Maharana Pratap: महाराणा प्रताप ने 32 साल की उम्र में संभाला सिंहासन, फिर अकबर के साथ युद्ध
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Maharana Pratap: महाराणा प्रताप ने 32 साल की उम्र में संभाला सिंहासन, फिर अकबर के साथ युद्ध

Maharana Pratap Life: हल्दीघाटी, 1576 में लड़ी गई लड़ाई, महाराणा प्रताप की अदम्य भावना के प्रमाण के रूप में खड़ी है.

Maharana Pratap: महाराणा प्रताप ने 32 साल की उम्र में संभाला सिंहासन, फिर अकबर के साथ युद्ध

Maharana Pratap Death Anniversary 2024: आज 19 जनवरी 2024 का दिन खास है. आज मेवाड़ के वीर राजा महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि है. महाराणा प्रताप  का  शासन काल 1572 से 1597 तक था. हालांकि उनका जीवन 19 जनवरी, 1597 को समाप्त हो गया, लेकिन उनकी किंवदंती आज भी जीवित है, विशेष रूप से हल्दीघाटी के महाकाव्य युद्ध की कहानी में.

1540 में राजस्थान के कुंभलगढ़ में जन्मे प्रताप को उनकी मां महारानी जयवंता बाई ने युद्ध के लिए तैयार किया था. जब वह अपने पिता उदय सिंह द्वितीय की मृत्यु के बाद 32 साल की उम्र में सिंहासन पर बैठे, तो उन्हें एक दुर्जेय प्रतिद्वंद्वी - अकबर के नेतृत्व वाले मुगल साम्राज्य का सामना करना पड़ा.

हल्दीघाटी, 1576 में लड़ी गई लड़ाई, महाराणा प्रताप की अदम्य भावना के प्रमाण के रूप में खड़ी है. संख्या में कम होने के बावजूद, मेवाड़ सेना ने एक खतरनाक पहाड़ी दर्रे के जोखिम भरे इलाके में भयंकर संघर्ष किया. रणनीतिक जीत हासिल करने के बावजूद अकबर, महाराणा प्रताप की भावना को वश में करने में विफल रहा. राजा बच गए, उन्होंने उनकी वफादारी को उनके प्रसिद्ध घोड़े चेतक ने बचा लिया.

जबकि मेवाड़ का हृदय चित्तौड़ मायावी बना रहा, महाराणा प्रताप ने जरूरी क्षेत्रों पर फिर कब्ज़ा कर लिया. विशेष रूप से, उनके बेटे अमर सिंह प्रथम ने अंततः चित्तौड़ तक पहुंच प्राप्त करते हुए मुगलों के साथ युद्धविराम पर बातचीत की.

महाराणा प्रताप की अपने सिद्धांतों के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता और मुगल अधीनता को स्वीकार करने से इनकार ने, उन्हें प्रतिरोध और वीरता का प्रतीक बना दिया. भले ही उन्हें जरूरी सैन्य असफलताओं का सामना करना पड़ा, उनकी विरासत पीढ़ियों तक कायम रही, जिससे अनगिनत लोगों को अपनी मान्यताओं के लिए खड़े होने और अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करने की प्रेरणा मिली.

साल 1596 यह वह समय था, जब महाराणा प्रताप अपने सभी पुत्रों के साथ शिकार पर जंगल की ओर निकले थे. तभी एक शेर ने राणा प्रताप पर आक्रमण कर दिया. इस पर महाराणा प्रताप ने शेर पर अपने तीर निशाना लगाया. हुकुम ने धनुष की प्रत्यंचा को इतनी जोर से खींचा कि उनके पेट पर तनाव पड़ गया. यह तनाव वक्त के साथ गंभीर होता चला गया. और अंततः 19 जनवरी 1597 को चावंड में महान वीर योद्धा राणा प्रताप सिंह ने जीवन की अंतिम सांस ली. चावंड से दो किमी दूर वाढोली नामक गांव में महाराणा प्रताप का अंतिम संस्कार किया गया. 

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