Ghulam Nabi Azad Jammu Kashmir News: जम्मू कश्मीर के चुनावों के नतीजे सामने आ चुके हैं और उमर अब्दुल्ला नए सीएम बनने जा रहे हैं. लेकिन कांग्रेस छोड़ने के बाद अपनी खुद की पार्टी बनाने वाले आजाद चुनावों में क्यों 'लापता' बने रहे, यह किसी की समझ नहीं आ रहा है.
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Ghulam Nabi Azad in Jammu Kashmir Assembly Elections: जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद हुए असेंबली चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया है. इसके साथ ही उमर अब्दुल्ला का दूसरी बार प्रदेश का सीएम बनना तय हो गया है. इन चुनाव में गुलाम नबी आजाद का कोई असर नहीं दिखा. यहां तक की दो साल पहले बनी उनकी पार्टी चुनाव प्रचार के दौरान भी एक्टिव नहीं दिखी. अब सवाल है कि आखिर एक वक्त कांग्रेस का प्रमुख चेहरा रहे गुलाम बनी आजाद अब कांग्रेस की जीत पर क्यों गायब हैं?
असेंबली चुनाव में कहां गायब हो गए आजाद?
गुलाम नबी आजाद ने अब से ठीक दो साल पहले अपनी पार्टी से बगावत कर नई पार्टी बनाई. लेकिन पहले 2024 लोकसभा चुनाव और अब विधानसभा चुनाव दोनों ही चुनावों में गुलाम नबी आजाद फैक्टर बेअसर रहा. दो साल पहले तक इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि कांग्रेस से आजाद की बगावत का घाटी के सियासत में असर दिखेगा. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. न केवल गुलाम नबी आजाद खुद चुनाव प्रचार से गायब रहे बल्कि DPAP के नेताओं ने भी टिकट मिलने के बाद चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया.
पार्टी के 10 उम्मीदवारों ने वापस कर दिए थे टिकट
DPAP की तरफ से पहले चरण के लिए 10 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया गया था. उनमें से चार ने अपने नाम ही वापस ले लिए. वो भी उन सीटों से जिसे एक वक्त गुलाम नबी आजाद का गढ़ माना जाता था. लोकसभा चुनाव के दौरान ठीक इसी तरह गुलाम नबी आजाद ने अनंतनाग-राजौरी सीट से पर्चा दाखिल किया लेकिन बाद में नामांकन वापस ले लिया.
इलेक्शन से दूर रहने की कहीं ये वजह तो नहीं!
कयास लगाए जा रहे थे कि अगर आजाद की पार्टी पूरी ताकत के साथ चुनाव मैदान में उतरती तो इससे NC और कांग्रेस को नुकसान होता. जबकि वोट बंटने की वजह से बीजेपी को फायदा मिलता. कहा ये भी जा रहा है कि गुलाम नबी आजाद को किसी दल से गठबंधन की भी उम्मीद थी, जिसमें पहले नंबर पर बीजेपी थी. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. वहीं कांग्रेस ने भी आजाद की पार्टी में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.
अनुच्छेद 370 पर लिया गया स्टैंड पड़ रहा भारी!
कहा जा रहा है कि खुद को जम्मू-कश्मीर में अकेला होता देख आजाद ने चुनाव से दूरी बनाने का फैसला किया. जानकारों का ये भी कहना है कि धारा 370 जैसे फैसले पर आजाद के स्टैंड से लोगों और स्थानीय नेताओं में नाराजगी है. जिसका असर 2024 के लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला था.