Govt Schools of India: डिजिटल युग में सरकारी शिक्षा विभाग को गंभीर सुधारों की आवश्यकता है. विभाग स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने में असफल रहा है. वहीं, स्कूलों में योग्य और पर्याप्त शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो रही है. इसके अलावा ड्रॉपआउट दर में भी चिंताजनक वृद्धि हो रही है.
Trending Photos
Govt Schools of India: जब भारत डिजिटल युग की ओर तेजी से बढ़ रहा है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में कदम रख चुका है, वहीं सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर संकट मंडरा रहा है. बच्चों के नामांकन में गिरावट, ड्रॉपआउट दर में वृद्धि और स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी जैसे मुद्दे सरकारी शिक्षा प्रणाली की दुर्दशा को उजागर कर रहे हैं.
बुनियादी सुविधाओं का अभाव: डिजिटल इंडिया के सरकारी स्कूल
भारत में जहां डिजिटल इंडिया और स्मार्ट क्लासेज की बातें की जा रही हैं, वहीं सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर और इंटरनेट जैसी बुनियादी सुविधाएं अभी भी अधूरी हैं.
Unified District Information System for Education (UDISE) के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में केवल 57.2% सरकारी स्कूलों में ही कंप्यूटर उपलब्ध हैं और सिर्फ 53.9% स्कूलों में इंटरनेट कनेक्शन है. हालांकि, केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, 90% से अधिक स्कूलों में बिजली और शौचालय की सुविधाएं हैं, लेकिन सिर्फ 52.3% स्कूलों में दिव्यांग बच्चों के लिए रैंप की व्यवस्था है.
कम होता नामांकन और बढ़ता ड्रॉपआउट रेट
सरकारी स्कूलों में छात्रों के नामांकन में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है. 2023-24 में, सरकारी स्कूलों में कुल छात्रों की संख्या में 37 लाख की कमी आई है. जहां देश की आबादी और गरीबी दोनों बढ़ रही हैं, लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने से कतराने लगे हैं.
ड्रॉपआउट दर में भी हो रही है चिंताजनक वृद्धि
मिडिल स्कूल (कक्षा 6 से 8) में ड्रॉपआउट रेट 5.2% से बढ़कर 10.9% हो गया है. पहले, हर 100 छात्रों में से केवल 5 बच्चे कक्षा 9 में दाखिला नहीं लेते थे. अब यह संख्या 11 हो गई है. यह दर्शाता है कि कक्षा 8 के बाद शिक्षा छोड़ने वाले छात्रों की संख्या 2 गुना से अधिक हो चुकी है.
शिक्षकों की स्थिति: योग्य और पर्याप्त शिक्षक नहीं
सरकारी स्कूलों में शिक्षक तो हैं, लेकिन उनकी योग्यता और संख्या पर सवाल खड़े हो रहे हैं. कई स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं. जो शिक्षक हैं, उनमें से बड़ी संख्या में उनकी शैक्षणिक योग्यता मानकों पर खरी नहीं उतरती. परिणामस्वरूप, छात्रों की पढ़ाई और प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.
नई शिक्षा नीति 2020 के बावजूद गिरावट
नई शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) का उद्देश्य शिक्षा के स्तर में सुधार करना था. लेकिन, इसके बावजूद सरकारी स्कूलों के आंकड़े और गिरावट की ओर इशारा कर रहे हैं. कंप्यूटर और इंटरनेट जैसी डिजिटल सुविधाएं अधिकांश स्कूलों में उपलब्ध नहीं हैं. बच्चों के नामांकन और ड्रॉपआउट दर में गिरावट ने नीति के उद्देश्यों पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
क्या सरकारी शिक्षा विभाग सिर्फ एक एजेंसी बनकर रह जाएगा?
अगर सरकारी स्कूलों की यह स्थिति जारी रही, तो आने वाले वर्षों में शिक्षा विभाग केवल एक परीक्षा आयोजित करने वाली और प्राइवेट स्कूलों को मान्यता देने वाली एजेंसी बनकर रह जाएगा. सरकारी स्कूलों का मूल उद्देश्य – शिक्षा प्रदान करना – धीरे-धीरे समाप्त होता दिख रहा है.