Working Hours: 7 दिन में 70 घंटे की नौकरी कौन करेगा? नारायण मूर्ति के आइडिया पर छिड़ गई बहस
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Working Hours: 7 दिन में 70 घंटे की नौकरी कौन करेगा? नारायण मूर्ति के आइडिया पर छिड़ गई बहस

Work Culture: नारायण मूर्ति ने यह सुझाव दिया कि देश के युवा को रोजाना करीब 12 घंटे काम करना चाहिए. उन्होंने कहा था, "जब युवा हफ्ते में 70 घंटे काम करेंगे, तभी भारत आगे निकल पाएगा." उनकी इस बात से पूरे देश में हंगामा मचा है. 

Working Hours: 7 दिन में 70 घंटे की नौकरी कौन करेगा? नारायण मूर्ति के आइडिया पर छिड़ गई बहस

Working Hours In India: हाल ही में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया गया. जो हर साल 10 अक्टूबर को जागरूकता पैदा करने और किसी के जीवन और समाज में मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है. आज की लाइफस्टाइल को देखते हुए इस दिवस के बहुत मायने हैं.  ऐसे में देश के लोगों के लिए नारायणमूर्ति जैसे आइकन का युवाओं को 70 घंटे काम करने की सलाह ने लोगों के मन में कई तरह के सवाल खड़े कर दिए हैं. 

पहले अपने मानसिक सुकून को नजरअंदाज करके और कैपेसिटी से ज्यादा काम करके अपनी हेल्थ बिगाड़ो फिर उसे ठीक करने के लिए पैसा बहाओ, इस कॉन्सेप्ट से ज्यादातर लोग एग्री नहीं करते होंगे. जहां देश-दुनिया में सप्ताह में केवल 4 दिन काम करने की बात पर बहस छिड़ी है. वहीं, इन दिनों इन्फोसिस के को-फाउंडर नारायणमूर्ति के इस स्टेटमेंट पर गजब का बवाल मचा हुआ है. 

देश की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी के को-फाउंडर नारायण मूर्ति ने यह सुझाव दिया है, "विकसित देशों से कंधा मिलने के लिए भारत के युवाओं को हफ्ते में 70 घंटे काम करने की जरूरत है. नारायण मूर्ति ने जर्मनी और जापान की घटनाओं से सबक लेते हुए कहा है, "द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब इन देशों की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी थी, तब जर्मनी और जापान में युवाओं के लिए इसी तरह के प्रावधान शुरू किए गए थे. इसी वजह से आज वह देश विकसित देशों की कतार में सबसे आगे खड़े हैं."
 
जापान में कंपनी वर्क कल्चर
ऐसे में लोगों का कहना है कि नारायण मूर्ति ने जर्मनी और जापान की घटनाओं से सबक लेते हुए ये सलाह दी है तो क्या उन्हें नहीं पता अब वहां की सरकार युवाओं पर कितना खर्च कर रही है? जापान के वर्किंग कल्चर में अनुशासन, पारिवारिक जुड़ाव, आपसी परवाह, प्रतिबद्धता और जिम्मेदारी की झलक देखने को मिलती है.

जापान के कंपनी मैनेजमेंट पर लिखी गई एक किताब 'थ्योरी ज़ेड' के मुताबिक कंपनी और कर्मचारी का नाता केवल 8 घंटों का नहीं होता. कंपनी को उसकी निजी जिंदगी के बारे में भी परवाह करनी चाहिए. किसी भी देश की सामूहिक व्यवस्थाएं वहां के व्यक्तिगत जीवन मूल्यों का प्रतिबिंब होती हैं. 

सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस
देशभर के पेशेवर और दिग्गज दो धड़ों में बंट चुके हैं. चेतन भगत, JSW Group के चेयरमैन सज्जन जिंदल आदि ने भी नारायण मूर्ति की बात पर अपनी-अपनी राय रखी है. वहीं, सोशल मीडिया पर भी इस विषय पर चर्चा जोरों पर हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर यूजर्स ने अपनी प्रतिक्रियाएं दी है. जहां कई लोग उनकी इस बात से भड़के हुए हैं तो कुछ लोग उनके इस बात से सहमती रखते हैं. 

सोशल मीडिया पर पोस्ट और कमेंट्स की बाढ़
एक यूजर ने लिखा है, "भारत में युवा बेरोजगारी 45 फीसदी है. शायद, हम सप्ताह में 40 घंटे काम करने वाले 2 कर्मचारियों को नियोजित कर सकते हैं? आइए नवउदारवाद और अमेरिका के क्रूर पूंजीवाद को अस्वीकार करें."

एक यूजर ने कटाक्ष करते हुए नारायणमूर्ति को यह तक कह डाला कि इन्फोसिस के कर्मचारी पिछले 5 वर्षों से केवल 3.6 लाख रुपये सालाना कमाई कर रहे हैं. 
 
केरल के एक यूजर लिखते हैं, "मिस्टर और मिसेज मूर्ति भारतीयों को गुलाम की तरह काम करना और गुलाम की तरह रहना सिखाते हैं."...क्या घातक जोड़ी है!

एक यूजर ने नारायणमूर्ति को सलाह देते हुए यह कहा, "उन्हें मुंबई लोकल ट्रेन में सफर करके देखना चाहिए, जिसमें लोगों की जिंदगी सफर में ही निकल जाती है."

एक यूजर लिखते हैं, "उन्होंने सरकार के लिए काम किया. प्रगति की परवाह किसे नहीं है, क्योंकि वे नागरिकों की मेहनत की कमाई से टैक्स के रूप में पैसा आसानी से प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन प्राइवेट सेक्टर में वही कहानी नहीं होती है, यहां आपको कड़ी मेहनत करनी होगी, वरना आपकी जगह कोई और ले लेगा."

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