प्रदूषण से इकोनॉमी पर भी पड़ता है असर, हर सेकंड होता है इतने लाख रुपये का नुकसान
Advertisement
trendingNow1783358

प्रदूषण से इकोनॉमी पर भी पड़ता है असर, हर सेकंड होता है इतने लाख रुपये का नुकसान

वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण देश की आर्थिक सेहत के लिए भी घातक है. इसकी वजह से उत्पादकता में कमी आती है और स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ता है.

(फाइल फोटो)

नई दिल्लीः इन दिनों दिल्ली-एनसीआर सहित देश के कई प्रमुख शहर प्रदूषण (Pollution) की समस्या से परेशान हैं. दिवाली से पहले इस वक्त प्रदूषण की रोकथाम के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal) ने भी कई प्रमुख शहरों में पटाखों की बिक्री पर बैन लगा दिया है. हालांकि प्रदूषण से केवल स्वास्थ्य पर ही नहीं बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर खराब असर पड़ता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक इससे प्रति सेकंड देश को 3.39 लाख रुपये का नुकसान होता है. 

  1. प्रति सेकंड देश को 3.39 लाख रुपये का नुकसान
  2. प्रदूषण से 10.7 लाख करोड़ रुपये की चपत
  3. कई शहरों में ग्रेडेड एक्शन रिस्पॉसं (GRAP) लग गया है

ग्रीनपीस ने जारी किए हैं आंकड़े 
साल की शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय संस्था ग्रीनपीस साउथईस्ट एशिया ने सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के साथ मिलकर एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि भारत की कुल जीडीपी में प्रदूषण से 10.7 लाख करोड़ रुपये की चपत लगेगी, जो कि जीडीपी का 5.4 फीसदी होगा. इस प्रदूषण की वजह से दिल्ली में धूप तक नहीं निकल रही और अगर आप दिल्ली या आस पास के शहरों में नहीं रहते तो आप खुद को खुश किस्मत मान सकते हैं. अगर आप इन शहरों रहते हैं तो चाहे आप घर के बाहर हों या अंदर- लोग दम घुटने, आंखों में जलन और सिरदर्द की शिकायतें कर रहे हैं. ये बीमारियां प्रदूषण की ही देन हैं. 

GRAP लगने से असर
प्रदूषण की शुरुआत से पहले ही दिल्ली-एनसीआर सहित कई शहरों में ग्रेडेड एक्शन रिस्पॉसं (GRAP) लग जाता है. वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण देश की आर्थिक सेहत के लिए भी घातक है. इसकी वजह से उत्पादकता में कमी आती है और स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ता है. प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों और फैक्ट्री को बंद करने का अर्थव्यवस्था पर काफी असर होता है. कई वैश्विक स्टडी में यह सामने आया है कि प्रदूषण भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था को काफी महंगा पड़ रहा है. साल 2016 में आई वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि साल 2013 में वायु प्रदूषण की वजह से भारत ने जीडीपी का 8.5 फीसदी हिस्सा खो दिया. ऐसा लोक कल्याण के लिए किये जाने वाले काम पर खर्च बढ़ने और श्रम के घंटे में कमी की वजह से हुआ.

यह भी पढ़ेंः फ्री में बन जाएगा नया PAN CARD, ये है 10 मिनट का आसान तरीका

पड़ता है काम के घंटों और टूरिज्म पर असर
बढ़ते प्रदूषण की वजह से फ्लाइट में देरी, डायवर्ट होने, टूरिस्ट की संख्या घटने, काम के घंटे कम हो जाने और स्कूल में छुट्टियां आम बात हैं. OECD की साल 2016 की एक स्टडी के मुताबिक, भारत में वायु प्रदूषण का मुख्य असर उत्पादकता और कृषि उत्पाद पर पड़ा है. मिडल इनकम वाले देशों में 7 फीसदी हेल्थकेयर खर्च की मुख्य वजह प्रदूषण ही है. यदि सरकार प्रदूषण रोकने/कम करने के लिए सख्त कदम उठाती है तो वास्तव में उत्पादन बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था को लाभ होगा.

आंख और फेफड़ों सहित स्वास्थ्य पर असर
इस दौरान आंख और फेफड़ों के मरीजों की संख्या भी बढ़ जाती है. नेत्रम आई फाउंडेशन की डॉक्टर आंचल गुप्ता ने कहा कि आंखों पर प्रदूषण की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है. ऐसे में लोगों को अपनी आंखों का ख्याल रखना चाहिए. आंखों की रोशनी और जलन न होने के लिए ख्याल रखना चाहिए. इसमें आंखों को बार-बार छूने से बचना चाहिए. वहीं सुबह-शाम बाहर निकलने से भी बचना चाहिए. 

इस दौरान अन्य मरीज जो कि पहले से ही डायबिटिज, दिल की बीमारियों या फिर त्वचा संबंधी रोग से परेशान हैं उनकी भी समस्या में इजाफा हो जाता है और ऐसे लोगों के परिवारों पर स्वास्थ्य के लिए खर्चे में बढ़ोतरी हो जाती है. भारत प्रदूषण से संबंधित मौत के मामले में दुनिया में सबसे ऊपर है. साल 2015 में दुनिया में प्रदूषण की वजह से 90 लाख लोगों की जानें गईं, जिनमें से 25 लाख भारतीय थे.

हर साल इसके कारण देश में 9 लाख 80 हजार असमय मौतें हो जाती हैं, वहीं 350,000 बच्चे अस्थमा से ग्रस्त हो जाते हैं. 24 लाख लोगों को हर साल इसके कारण होने वाली सांस की बीमारियों के चलते हॉस्पिटल जाना पड़ता है. साथ ही इसके कारण देश में हर साल 49 करोड़ काम के दिनों का नुकसान हो जाता है.

हर साल होने वाली 88 लाख मौतों के लिए जिम्मेवार है वायु प्रदूषण
गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी वायु प्रदूषण को स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़े पर्यावरण सम्बन्धी खतरे के रूप में चिन्हित किया है. आलम यह है कि दुनिया की करीब 90 फीसदी आबादी दूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है. रिपोर्ट के अनुसार हर साल 42 लाख मौतों के लिए सीधे तौर पर आउटडोर एयर पोल्युशन ही जिम्मेवार है जिनमें से करीब 90 फीसदी मौतें गरीब और मध्यवर्गीय देशों में ही होती हैं. जबकि आउटडोर और इंडोर एयर पोल्युशन से होने वाली मौतों के आंकड़ों को जोड़ दिया जाए तो इसके कारण हर साल करीब  88 लाख लोगों की मौत हो जाती है. इसके चलते शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य भी गिरता जा रहा है, परिणामस्वरूप हिंसा, अवसाद और आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं.

ये भी देखें---

Trending news