Pappu Yadav Purnia Lok Sabha: लालू यादव की हां में हां मिलाकर कांग्रेस ने कन्हैया कुमार और पप्पू यादव के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है. बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष की बार्गेनिंग से भी लोग नाराज हैं. हालांकि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस किसी भी तरह से लालू को नाराज नहीं करने वाली है. फ्रेंडली फाइट की संभावना कम है. ऐसे में कन्हैया और पप्पू के सामने क्या विकल्प हैं?
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Kanhaiya Kumar Maharajganj: बिहार में कांग्रेस के दो दिग्गज नेताओं पप्पू यादव और कन्हैया कुमार के फिलहाल बेटिकट होने से राजनीतिक गहमागहमी का माहौल है. RJD ने कांग्रेस से साफ कह दिया है कि वह किसी भी कीमत पर पप्पू यादव के लिए पूर्णिया सीट नहीं छोडे़गी. पप्पू 4 अप्रैल को नामांकन दाखिल करने जा रहे हैं. कांग्रेस ने सपोर्ट नहीं किया तो पप्पू निर्दलीय भी उतर सकते हैं. सूत्रों के हवाले से खबर है कि बिहार कांग्रेस में टिकट को लेकर फिर हंगामा हो सकता है.
भागलपुर से लड़ेंगे कन्हैया कुमार?
भागलपुर से कन्हैया कुमार को टिकट देने की तैयारी हो रही है. फिलहाल वहां से विधायक अजीत शर्मा टिकट के प्रबल दावेदार हैं. ऐसे में भागलपुर में उम्मीदवार तय करने में आलाकमान के पसीने छूट रहे हैं. खबर यहां तक है कि अगर टिकट नहीं मिला तो विधायक जी कांग्रेस पार्टी को नमस्ते कह सकते हैं. लालू यादव ने बेगूसराय में पहले ही खेला कर दिया. लेफ्ट को सीट देकर कन्हैया कुमार के लिए संभावना ही खत्म कर दी. कन्हैया अब तक खामोश हैं लेकिन कांग्रेस बिहार में बड़े संकट में घिरती दिख रही है. सवाल यह है कि अब क्या होगा?
क्या कांग्रेस में आकर फंस गए पप्पू यादव?
बिहार के राजनीतिक मामलों पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट बताते हैं कि पूर्णिया पप्पू की कार्यस्थली रही है. सीमांचल के इलाके मधेपुरा, सुपौल, पूर्णिया, अररिया आदि क्षेत्रों में उनकी अच्छी पकड़ है. सुपौल और मधेपुरा वाला इलाका यादवों का गढ़ है. खासतौर से मधेपुरा तो लालू छोड़ना ही नहीं चाहते थे. सुपौल से पप्पू की पत्नी दो बार सांसद रह चुकी हैं. हालांकि लालू ने वो सीट भी नहीं छोड़ी और आरजेडी ने अपने पास ले ली. गठबंधन में 26 सीटें आरजेडी, 9 कांग्रेस और 5 लेफ्ट के पास हैं.
इस माहौल में तो पप्पू कांग्रेस में आकर फंस गए हैं. हाल में उन्होंने अपनी पार्टी का विलय किया था. कांग्रेस पार्टी अंदरखाने यह भी सोच रही है कि लालू यादव की पार्टी के साथ किसी भी सीट पर फ्रेंडली फाइट नहीं हो. ऐसे में पप्पू यादव के पास सीमित विकल्प हैं.
लालू की बात कांग्रेस ने क्यों मान ली?
सीटों का समीकरण देखिए तो पता चलता है कि लालू यादव ने कांग्रेस को मुश्किल सीटें थमाई हैं. दरअसल, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह हैं. वह पहले आरजेडी के सांसद हुआ करते थे. केंद्र में राज्य मंत्री भी रहे. पाला बदलकर कांग्रेस में चले गए. लालू यादव के उन पर काफी एहसान रहे हैं. अखिलेश ने जिस तरह से सीटों को लेकर लालू की हां में हां मिलाया, उससे कांग्रेस के नेता भी नाराज हैं. हालांकि कांग्रेस कुछ कर नहीं पा रही है. खबर तो यहां तक आ रही है कि अखिलेश अपने बेटे को महराजगंज से लड़ाने की कोशिश कर रहे हैं. यही वजह है कि लालू यादव ने जो सीटें पकड़ाईं, उसे कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने रख लीं.
कन्हैया के सामने क्या विकल्प?
सीपीआई से पिछली बार कन्हैया कुमार बेगूसराय से लड़े थे. बहुत नाम था. बाद में वह कांग्रेस में आ गए. कांग्रेसियों को लग रहा था कि गठबंधन में बेगूसराय की सीट कन्हैया को ही मिलेगी लेकिन लालू यादव नहीं चाहते हैं कि कन्हैया लीडर के तौर पर बिहार में खड़े हों. यही वजह है कि पिछली बार काफी मनाने के बाद भी आरजेडी ने कैंडिडेट खड़ा कर दिया था. ऐसे में कन्हैया जितने वोट से हारे थे, उतने ही वोट आरजेडी को मिले. इस बार लालू ने बेगूसराय सीपीआई को दे दिया.
लालू के सामने कांग्रेस का सरेंडर क्यों?
बिहार के राजनीतिक हालात को समझने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि कांग्रेस को लगता है कि गठबंधन में आरजेडी बड़ी पार्टी है. लालू यादव ऐसी शख्सियत हैं कि जब कांग्रेस खासतौर से सोनिया गांधी के लिए मुश्किल हो रही थी तो कांग्रेसियों से भी ज्यादा करीब लालू यादव खड़े रहे. अंदरखाने से पता चला है कि सोनिया गांधी का कांग्रेस नेताओं को साफ मैसेज है कि लालू यादव से किसी तरह का विवाद नहीं करना है. गांधी परिवार लालू यादव को कभी नहीं छोड़ेगा क्योंकि संकट के समय वह लगातार 10 जनपथ के सपोर्ट में रहे. लालू ने डायरेक्ट या इनडायरेक्ट कभी भी बीजेपी से हाथ नहीं मिलाया. इसकी कीमत भी उन्हें चुकानी पड़ी.
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कांग्रेस के सामने मुश्किल यह है कि एक सीट पर अगर फ्रेंडली फाइट होगी तो क्या एक सीट पर तेजस्वी प्रचार करने नहीं जाएंगे, बाकी 8 सीटों पर जाएंगे? पूरा प्रचार गड़बड़ा जाएगा. कांग्रेस को डर यह भी है कि अगर पूर्णिया में पप्पू यादव को सिंबल दिया गया तो दूसरी सीटों पर लालू भी ऐसा दांव चल सकते हैं. इससे गठबंधन बिखर जाएगा. ऐसे में कांग्रेस का मैसेज क्लियर है कि पप्पू और कन्हैया के लिए सीट नहीं दिए जाने के बाद भी वह लालू यादव के साथ ही रहेंगे. कांग्रेस जिस तरह की सेक्युलर राजनीति करती है, लालू उसके चैंपियन हैं.
पप्पू की लालू से अपील
हां, यही वजह है कि पप्पू यादव को अपील करनी पड़ी. कांग्रेस नेता पप्पू यादव ने कहा, 'मैं लालू यादव से आग्रह करूंगा, मैं भी आपके ही परिवार का हिस्सा हूं. भले ही आप अपने 2-4 बच्चों को परिवार समझ लें लेकिन हमारा भाईचारा हमेशा रहा है. पहले भी जब-जब लालू परिवार पर संकट आया है मैं खड़ा रहा हूं. गठबंधन की राजनीति व्यक्तिगत तौर पर मेरे लिए नहीं है. अलग बात है कि गठबंधन की राजनीति में आज देश फंसा है. पूर्णिया की जनता किसी की गुलाम नहीं है और दिल्ली पटना की राजनीति से दूर है. यहां की जनता अपने बेटे ये प्यार करती है. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पर मुझे भरोसा है. बिहार में कुछ लोग दल को मजबूत नहीं होने देना चाहते हैं. मैं अपने नेता के आदेश का इंतजार कर रहा हूं इसलिए हमने 4 अप्रैल को अपने दोनों नेता के विश्वास पर और जनता की भावनाओं पर नामांकन करने का निर्णय लिया है.'
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कांग्रेस ने सिंबल नहीं दिया तो पप्पू यादव के सामने निर्दलीय लड़ने का विकल्प जरूर खुला है. कन्हैया कुमार के लिए महाराजगंज सीट और भागलपुर से संभावनाएं देखी जा रही हैं. वह भूमिहार समाज से आते हैं. ऐसे में वह एंगल भी देखा जा रहा है.
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