Abdul Hamid: भारत के शहीद अब्दुल हमीद की कहानी, जिसने अकेले ही पाकिस्तान के 7 टैंकों को उड़ाया था
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Abdul Hamid: भारत के शहीद अब्दुल हमीद की कहानी, जिसने अकेले ही पाकिस्तान के 7 टैंकों को उड़ाया था

Havildar Abdul Hamid: युद्ध के दौरान भारतीय सेना के हवलदार अब्दुल हमीद एक जीप से रिकोलेस गन्स की टुकड़ी को लीड किया था.

Abdul Hamid: भारत के शहीद अब्दुल हमीद की कहानी, जिसने अकेले ही पाकिस्तान के 7 टैंकों को उड़ाया था

Battle of Asal Uttar Abdul Hamid: भारतीय सेना के वीर जवान, हवलदार अब्दुल हमीद, जिन्होंने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अदम्य साहस और वीरता का परिचय देते हुए शहीद होने से पहले दुश्मन के टैंक नेस्तनाबूद कर दिए थे. उनकी वीरता की कहानी आज भी भारत के वीर सपूतों को प्रेरित करती है. 

साल 1965 था,  पाकिस्तानी सेना ने पंजाब के असल उत्तर में बख्तरबंद डिवीजन के साथ हमला कर दिया था. ये वो एरिया था जिसे पाकिस्तान अपने कब्जे में लेना चाहता था, लेकिन भारत की सेना ने जब पाकिस्तान की सेना को जवाब दिया तो पाक सेना को मैदान छोड़कर भागना पड़ा. जब यह युद्ध हुआ था तब पाक सेना के कई पैटन टैंकों को भारतीय सेन ने नेस्तानाबूत कर दिया था. भारतीय सेना ने इस जंग में पाकिस्तानी सेना के 97 टैंकों को तबाह कर दिया था. जिनमें से हवलदार अब्दुल हमीद ने अकेले 7 पाक टैंकों को तबाह किया था.

युद्ध के दौरान भारतीय सेना के हवलदार अब्दुल हमीद एक जीप से रिकोलेस गन्स की टुकड़ी को लीड कर रहे थे. ये टुकड़ी असल उत्तर के आसपास के गांव के खेतों से पाक सेना के टैंकों को अपना निशाना बना रही थी. दरअसल पाकिस्तानी टुकड़ी टोही के लिए खेमकरण-भिक्किविंड के रास्ते से नीचे आ रहे थे. भारतीय सेना के हमले में पाकिस्तानी आर्टिलरी कमांडर, ब्रिगेडियर एआर शमी मारे गए और उनके शरीर को भारतीय सैनिकों ने पूरे सैन्य सम्मान के साथ युद्ध के मैदान में दफना दिया. 

इसके बाद हवलदार अब्दुल हमीद भी उसी इलाके में पाकिस्तान के पैटन टैंकों को निशाना बनाया. उन्होंने गन्ने के खेतों में 7 पाकिस्तानी टैंकों को बहुत ही कम दूरी से हमला करते हुए उड़ा दिया था. इस दौरान वे दुश्मन के एक टैंक की चपेट में आ गए और उनकी जीप पर सीधी टक्कर लगने से वे देश के लिए लड़ते-लड़ते शहीद हो गए.

अब्दुल हमीद का जन्म 1 जुलाई 1933 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के धमुपुर गांव में हुआ था. वे एक साधारण किसान परिवार से थे. 1954 में, 21 साल की उम्र में, अब्दुल हमीद ने भारतीय सेना में शामिल होने का फैसला लिया. उन्हें 4 ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट में नियुक्त किया गया. जल्द ही, वे अपनी वीरता और अनुशासन के लिए जाने गए. 1965 में, जब पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया, तब हवलदार अब्दुल हमीद ने अपनी बहादुरी का प्रदर्शन किया. शहीद अब्दुल हमीद की कब्र की देखभाल सेना की 7वीं इन्फैंट्री डिवीजन करती है और हर साल युद्ध नायक के सम्मान में एक समारोह आयोजित किया जाता है.

वीरता सम्मान
अपनी अदम्य वीरता के लिए, हवलदार अब्दुल हमीद को मरणोपरांत भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान, परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.

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