंपनियां कर्मचारी की सैलरी का गैर-भत्ता हिस्सा (non-allowance part) का 50 परसेंट से कम रखती हैं, ताकि वो अपना उन्हें EPF और ग्रेच्युटी में कम योगदान करना पड़े और उनका बोझ कम हो सके. लेकिन नया वेतन कोड लागू होने के बाद कंपनियों को बेसिक सैलरी बढ़ानी पड़ेगी. इससे कर्मचारियों की take-home salary तो घट जाएगी, लेकिन PF योगदान और ग्रेच्युटी योगदान बढ़ जाएगा. साथ ही कर्मचारी की टैक्स देयता (tax liability) भी घट जाएगी, क्योंकि कंपनी कर्मचारी के लिए अपना PF योगदान उसके CTC ( Cost-To-Company) में जोड़ देगी.
इन नए वेतन नियम से पोस्ट रिटायरमेंट भले ही फायदा दिख रहा हो, लेकिन कर्मचारियों की टेक होम सैलरी घटने से उनकी मौजूदा वित्तीय स्थिति पर असर पड़ सकता है. उनके हाथ में हर महीने पहले के मुकाबले कम सैलरी आएगी. ऐसे में घर के खर्चों, लोन, SIP वगैरह का पूरा हिसाब-किताब बिगड़ सकता है. आमतौर पर सैलरीड क्लास का 40 परसेंट हिस्सा EMI चुकाने में जाता है, इसमें होम लोन, कार लोन की EMI शामिल होती है. ऐसे में अगर नए वेतन नियमों के हिसाब से उनकी टेक होम सैलरी 10 परसेंट भी घटी तो मैनेज करना मुश्किल हो सकता है.
इसको एक उदाहरण से समझते हैं. मान लीजिए आपकी मौजूदा सैलरी 1 लाख रुपये महीना है, और बेसिक सैलरी 30,000 रुपये है. यानि भत्ते वगैरह मिलाकर आपकी सैलरी 1 लाख पहुंचती है. तो 12-12 परसेंट के हिसाब से कर्मचारी और कंपनी का PF योगदान हुआ, 7200 रुपये. इसलिए टैक्स कटने से पहले आपकी टेक होम सैलरी हुई 92800 रुपये, हम यहां ये मानकर चल रहे हैं कि और कोई डिडक्शन नहीं है.
जब नया वेज रूल या वेतन नियम लागू हो जाएगा, तो बेसिक सैलरी बढ़कर 50,000 रुपये हो जाएगी. इसलिए कुल PF योगदान हो जाएगा 12,000 रुपये. इसलिए टैक्स से पहले टेक होम सैलरी हो जाएगी. 88,000 रुपये महीना. जो कि पिछली सैलरी के मुकाबले 4,800 रुपये कम है.
अब मान लीजिए कि हर महीने आप EMI के रूप में 40,000 रुपये चुकाते हैं. नए सैलरी स्ट्रक्चर के बाद आपके हाथ में बचेंगे (88,000-40,000) 48,000 रुपये, जबकि पुराने सैलरी स्ट्रक्चर के हिसाब से आपके हाथ में बचते थे (92800-40,000) 52,800 रुपये, यानि आपके हाथ में पहले के मुकाबले (52,800-48,000) 4800 रुपये कम बचेंगे.
ऐसी हालत में आप खर्चों को बैलेंस करने के लिए SIP, PPF या NPS में कटौती करते हैं या फि अपने रोजमर्रा के खर्चों में कमी करते हैं. SIP में कटौती करना है नहीं, ये अपने वित्तीय सलाहकार से मशवरा करने के बाद ही कोई फैसला लें. जहां तक खर्चों में कटौती की बात है, तो इसे आपको कुछ हद तक नियंत्रित करना ही होगा.
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