Chhatriwali Review: इससे पहले कि दुनिया में हमारी हो सबसे ज्यादा आबादी, चाहिए दकियानूसी सोच से आजादी
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Chhatriwali Review: इससे पहले कि दुनिया में हमारी हो सबसे ज्यादा आबादी, चाहिए दकियानूसी सोच से आजादी

Film On Sex Education: सेक्स एजुकेशन को अब सिर्फ एक किताब का पाठ बनाए रखने से काम नहीं चलेगा. इसे लेकर हिचक तोड़ने का समय आ चुका है. छतरीवाली की कहानी का पूरा जोर इसी बात पर है. ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर आज रिलीज हुई यह फिल्म कुछ जरूरी मुद्दों को उठाती है और रूढ़ी तोड़ कर आगे बढ़ने पर जोर देती है.

 

Chhatriwali Review: इससे पहले कि दुनिया में हमारी हो सबसे ज्यादा आबादी, चाहिए दकियानूसी सोच से आजादी

Rakul Preet Singh Movie: रकुल प्रीत सिंह की फिल्म छतरीवाली सबसे अंत में जो बात करती है, उसे सबसे पहले जान लेना बेहतर है. फिल्म खत्म होते ही स्क्रीन पर चमकता हैः गर्भनिरोध के लिए भारत में जहां 10 में से मात्र एक पुरुष कंडोम का इस्तेमाल करता है, वहीं 10 में से चार महिलाएं नसबंदी कराती हैं. मतलब यह कि गर्भनिरोध के दस में औसतन पांच प्रयास ही होते हैं. जनसंख्या नियंत्रण की बहस अपनी जगह है परंतु नतीजा सामने है कि 2023 में भारत अधिकृत रूप से दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा. ऐसे में अगर गर्भनिरोधकों को लेकर फैली भ्रांतियों तथा नई पीढ़ी को यौन शिक्षित करने का प्रयास न किया जाए तो अगले दशकों में स्थिति का विस्फोटक होना तय है. छतरावाली इन्हीं दोनों मुद्दों को मिलाकर चलती है.

कंडोम कब से
यूं तो कंडोम भारतीय बाजार में 1940 के दशक से है, परंतु स्वतंत्र भारत में सरकार ने तेजी से बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए 1963 में मुफ्त कंडोम बांटने का फैसला किया था. 1968 में विदेश से मंगाए कंडोम निरोध ब्रांड के तहत बेचे जाने लगे थे. तब से बहुतों के लिए कंडोम का मतलब आज भी निरोध है. कई लोग कंडोम के लिए छतरी शब्द प्रतीकात्मक रूप में इस्तेमाल करते हैं. कुछ हेलमेट भी कहते हैं. निर्देशक तेजस प्रभा विजय देओस्कर इसे छतरी कहते हुए चलते हैं. कहानी हरियाणा के करनाल शहर की है. साइंस पढ़ी सान्या ढींगरा (रकुल प्रीत सिंह) को नौकरी की तलाश है. वह ट्यूशन पढ़ा कर घर चला रही है. मां मोहल्ले के लड़कों के साथ जुआ-सट्टा लगा कर पैसा बनाने के चक्कर में रहती है. सान्या को कंडोम बनाने वाली कंपनी में कंडोम टेस्टर की नौकर मिल जाती है. इसी बीच उसे शहर में पूजा-पाठ के सामान की दुकान चलाने वाले ऋषि (सुमित व्यास) से प्यार होता है. शादी होती है. अब कहानी इस घर में शिफ्ट हो जाती है. जहां ऋषि के बड़े भाई, भाई जी (राजेश तैलंग) बायलॉजी टीजर हैं, मगर सोच में दकियानूसी. भाई की पत्नी चार बार गर्भपात करा चुकी है. हमेशा बीमार रहती है. यहीं से सान्या और भाई जी आमने-सामने आ जाते हैं. बड़ों को लिए कंडोम और बच्चों के लिए यौन शिक्षा जरूरी है.

रकुल हैं लीडर
छतरीवाली कॉमिक ट्रेक पर चलने की कोशिश करती है, लेकिन हंसाने वाले कोई बड़े मौके यहां नहीं हैं. बल्कि कंडोम को लेकर होने वाली झिझक से जुड़े कुछ सीन कॉमेडी पैदा करने की कोशिश करते हैं. सतीश कौशिक कंडोम कंपनी के मालिक की भूमिका में अलग नजर आते हैं. उनका अंदाज आकर्षक है. राजेश तैलंग कहानी को गंभीर ट्रेक पर बनाए रखते हैं. सुमित व्यास लगातार रकुल प्रीत सिंह को सपोर्ट करते खड़े रहते हैं. भाई जी की पत्नी के रूप में प्राची शाह और बेटी के रूप में रीवा अरोड़ा के किरदार अहम हैं, और उन्होंने इन्हें अच्छे से निभाया है. रकुल कहानी का नेतृत्व करती हैं और उन्होंने अपना काम बिना लाउड हुए सहज ढंग से किया है. इस फिल्म को देखते हुए आपको पिछले साल आई फिल्म जनहित में जारी याद आती है क्योंकि उसकी स्टोरी लाइन भी इससे काफी मिलती जुलती है. लेकिन यौन शिक्षा का मुद्दा उठाते हुए छतरीवाली अपना रास्ता अलग बनाती है.

जिम्मेदारी उठाए पुरुष
छतरीवाली इस बात पर जोर देती है कि कंडोम का इस्तेमाल अनचाहे गर्भ और स्त्री के स्वास्थ्य के लिहाज से जरूरी है और इसकी जिम्मेदारी पुरुष को उठानी चाहिए. सान्या पूरे मोहल्ले की स्त्रियों को अपने इस मिशन में जोड़ती है कि पति कंडोम इस्तेमाल नहीं करते, तो उन्हें नजदीक आने से रोकें. इसका दूसरा पक्षी भी कहानी में दिखता है और दांव पलट जाता है. जो स्त्रियों की असुरक्षा दिखाता है. कंडोम के समानांतर फिल्म यौन शिक्षा को मुद्दा बनाती है. बायोलॉजी टीचर प्रजनन यानी रीप्रोडक्शन का अध्याय सिर्फ लड़कों को पढ़ाता है. वह भी सिर्फ पुरुष अंग के बारे में. लड़कियों को अध्यापिका पढ़ाती है, केवल स्त्री अंगों के बारे में. वजह यह कि परीक्षा में इस पाठ का सवाल वैकल्पिक रहेगा. लेकिन जीवन तो दोनों के मिलने से चलता है. अतः अनजान बने रहना हल नहीं है. एक लिहाज से यह जरूरी फिल्म है. जिसे देखना चाहिए. यौन विषय से जुड़ी होने के बावजूद फिल्म में न तो ऐसे दृश्य हैं, जो असहज करें. न ही कानों में खटकने वाले संवाद.

निर्देशकः तेजस प्रभा विजय देओस्कर 
सितारेः रकुल प्रीत सिंह, सुमित व्यास, सतीश कौशिक, डॉली अहलूवालिया, राजेश तैलंग, राकेश बेदी, प्राची शाह, रीवा अरोड़ा
रेटिंग ***

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