जिंदगी के टॉपर: क्लास में थे सबसे कमजोर, 18 की उम्र में छोड़ी पढ़ाई; जानें बॉक्सिंग लीजेंड मुहम्मद अली की कहानी
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जिंदगी के टॉपर: क्लास में थे सबसे कमजोर, 18 की उम्र में छोड़ी पढ़ाई; जानें बॉक्सिंग लीजेंड मुहम्मद अली की कहानी

ओलिंपिक गोल्ड मेडल जीतने के बाद अली एक रेस्टोरेंट में पहुंचे, जहां उन्हें पता लगा कि वहां सिर्फ शरीर से सफेद लोगों को ही एंट्री दी जा रही है. 

जिंदगी के टॉपर: क्लास में थे सबसे कमजोर, 18 की उम्र में छोड़ी पढ़ाई; जानें बॉक्सिंग लीजेंड मुहम्मद अली की कहानी

नई दिल्ली: Jindagi Ke Topper Muhammad Ali: बॉक्सिंग की दुनिया के किंग या यूं कहें 'मुहम्मद अली-द ग्रेटेस्ट' (Muhammad Ali) को कई स्पोर्टिंग मैगजीन ने 20वीं सदी का 'स्पोर्ट्समैन ऑफ द सेंचुरी' चुना था. मीडिया रिपोर्ट्स में तो ये तक कहा जाता है कि उनके टीचर्स अली का नाम तक नहीं जानते थे. क्या आप जानते हैं मुहम्मद अली अपने स्कूली जीवन में उतने कामयाब नहीं हो सके, जितने वो अपने प्रोफेशनल जीवन में साबित हुए. क्योंकि उन्हें अपनी बॉक्सिंग पर पूरा यकीन था, ज़ी मीडिया की 'जिंदगी के टॉपर' सीरीज में आज पढ़ें मुहम्मद अली की इंस्पायरिंग कहानी...

'मुझे उसे चोर को पीटना है'
आज ही के दिन 17 जनवरी 1942 को मुहम्मद अली का जन्म अमेरिका के लुईवाइल केंटकी में हुआ था. इससे पहले की वे स्कूली जीवन से ही अपने करियर के सपने देखते, उन्हें पता लग गया कि उन्हें अपने जीवन में क्या करना है. दरअसल, 12 साल की उम्र में किसी ने उनकी साइकिल चुरा ली, इस बात से गुस्सा हो कर अली ने पुलिस कम्प्लेन करते हुए कहा कि उन्हें उस चोर की पिटाई करना है. 

मार्टिन नाम के पुलिस वाले, जो एक बॉक्सिंग ट्रेनर थे, उन्होंने उसकी पूरी बात सुनी और युवा अली को अपने अंडर ट्रेनिंग देना शुरू कर दी. 

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391 स्टूडेंट्स में रहे 376वें नबंर पर
मुहम्मद अली ने अमेरिका में लुईवाइल स्थित सेंट्रल हाई स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की. स्कूल के फाइनल ईयर में उनकी क्लास में 391 स्टूडेंट थे, रिजल्ट आया तो पता लगा उनकी रैंक 376वीं रही. खैर, पढ़ाई में तो उनका नाम उतना नहीं था, न ही वो यहां नाम बनाना चाहते हैं. क्योंकि इसी साल 1960 में रोम में आयोजित ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीत कर उन्होंने सभी को बता दिया कि वह अपने जीवन से क्या चाहते हैं. 

'किस मतलब का ये मेडल?'
ओलिंपिक का गोल्ड मेडल जीतने के बाद अली एक दिन रेस्टोरेंट पहुंचे, उन्हें पता नहीं था कि ये रेस्टोरेंट सिर्फ गोरों के लिए है. अंदर घुसते ही उन्हें रंगभेद की टिप्पणी का सामना करना पड़ा, वहां खड़े कुछ शरीर से सफेद दिखने वाले लोगों ने सड़क पर खड़े अली को तंग करना शुरू कर दिया. अली को ताने मारते हुए उन लोगों ने अली का मेडल छीनने की कोशिश भी की. 

रंगभेद ने तोड़ दिया अंदर तक
अपने आत्मसम्मान को पहुंची चोट से दुखी हो अली ने अपना गोल्ड मेडल नदी में फेंक दिया. 1984 के ओलिंपिक में अली को चीफ गेस्ट के रूप में बुलाया गया, जहां उन्हें फिर से गोल्ड मेडल दिया गया, जिसे उन्होंने सम्मानपूर्वक अपने साथ रखा. ओलिंपिक के साथ ही उन्होंने तीन बार विश्व चैंपियन बनने की उपलब्धि भी हासिल की. वह 1964, 1974 और 1978 में वर्ल्ड चैंपियन बने. 

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