सिंगूर जमीन विवाद में 15 साल बाद टाटा की बड़ी जीत, ममता सरकार को देने होंगे 766 करोड़
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सिंगूर जमीन विवाद में 15 साल बाद टाटा की बड़ी जीत, ममता सरकार को देने होंगे 766 करोड़

Tata Motors Singur-Nano Project Case: टाटा मोटर्स (Tata Motors) को आज बड़ी सफलता मिली है. पश्चिम बंगाल के सिंगूर जमीन विवाद (Singur-Nano Project Case) में टाटा मोटर्स की जीत हुई है.

सिंगूर जमीन विवाद में 15 साल बाद टाटा की बड़ी जीत, ममता सरकार को देने होंगे 766 करोड़

Tata Motors Singur-Nano Project Case: टाटा मोटर्स (Tata Motors) को आज बड़ी सफलता मिली है. पश्चिम बंगाल के सिंगूर जमीन विवाद (Singur-Nano Project Case) में टाटा मोटर्स की जीत हुई है. अब इस जीत के बाद में बंगाल सरकार को टाटा मोटर्स को 766 करोड़ रुपये देने होंगे.

टाटा मोटर्स लिमिटेड ने कहा कि एक मध्यस्थता पैनल ने सिंगूर-नैनो प्रोजेक्ट केस में ग्रुप के हक में फैसला सुनाया है, जिसके बाद में राज्य सरकार को सितंबर 2016 से 11 फीसदी की दर से ब्याज के साथ 766 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान करना है. 

बंगाल से गुजरात शिफ्ट करना पड़ा था प्लांट

सिंगूर प्लांट में हुए जमीन विवाद के बाद में टाटा मोटर्स को अक्टूबर 2008 में अपनी छोटी कार नैनो की मैन्युफैक्चरिंग को पश्चिम बंगाल के सिंगूर से गुजरात के साणंद में शिफ्ट करना पड़ा था. वहीं, तब तक टाटा मोटर्स अपने सिंगूर प्लांट में तब तक करीब 1000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का निवेश कर चुकी थी. 

ट्वीट से मिली ये जानकारी

टाटा मोटर्स का कहना है कि तीन-सदस्यीय पंचाट न्यायाधिकरण ने हमारे हक में फैसला सुनाया है. जिसके तहत दावेदार टाटा मोटर्स लिमिटेड (TML) को हकदार माना गया है. 1 सितंबर 2016 से वास्तविक वसूली तक 11 फीसदी प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ 765.78 करोड़ रुपये की राशि मिलेगी. दावेदार टाटा मोटर्स लिमिटेड (TML) को भी रेंस्पोंडेट (WBIDC) से वसूली का हकदार माना गया है. कार्यवाही की लागत करीब 1 करोड़ रुपये है. 

क्या था विवाद?

18 मई 2006 को टाटा ग्रुप के अध्यक्ष रतन टाटा ने पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और तत्कालीन वाणिज्य राज्य मंत्री निरुपम सेन के साथ एक बैठक के बाज में सिंगूर में टाटा मोटर्स की छोटी कार का प्रोजेक्ट लगाने का ऐलान किया था. इस फैसले के बाद में प्रोजेक्ट के लिए 1 हजार एकड़ जमीन खरीदने की प्रक्रिया शुरू की गई थी. 

इस केस में साल 2006 में मई से जुलाई के बीच में हुगली जिला प्रशासन की तरफ से 3 बार सर्वदलीय बैठक को बुलाया गया था. इसका तृणमूल कांग्रेस ने पूरी तरह से विरोध किया था.

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