Rajesh Khanna: राजेश खन्ना की डेब्यू फिल्म थी, आखरी खत (1966). फिल्म में सवा साल का बच्चा इस स्टार के बराबर हीरो था. फिल्म उस साल भारत की तरह से ऑस्कर में भेजी गई थी. निर्देशक चेतन आनंद की आखरी खत हिंदी में अपने ढंग की अनूठी फिल्म है.
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Bollywood Classics: आज के बॉलीवुड में निर्माता-निर्देशक या तो दूसरी भाषा की फिल्मों के रीमेक कर रहे हैं या फिर हिट फिल्मों के सीक्वल बना रहे हैं. लेकिन एक दौर में मेकर्स और एक्टर जोखिम उठाते थे. राजेश खन्ना की डेब्यू फिल्म (Debut Film) आखरी खत हिंदी का दुर्लभ सिनेमा है. इस फिल्म में निर्देशक चेतन आनंद (Chetan Anand) ने कम संसाधनों के बावजूद नए प्रयोग किए थे. सबसे पहले तो उन्होंने फिल्म में मात्र 15 महीने के एक बच्चे को राजेश खन्ना के समानांतर कहानी का अहम हिस्स बनाया. दूसरा उन दिनों मुंबई की खुली सड़कों पर कैमरामेन जाल मिस्त्री ने हाथों में कैमरा पकड़ कर कुछ बेहतरीन सीन शूट किए थे. फिल्म ऐसे बच्चे (मास्टर बंटी) की कहानी थी, जो मुंबई की सड़कों पर अकेला भटक रहा है. उसे पिता की तलाश है और उसका पिता (राजेश खन्ना) भी उसे ढूंढने के लिए परेशान हैं. फिल्म को भारत की तरफ से 40वें ऑस्कर (Oscar Awards) में भेजा गया था.
भटकते बच्चे की सधी कहानी
आखिर खत की कहानी गोविंद (राजेश खन्ना) की थी, जो एक मूर्तिकार है. कुल्लू में छुट्टियां बिताते हुए गोविंद को गांव की लड़की लज्जो (इंद्राणी मुखर्जी) से प्यार हो जाता है. दोनों कुछ समय साथ बिताते हैं और गोविंद मुंबई लौट आता है. लज्जो गर्भवती होती है और उसकी सौतेली मां उसे बेच देती है. लज्जो जैसे-तैसे मुंबई पहुंचती है और अपने डेढ़ साल के बेटे को उसके पिता को सौंपना चाहती है. मगर गोविंद उस पर विश्वास नहीं करता और तब लज्जो एक पत्र उसके नाम लिख कर मर जाती है. गोविंद को जब तक गलती का एहसास होता है, देर हो चुकी होती है और इसके आगे की फिल्म नन्हें बच्चे पर केंद्रित हो जाती है, जो रात-दिन मुंबई की सड़कों पर भटक रहा है. अंततः कैसे पिता-पुत्र मिलते हैं, यही आखिरी खत का क्लाइमेक्स है.
न खान, न सोना
फिल्मफेयर युनाइटेड प्रोड्यूसर्स के टैलेंट हंट में विजेता रहे राजेश खन्ना की यह पहली फिल्म थी. नीचा नगर और हकीकत जैसी फिल्में बनाने वाले निर्देशक चेतन आनंद की इस फिल्म में राजेश खन्ना को देखा जा सकता है कि वह इमोशनल दृश्यों को कितने बढ़िया ढंग से निभाते हैं. फिल्म के क्लाइमेक्स में राजेश खन्ना को अपने बेटे की तलाश में बेहद हैरान-परेशान दिखना था. निर्देशक ने अपनी यूनिट के लोगों को सख्त आदेश दे रखे थे कि वे ध्यान रखें कि तीन दिन तक राजेश खन्ना ने तो ठीक से खा पाएं और न ही सही नींद ले पाएं. खुद चेतन आनंद उन्हें आधी रात में फोन करके जगा दिया करते थे. नतीजा यह हुआ कि तीन दिनों की मुश्किलों के बाद राजेश खन्ना पर बेटे से मिलने का क्लाइमेक्स सीन फिल्माया गया, तो बहुत विश्वसनीय आया. यह फिल्म आप यूट्यूब पर फ्री दे सकते हैं. फिल्म का गाना, बहारो मेरा जीवन भी संवारो... आज भी खूब सुना जाता है.
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