कचरा बनाएगा 'मालामाल', अगर देश में ही शुरू हो जाए रीसाइक्लिंग : रिपोर्ट
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कचरा बनाएगा 'मालामाल', अगर देश में ही शुरू हो जाए रीसाइक्लिंग : रिपोर्ट

खनिज और धातु क्षेत्र के जानकारों ने देश में पुरानी धातुओं की रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देने के लिए विशेष रीसाइक्लिंग जोन की स्थापना का सुझाव दिया है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली : खनिज और धातु क्षेत्र के जानकारों ने देश में पुरानी धातुओं की रीसाइक्लिंग (पुरानी धातु को गीला कर नई सामग्री बनाने) को बढ़ावा देने के लिए विशेष रीसाइक्लिंग जोन की स्थापना का सुझाव दिया है. उन्होंने इसे भविष्य में कच्चे माल, लागत और पर्यावरण की बढ़ती चुनौती की दृष्टि से महत्वपूर्ण बताया है. राजधानी के प्रगति मैदान में धातु, खनिज, सामग्री और धातु विज्ञान पर आयोजित 3 दिवसीय अंतराष्ट्रीय प्रदर्शनी एमएमएमएम-2018 में शामिल इन उद्योगों के कई जानकार लोगों ने कहा कि कच्चे माल की कीमतों में तेजी को देखते हुए धातु रीसाइक्लिंग उद्योग एक कारगर विकल्प हो सकता है. प्रदर्शनी की आयोजक इंटरनेशनल ट्रेड एंड एक्जिबिशंस इंडिया (आईटीईआई) के वित्त निदेशक संजीव बत्रा ने कहा, 'कच्चे माल की कीमतें नई ऊंचाइयां छू रही हैं, ऐसे में भारत में रीसाइक्लिंग धातु उद्योग की सफलता के लिए एक नई कुंजी साबित हो सकता है.'

भारत में अमेरिका और चीन की तरह रीसाइक्लिंग इकाइयों के लिए 'विशेष रूप से सामग्री रीसाइक्लिंग जोन स्थापित किए जाने चाहिए.' एमएमएमएम-18 के दौरान चर्चा के विषयों में रीसाइक्लिंग उद्योग को भी प्रमुख विषयों में शामिल किया गया है. बत्रा ने एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि, एक टन स्टील स्क्रैप की रीसाइक्लिंग 1.2 टन लौह अयस्क, 0.7 टन कोयला, 0.5 टन चूना पत्थर और 287 लीटर ईंधन तेल बचाती है. इसके साथ ही इससे 2.3 घन मीटर लैंडफिल की जरूरत कम होती है. पानी की खपत में 40 प्रतिशत और कार्बनडाई आक्साइड उत्सर्जन में भी 58 प्रतिशत कमी होती है.'

निजी क्षेत्र की इस्पात विनिर्माता जेएसडब्ल्यू सटील लि. के उप प्रबंध निदेशक डा विनोद नोवाल ने कहा, 'भारत में अभी स्ट्रील स्क्रैप की स्थिति नहीं आई है. अभी इस्तेमाल हो रहे इस्पात को स्क्रैप करने (भंगार में डालने) में 20-25 साल का समय लगेगा.' देश में स्क्रैप की उपलब्धता की कमी के कारण पुराना लोहा गला कर इस्पात बनाने वाली सेकंड्री इस्पात इकाइयां भारी मात्रा में गलाने वाला लोहा स्क्रैप आयात करती हैं. उद्योग जगत की रपटों के अनुसार भारत में गलाने के लिए सालाना करीब सवा दो करोड़ टन लोहे के स्क्रैप का आयात किया जाता है.

बत्रा ने कहा, 'भारत में रीसाइक्लिंग संगठनात्मक अक्षमताओं, प्रोत्साहन की विसंगतियों, जर्जर आधारभूत संरचना और कर्ज सुविधा की कमी के करण संभावनाओं के अनुरूप बढ़ नहीं पा रहा है.' उन्होंने कहा कि भारत में रीसाइक्लिंग उद्योग को प्रोत्साहित किया जाए तो यह 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद में 11 प्रतिशत का योगदान कर सकता है और इस दौरान 14 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त बचत भी हो सकती है. श्रम गहन होने के करण इस क्षेत्र में रोजगार के अवसरों की भी बड़ी संभावना है.

इनपुट एजेंसी से

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