कभी चलाया रिक्शा, तो कभी बेची सब्जियां, लेकिन आज हैं करोड़ों की कंपनी के मालिक, जानें कैसे हासिल की इतनी सक्सेस
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कभी चलाया रिक्शा, तो कभी बेची सब्जियां, लेकिन आज हैं करोड़ों की कंपनी के मालिक, जानें कैसे हासिल की इतनी सक्सेस

Dilkhush Kumar Success Story: चपरासी की नौकरी के लिए हो रहे इंटरव्यू के दौरान दिलखुश से iPhone के लोगो को पहचानने के लिए कहा गया था, जिसे वह नहीं पहचान पाए थे, क्योंकि उन्होंने पहली बार iPhone उसी इंटरव्यू में देखा था.

कभी चलाया रिक्शा, तो कभी बेची सब्जियां, लेकिन आज हैं करोड़ों की कंपनी के मालिक, जानें कैसे हासिल की इतनी सक्सेस

Dilkhush Kumar Success Story: अल्लामा इकबाल द्वारा लिखी गई यह पंक्ति तो आपने जरूर पढ़ी होगी कि "खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है." इन पंक्तियों को बिहार के रहने वाले दिलखुश कुमार में चरितार्थ कर दिखाया है, जिन्होंने कभी पेट पालने के लिए रिक्शा चलाया, तो कभी सब्जियां बेची, लेकिन आज वह अपनी कड़ी मेहमत से बदौलत करोड़ों की कंपनी के मालिक हैं. दिलखुश खुद कक्षा 12वीं तक ही पढ़े लिखे हैं, लेकिन वह IIT और IIM पास स्टूडेंट्स को जॉब देते हैं. आज के समय में दिलखुश अपने स्टार्टप कैब सर्विस के जरिए पूरे बिहार में क्रांति लाने की सोच रहे हैं. 

बिहार में ला रहे क्रांति
दिलखुश बिहार के सहरसा जिले के एक छोटे से गांव बनगांव के रहने वाले हैं. वह इस समय पूरे बिहार में टैक्सी सर्विस प्रोवाइड करते हैं. उनके इस टैक्सी सर्विस स्टार्टअप का नाम है "रोडबेज", जो एक डेटाबेस कंपनी है. रोडबेज ओला और ऊबर जैसी कंपनियों से थोड़ी अलग है. ये फिलहार उन लोगों को सर्विस प्रोवाइड करती है, जिन्हें कम से कम 50 किलोमीटर या उससे ज्यादा का सफर करना होता है. हालांकि, दिलखुश बताते हैं कि आगे उनका छोटी राइड्स प्रोवाइड कराने का भी प्लान है. रोडबेज की सबसे अच्छी बात यह ही कि ये ओला और ऊबर की तरह अपने कस्टमर से दोनों तरफ का किराया नहीं लेती है. यह केवल एक तरफ का किराया ही अपने कस्टमर से चार्ज करती है.

इस तरह काम करती है रोडबेज
दरअसल, रोडबेज अपने साथ जुड़े ड्राइवर से कहती है कि आप जिस भी तरफ पैसेंजर लेकर जा रहे हो, उसके बारे में हमें बता दो. जब आप उधर से खाली आओगे, तो उस समय हम आपको ऐसे पैसेंजर से कनेक्ट करवा देंगे, जिनको आपके रूट पर ट्रैवल करना होगा. दिलखुश बताते हैं कि इससे आज कस्टमर का 40% किराया कम लगता है. 

नहीं मिली चपरासी की नौकरी लेकिन आज करोंड़ों के मालिक
वहीं, अपने पुराने दिनों को याद करते हुए दिलखुश कहते हैं कि उन्होंने दिल्ली में रिक्शा चलाया. पटना में सड़क किनारे बैठकर सब्जियां भी बेची. यहां तक कि चपरासी की नौकरी के लिए इंटरव्यू देने तक गया, लेकिन उन्हें गवार समझ कर वहां से निकाल दिया गया. दरअसल, इंटरव्यू के दौरान दिलखुश से iPhone के लोगो को पहचानने के लिए कहा गया था, जिसे वह नहीं पहचान पाए थे, क्योंकि उन्होंने पहली बार iPhone उसी इंटरव्यू में देखा था. इसी कारण उन्हें चपरासी की जॉब भी नहीं मिल सकी. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी, क्योंकि उनकी शादी हो चुकी थी और सिर पर घर वालों की जिम्मेदारी थी. उसी जिम्मेदारी को निभाने के पिछे भागते-भागते वह एक करोड़पति बन चुके हैं.

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