अगर ऑफिस में डबल मीनिंग बातों से होती हैं परेशान, तो शिकायत करने में झिझक क्यों? ये गाइडलाइंस दिमाग में कर लें फिट
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अगर ऑफिस में डबल मीनिंग बातों से होती हैं परेशान, तो शिकायत करने में झिझक क्यों? ये गाइडलाइंस दिमाग में कर लें फिट

Vishaka Guidelines: कई महिलाएं यह जानती ही नहीं कि अगर वर्कप्लेस पर यौन शोषण होता है तो इसकी शिकायत कहां और कैसे कर सकते हैं. कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाली ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा गाइडलाइंस जारी की थीं. जानिए यहां...

अगर ऑफिस में डबल मीनिंग बातों से होती हैं परेशान, तो शिकायत करने में झिझक क्यों? ये गाइडलाइंस दिमाग में कर लें फिट

Sexual Harassment At Workplace: महिलाओं से छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न के मामले लगातार सामने आ रहे हैं और अब तो इस तरह की खबरें सुनाई देना जैसे यह आम बात होती जा रही है. स्कूल-कॉलेज, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, हॉस्पिटल, ऑफिस, मॉल जैसे हर पब्लिक प्लेस में घूरती गंदी नजरों और अनचाहे टच के कारण महिलाओं असहज महसूस करती हैं. बदलते दौर में अपने दिन का ज्यादातर हिस्सा वर्कप्लेस पर बिताने वाली महिलाएं अक्सर ऐसी घटनाओं का जिक्र करती हैं. 

कभी कोई सहकर्मी डर्टी जोक्स सुनाता है तो कभी कोई डबल मीनिंग बातें करता है, लेकिन लड़कियों को तो बचपन से यही सिखाया जाता है कि ऐसी बातों पर रिएक्ट करने की बजाए खुद ही बाहर हो जाना चाहिए, लेकिन कब तक. कभी शर्म तो कभी डर के कारण महिलाएं अपने सहकर्मियों की शिकायत करने में झिझकती हैं. 

विशाखा गाइडलाइंस
साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने वर्कप्लेस पर महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न के खिलाफ कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे. ताकि महिलाओं के खिलाफ होने वाली छेड़छाड़ पर लगाम कसी जाए. इसे विशाखा गाइडलाइंस नाम दिया गया. इसके तहत महिलाएं अपने साथ हुए सेक्सुअल हरासमेंट की शिकायत दर्ज करवा सकती हैं. 

कामकाजी महिलाओं का अधिकार
विशाखा गाइडलाइंस में किसी महिला को गलत तरीके से छूना, गलत तरीके से देखना, घूरना, यौन संबंध बनाने के लिए कहना, अश्लील टिप्पणी, गंदे इशारे करना, अश्लील चुटकुले भेजना या सुनाना, एडल्ट फिल्में दिखाना जैसी उन तमाम हरकतों को इस दायरे में रखा गया है, जिनसे कोई महिला असहज महसूस कर सकती है.

हर कंपनी के लिए जरूरी रूल 

  • विशाखा गाइडलाइन के तहत 10 या इससे ज्यादा एंप्लॉइज वाली हर कंपनी में इंटरनल कंप्लेंट्स कमिटी (ICC) बनाना जरूरी है.
  • इस कमेटी की अध्यक्ष महिला होगी और आधी से ज्यादा मेंबर भी महिलाएं ही होंगी.
  • यौन शोषण के मुद्दों पर काम कर रहे किसी एनजीओ की एक महिला प्रतिनिधि को इस कमेटी का हिस्सा होना जरूरी है.
  • किसी मामले में जांच के दौरान किसी व्यक्ति के आरोपी पाए जाने पर आईपीसी की धाराओं के तहत कड़ी कार्रवाई होगी.
  • विशाखा गाइडलाइंस के मुताबिक संस्थान रिपोर्ट करने वाली महिला या कमेटी पर उसे वापस लेने या किसी तरह का दबाव नहीं बना सकता.
  • अगर कोई महिला कमेटी के फैसले से संतुष्ट नहीं है, तो वह पुलिस में रिपोर्ट लिखवा सकती है.

आईसीसी के प्रावधान

  • यौन उत्पीड़न की शिकार कोई महिला घटना की तारीख से 3 माह के अंदर आंतरिक शिकायत समिति को लिखित शिकायत कर सकती है.
  • पीड़ित महिला की शारीरिक या मानसिक विकलांगता या मृत्यु जैसी विशेष परिस्थितियों में उसके कानूनी उत्तराधिकारी या किसी अन्य अधिकृत व्यक्ति पीड़िता की ओर से शिकायत दर्ज करा सकते हैं.
  • पीड़िता के अनुरोध पर शिकायत समिति आपसी सहमति से मामले को निपटाने के लिए कदम उठा सकती है या आगे की जांच शुरू कर सकती है.
  • ऐसे मामले जिनमें में प्रतिवादी द्वारा निपटान की शर्तों का अनुपालन नहीं किया जा रहा है, वहां जांच कार्यवाही शुरू की जा सकती है.
  • आंतरिक शिकायत समिति उन मामलों में भी जांच करवा सकती है, जिनमें प्रतिवादी द्वारा सुलह के जरिए निपटान की शर्तों का अनुपालन नहीं किया गया है.

यहां करें वर्कप्लेस पर हुई छेड़खानी की रिपोर्ट
अगर ऑफिस में कोई महिला अपने किसी सहकर्मी की गलत हरकतों से परेशान हैं तो बॉस से शिकायत करें. अगर बात न बने तो उनसे ऊंचे पदों पर बैठे अधिकारी या एचआर से बात करें. आप लिखित शिकायत दर्ज करा सकती हैं. इतना ही नहीं आप अपनी महिला सहकर्मी की तरफ से भी ICC में इसकी शिकायत कर सकती हैं. ऑफिस की ओर से कोई कार्रवाई न होने पर पुलिस में रिपोर्ट करें.

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