Revolutionary Khudiram Bose: बेटे की अकाल मृत्यु टालने के लिए प्रतीकस्वरूप उसे किसी को बेच दिया, जिसके बाद बहन अपरूपा ने तीन मुठ्ठी खुदी (चावल के छोटे-छोटे टुकड़े) देकर अपना भाई खरीद लिया. इसलिए नाम दिया खुदीराम.
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Freedom Fighter Khudiram Bose: आज हम खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं तो इसके पीछे आजादी की लड़ाई में प्राण न्यौछावर करने वाले क्रांतिकारी हैं, जिनकी वजह से आज हम अपने देश में गर्व से तिरंगा फहराते हैं. देश के इन्हीं वीर सपूतों में से एक हैं खुदीराम बोस, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में छोटी सी उम्र में फांसी का फंदा चूम लिया. खुदीराम बोस को मात्र 18 साल की उम्र में 11 अगस्त 1908 को फांसी दे दी गई थी.
जेल से बाहर आकर सीखा बम बनाना
बंगाल (अब पश्चिम बंगाल) के मिदनापुर के हबीबपुर नाम के एक छोटे से गांव में 3 दिसंबर 1889 को खुदीराम बोस का जन्म हुआ था. उनके जन्म के छह साल बाद माता-पिता दोनों का साया सिर से उठ गया. बड़ी बहन ने ही सारी जिम्मेदारियां निभाई और शादी के बाद भी अपने साथ रखा.
साल 1905 में जब खुदीराम बोस ने आजाद भारत का सपना देखा तब उनकी उम्र महज 14 साल थी. 1906 में अंग्रेजों ने उसे बंगाल विभाजन के खिलाफ हुई रैली से में हिस्सा लिया, जहां से गिरफ्तार कर लिए गए. बाहर आकर खुदीराम ने बम बनाना सीखा. साल 1907 में बंगाल के गवर्नर पर बम फेंक दिया. इसके बाद जनवरी 1908 में दो अंग्रेज अधिकारियों पर बम फेंक कर फरार हो गया.
जज किंग्सफोर्ड को बम से उड़ाने का था प्लान
इसके कुछ समय बाद 30 अप्रैल 1908 को जज डगलस किंग्सफोर्ड की बग्घी को बम से उड़ा दिया. हालांकि, उन्होंने योजना जज डगलस किंग्सफोर्ड को बम से उड़ाने की बनाई थी, जिसमें उन्हें कामयाबी नहीं मिली. इसके बाद 1 मई को खुदीराम बोस पकड़े गए. 3 महीने बाद अगस्त में खुदीराम को फांसी की सजा दी गई. उस धमाके में वो जज डगलस किंग्सफोर्ड बच तो गया, लेकिन खुदीराम ने कितने ही क्रांतिकारी को रास्ता दिखा दिया.
भरे गोदाम को किया था आग के हवाले
आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाले सेनानियों द्वारा देश भर में विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार जारी था. ऐसे ही मिदनापुर में खुदीराम बोस विदेशी वस्तुओं का विरोध कर रहे थे. उनके कई बार समझाने के बाद भी बहुत से दुकानदार विदेशी वस्तुओं को बेचना बंद नहीं कर रहे थे. ऐसे में जब दुकानदारों पर अनुरोध और फिर चेतावनी का भी कोई असर नहीं पड़ा तो खुदीराम बोस ने विदेशी माल से भरे गोदाम में ही आग लगा दी थी.
खुदीराम बोस की राख के बनाए गए ताबीज
इंपीरियल अखबार ने साल 1908 में खुदीराम बोस की फांसी के बाद लिखा था कि जब खुदीराम बोस का अंतिम संस्कार किया गया तो लोग उनकी चिता के पास अपने हाथ में डिब्बियों में राख भरने का इंतजार कर रहे थे. बताया जाता है कि खुदीराम बोस की चिता की राख से मांओं ने अपने बच्चों को ताबीज बनाकर पहनाए, ताकि वो भी बहादुर देशभक्त बनें.