Namrata Luhar: नम्रता लुहार ने मजह 35 रुपये में ग्रेजुएशन से लेकर पीएचडी तक की पूरी पढ़ाई कर ली. इसके बाद उन्होंने LLB और LLM किया, जिसमें वह गोल्ड मेडलिस्ट रहीं. आज वह उसी यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट डायरेक्टर हैं, जहां से उन्होंने पढ़ाई की थी.
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Namrata Luhar Success Story: आज हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में बताएंगे, जो बचपन से पढ़ाई में एवरेज और खुद में खोई रहती थीं, जिनका नाम उनके दोस्तों ने "साइलेंट गर्ल" रख दिया था, वह आज बच्चों से भरी क्लास में बिना डरे लेक्चर देती हैं. उन्हें इस मुकाम तक पहुंचने में कई बाधाओं और तकलीफों का सामना करना पड़ा, लेकिन आज वह अपने दम पर दुनियाभर में नाम कमा रही हैं और वह बहुत से लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई हैं.
दरअसल, नम्रता बचपन में बहुत शर्मीली थीं. स्कूल में उनका नाम तक 'साइलेंट गर्ल' पड़ गया था. इसके अलावा वह पढ़ाई में भी एवरेज ही थी. कक्षा 8वीं तक उन्होंने खीच-तीर कर पढ़ाई की और 8वीं में केवल 50 प्रतिशत तक ही अंक हासिल कर पाई. दरअसल, नम्रता की मैथ्स और इंग्लिश अच्छी नहीं थी, लेकिन 8वीं के बाद उनके जीवन में एक बदलाव आया. नम्रता के पड़ोस में रहने वाले शमीम हुसैन ने उनकी पढ़ाई में काफी मदद की. वह एयरफोर्स में थे. वह ड्यूटी से लौटने के बाद नम्रता को पढ़ाया करते थे और इसी की बदौतल कक्षा 9वीं में उनके मार्क्स सुधर गए. धीरे-धीरे वह क्लास में टॉप करने लगी, जिससे उनका आत्मविश्वास भी बढ़ा.
स्कूल में ही लॉ पढ़ने की सोची
नम्रता बताती हैं कि वह घर में 4 बहनों में सबसे छोटी हैं. वह पढ़ाई में कहीं अटकती थी, तो वह उनसे मदद ले लेती थी. इसके अलावा वह स्कूल में दूसरे छात्रों के साथ भी डिस्कशन किया करती थी. जब नम्रता पढ़ाई में अच्छा करने लगीं, तब उनके मन में ख्याल आया कि उन्हें लॉ (Law) की पढ़ाई करनी चाहिए.
35 रुपये में की ग्रेजुएशन से लेकर PhD तक पढ़ाई
हालांकि, स्कूलिंग पूरी करने के बाद नम्रता ने महाराज सयाजी राव यूनिवर्सिटी में बीकॉम (B.com) में एडमिशन ले लिया. दरअसल, नम्रता कहती हैं कि उनके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, इसलिए वह किसी बड़ी यूनिवर्सिटी में जाकर नहीं पढ़ सकीं. इसलिए उन्होंने महाराज सयाजी राव यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लिया, क्योंकि यहां लड़कियों के लिए शिक्षा हासिल करने बिल्कुल मुफ्त है. यहां लड़कियों की कोई फीस नहीं लगती है. नम्रता बताती हैं कि उन्होंने यहीं से 35 रुपये में ग्रेजुएशन से लेकर पीएचडी तक की पढ़ाई पूरी की है.
टीचिंग में करियर बनाने का हुआ एहसास
वहीं, नम्रता जब सेकेंड ईयर में थी, तब उन्होंने पास के एक स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया. स्टूडेंट के साथ रोजाना बातचीत करने से उन्होंने लोगों के साथ घुलना-मिलना सीखा और वह लोगों से काफी बोलने भी लगीं. इसलिए उन्होंने स्कूल के बाद ट्यूशन भी पढ़ाना शुरू कर दिया. इसके बाद ही नम्रता को एहसास हुआ कि वह टीचिंग में ही अपना करियर बना सकती हैं.
LLB और LLM में रहीं गोल्ड मेडलिस्ट
नम्रता ने बीकॉम में एडमिशन ले लिया और साथ ही टीचिंग भी कर रही थी, लेकिन उनके नम में लॉ करने की इच्छा स्कूल से ही थी. इसलिए उन्होंने बीकॉम कम्पलीट करने के बाद साल 2002 में एलएलबी (LLB) और साल 2004 में बिजनेस लॉ में एलएलएम (LLM in Business Law) किया. नम्रता ने दोनों ही कोर्स में पूरे वडोदरा में टॉप किया और साथ ही गोल्ड मेडलिस्ट भी रहीं. इसके बाद उन्होंने महाराजा सयाजी राव यूनिवर्सिटी से 'लॉज रिलेटेड टू राइट टू हेल्थ' विषय पर पीएचडी की.
आज नेट क्लियर किया और अगले दिन से क्लास लेना शुरू कर दिया
हालांकि, जब नम्रता एलएलएम के फाइनल ईयर में थी, तब उन्होंने 'नेट' की परीक्षा क्लियर कर ली. जिस शाम नेट का रिजल्ट जारी हुआ, उसी समय महाराजा सयाजी राव यूनिवर्सिटी के डीन सैय्यद मकसूद ने नम्रता से कहा कि कल सुबह 8 बजे तुम्हे कॉमर्स फैकल्टी में बिजनेस लॉ की क्लास लेनी है. नम्रता शुरू से ही टीचिंग में करियर बनाना चाहती थी, इसलिए वह यह बात सुनकर काफी खुश थीं. रिजल्ट आने के दूसरे दिन ही उन्होंने पढ़ाना शुरू कर दिया.
नम्रता बताती हैं कि वह डीन सैय्यद मकसूद की बात सुनकर सारी रीत सो नहीं पाई थीं, क्योंकि वह पूरी रात पढ़ाने की तैयारी ही कर रही थीं. उन्होंने सालभर पढ़ाने के दौरान टीचिंग की बारीकियों के बारे में काफी सीखा और अपनी कमियां दूर की.
वहीं, पीएचडी करने के तुरंत बाद नम्रता को महाराजा सयाजी राव यूनिवर्सिटी के ही "लॉ फैकल्टी" में असिस्टेंट डायरेक्टर बना दिया गया. नम्रता यूनिवर्सिटी के कॉरपोरेट अफेयर्स में को-ऑर्डिनेटर भी रहीं.
लॉ की फील्ड में लड़कियों की संख्या बढ़ी
नम्रता बताती हैं कि लॉ की फील्ड में पिछले 15 से 20 सालों में काफी बदलाव आया है. पहले इस फील्ड में पुरुषों का काफी दबदबा था, लेकिन अब लड़कियां भी इसे करियर के तौर पर अपना रही हैं. लॉ की क्लास में अब लड़के और लड़कियों की संख्या लगभग बराबर है. पहले जहां एक समय कोर्ट में गिनी-चुनी महिला वकील होती थी, वहीं आज उनकी संख्या काफी बढ़ गई है.
लॉ पढ़ाना काफी चुनौतीपू्र्ण
लॉ की पढ़ाई को लेकर नम्रता ने अपने विचार साझा किए हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वकालत पढ़ाना दूसरे किसी अन्य फील्ड के मुकाबले काफी चुनौतीपू्र्ण है. लगातार नए-नए कानून आते रहते हैं. वहीं, कानूनों में संशोधन भी होते हैं. अदालतों के नए फैसले आते हैं, जिनके बारे में बच्चों को पढ़ाना पड़ता है और उसके बारे में अपडेट देनी पड़ती है. इसलिए खुद को भी नई जानकारी के साथ अपडेट रखना पड़ता है.
टॉपिक्स को पढ़ाने से पहले रेफरेंस देखना, वेबसाइट चेक करना, यह सब लगातार चलता रहता है. किसी चीज को कितनी देर तक पढ़ रही हूं, उसका कोई फिक्स टाइम नहीं रहता है. कई बार तो खुद की भी सुध-बुध नहीं रहती है.
इस फील्ड में है नम्रता का इंटरेस्ट
इसके अलावा नम्रता बताती हैं कि लीगल रिसर्च उनका पसंदीदा विषय है. महिलाओं के अधिकार, चाइल्ड राइट्स, हिन्दू लॉज, इंटेलेक्चुअल प्रोपर्टी राइट्स जैसे विषयों पर एनालिसिस करना उन्हें अच्छा लगता है. नम्रता ने 'प्रिवेंशन ऑफ सेक्शुअल हैरसमेंट एट वर्कप्लेस' पर भी कई सेशंस किए हैं. नाबालिग रेप विक्टम के अबॉर्शन में कितनी मुश्किलें आती हैं, इनसे जुड़े कानून क्या हैं, नम्रता ने इन सभी का एनालिसिस किया है.
तलाक के बाद पिछले 10 साल से हैं सिंगल
नम्रता का करियर तो काफी अच्छा चला, लेकिन उनकी शादी लंबे समय तक नहीं चल पाई. नम्रता ने साल 2002 में शादी की, लेकिन रिश्ते में अनबन के चलते साल 2013 में उनका तलाक हो गया. नम्रता पिछले करीब 10 सालों से सिंगल हैं. लोग आज भी नम्रता से पूछते हैं कि वह अपने पति से क्यों अलग हुईं, लेकिन वह इस पर किसी को कोई जवाब नहीं देती हैं. उनका कहना है कि उनकी अपने पति से नहीं बनीं और उसके नसीब में पति से अलगाव लिखा था, सो हो गया.
नहीं की दूसरी शादी
वहीं नम्रता के जीवन में दूसरी शादी के भी कई प्रस्ताव आए, लेकिन उन्होंने इससे साफ इंकार कर दिया. वह कहती हैं कि उनका कोई भाई नहीं है, इसलिए उन्होंने शादी करने के बजाय अपना मां की देखभाल करने का फैसला लिया.
हर महीने आती सैलरी ने डिप्रेशन से निकाला
इसके अलावा उन्होंने कहा कि वह पिछले 11 सालों से सिंगल इसलिए रह पाई, क्योंकि वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं. वरना सिंगल वुमन को कहां कोई स्वीकारता है. जब पति से अलग हुई, तो डिप्रेशन में चली गई, लेकिन नौकरी चल रही थी, क्लासेस भी ले रही थी, बच्चों से भी बातचीत होती थी और सबसे बड़ी चीज थी कि हर महीने सैलरी आ रही थी. इसलिए जल्द ही डिप्रेशन से बाहर आ पाई.
नम्रता की मानना है कि चाहे किसी का पति करोड़ों क्यों ना कमाता हो, मगर औरत के खाते में हर महीने सैलरी आएगी, तब जाकर वह कहीं मजबूत बन पाएगी. क्योंकि घर में जो कमाएगा, वही अपने फैसले ले पाएगा. वहीं, औरतें अगर पति के पैसों पर निर्भर रहेंगी, तो अपनी मर्जी का कभी कुछ नहीं कर पाएंगी.
उनका कहना है कि आर्थिक आत्मनिर्भरता से ही मजबूती आती है और आत्मविश्वास भी बढ़ता है. इसके अलावा फैसले लेने का खुद पर भरोसा पैदा होता है. इसलिए वह कहती हैं कि आज के समय में हर महिला को अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए.
पिता ने बेटियों को बेटों की तरह पढ़ाया
नम्रता ने अपने पिता के बारे में बताते हुए कहा कि वह काफी पढ़े-लिखे थे. उन्होंने कंपनी सेक्रेटरी (CS) और आईसीडब्ल्यूए (ICWA) किया था. बड़ौदा में वह लंबे समय तक कॉरपोरेट में रहे. वहीं, करीब 10 सालों तक वह गोवा में भी रहे और वहीं नम्रता और उनकी बहनों का भी जन्म हुआ. उन्होंने अपनी चारों बेटियों को बेटों की तरह पढ़ाया. पढ़ने के लिए हमेशा प्रोत्साहित भी किया.