अश्विन सोलंकी/नई दिल्ली: History of The Ashes: क्रिकेट जगत की ऐतिहासिक राइवलरी 'द एशेज' (The Ashes) का आगाज आज से फिर एक बार हो चुका है. ऑस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन में 'द गाबा' के मैदान पर ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच 5 मैचों की टेस्ट सीरीज का पहला मुकाबला खेला जा रहा है. 1882 में शुरू हुई इस राइवलरी का रोमांच इस दौरान चरम सीमा पर रहने वाला है. 


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लेकिन क्या आप जानते हैं 'द एशेज' के शुरू होने की पूरी कहानी? आखिर 71 बार खेली जाने के बाद भी क्रिकेट फैंस के रोमांच की भूख शांत क्यों नहीं हो रही? आखिर क्यों 10.5 CM छोटी ट्रॉफी, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसे बड़े देशों के लिए स्वाभिमान और आत्मसम्मान की लड़ाई है? 'ज़ी नॉलेज' की स्पेशल स्टोरी में आज यहां जानें 'द एशेज' का 'इंटरेस्टिंग इतिहास'.


क्या है 'द एशेज'?
'द एशेज', इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया देशों के बीच खेली जाने वाले एक टेस्ट क्रिकेट सीरीज है. जिसका इतिहास 139 साल पुराना है, यह 1882 के दौरान इंग्लैंड में खेले गए एक टेस्ट मैच से शुरू हुआ था. दोनों टीमें हर 18 महीनों में एक-दूसरे के देश में 5 मैचों की टेस्ट सीरीज के दौरे पर जाती हैं. सीरीज जीतने वाली टीम को 10.5 CM की एक ट्रॉफी मिलती है, जिसे 'द एशेज अर्न' (The Ashes Urn) कहते हैं. 


ये ट्रॉफी साल 1883 से चली आ रही है, इसे सीरीज जीतने वाली टीम के देश में रखा जाता है. ट्रॉफी का घर यानि देश तभी बदलता है, जब तक सीरीज के नतीजे नहीं बदल जाते हैं. ड्रॉ होने पर पिछले विजेता के पास ही ट्रॉफी रहती है. फिलहाल यह ऑस्ट्रेलिया के पास है. जिन्होंने 2019 में खेली गई 'द एशेज' के दौरान 5 मैचों की सीरीज को इंग्लैंड में 2-2 से ड्रॉ करवाया था. उससे पहले 2017-18 में ऑस्ट्रेलिया में खेली गई सीरीज को ऑस्ट्रेलिया ने ही जीता था. इसी कारण इस वक्त 'द एशेज' पर ऑस्ट्रेलिया का कब्जा है. 


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'29 अगस्त 1882'
29 अगस्त 1882 के दिन ऑस्ट्रेलिया ने इंग्लैंड को लंदन में केनिंगटन ओवल के मैदान पर एकमात्र टेस्ट में बुरी तरह हरा दिया. 'द स्पोर्टिंग टाइम्स' ने इस शर्मनाक हार को 'इंग्लिश क्रिकेट की मौत' बताकर तंज कसा. अंग्रेजी अखबार की हेडलाइन की तरह ही कई किस्सों और कहानियों की बुनियाद पर बनी है क्रिकेटिंग फ्रेटर्निटी की सबसे बड़ी राइवलरी 'The Ashes Urn'. 


हिंदी में इस शब्द का ट्रांसलेशन वैसे तो 'अस्थि-कलश' होगा. लेकिन क्रिकेट की दुनिया में इस शब्द के मायने इससे कहीं बढ़कर है. इसमें हार और जीत से बढ़कर इतिहास है, चोट है, संघर्ष है, स्वाभिमान है, आत्मसम्मान है, इमोशन है और सबसे इम्पोर्टेंट खेल भावना है. 


जब खो दिया आत्मसम्मान!
'द एशेज' (Origin Of The Ashes) की कहानी अगस्त 1882 में शुरू होती है. जब इंग्लैंड की टीम अपने घरेलू मैदान पर पहली बार ऑस्ट्रेलिया से टेस्ट मैच हार गई. 'द ओवल' मैदान पर मिली शर्मनाक हार के बाद इंग्लिश मीडिया और वहां के लोगों में गुस्सा भर गया. अखबारों की हेडलाइन ने इस शर्मनाक हार की कड़ी निंदा की.


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'RIP! English Cricket'
'द बॉडी विल बी क्रेमेटेड एंड द एशेज टेकन टू ऑस्ट्रेलिया!' हार के अगले दिन इंग्लैंड के फेमस अखबार 'द स्पोर्टिंग टाइम्स' ने इसी हेडलाइन के साथ अपने फ्रंट पेज पर इस खबर को छाप दिया. उस हेडलाइन का मतलब था, 'शव का अंतिम संस्कार कर ऑस्ट्रेलिया राख को अपने साथ ले जाएगी.' अखबार ने तंज कसते हुए लिखा था, 'द ओवल के मैदान पर इंग्लैंड क्रिकेट की मौत हुई'. अंग्रेजी में इसे 'RIP! English Cricket' लिखा गया. 



 


देश के आत्मसम्मान की थी लड़ाई!
अगस्त में मिली हार के कुछ सप्ताह बाद ही इंग्लैंड की टीम आइवो ब्लाय (Ivo Bligh) की कप्तानी में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गई. कप्तान ने जाने से पहले कहा, 'हम एशेज वापस लेने जा रहे हैं.' मीडिया में 'द क्वेस्ट टू रिगेन द एशेज' (The Quest to Regain The Ashes) हेडलाइन से खबरें चलने लगीं. देश का खोया आत्मसम्मान वापस लेने गई इंग्लिश क्रिकेट टीम ने 3 मैचों की सीरीज 2-1 से जीत कर अपना स्वाभिमान भी फिर से जीत लिया.


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क्रिकेट जगत की 'सबसे छोटी ट्रॉफी'
इतिहासकारों द्वारा बताया जाता है कि ऑस्ट्रेलिया में सीरीज खत्म होने के बाद 1883 में ही ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ इंग्लैंड ने एक फ्रेंडली मैच खेला. मैच खत्म होने के बाद मेलबर्न से आईं कुछ महिलाओं ने इंग्लिश क्रिकेट टीम के कप्तान ब्लाय को 10.5 CM छोटी एक ट्रॉफी दी. कुछ इतिहासकार बताते हैं कि जब इंग्लैंड की टीम ऑस्ट्रेलिया से हारी थी, तब स्टंप्स पर लगने वालीं गिल्लियों (Cricket Bails) में से एक गिल्ली को जलाकर उसकी राख को टेराकोटा से बनी उस ट्रॉफी में रखा गया. जो दोनों ही देशों के आत्मसम्मान का प्रतीक बन गई. 


कहा जाता है कि इंग्लिश कप्तान ब्लाय बड़े शान से महिलाओं द्वारा दी गई उस ट्रॉफी को अपने देश ले कर गए और कुछ इस तरह उन्होंने अपने देश का खोया हुआ आत्मसम्मान लौटाया. 



 


हर 18 महीने में होती है द एशेज
1883 के बाद से 'द एशेज' सीरीज एक परंपरा के रूप में क्रिकेट जगत की सबसे पुरानी लड़ाई के नाम से फेमस हो गई. जो अब हर 18 महीनों में खेली जाती है, जुलाई-अगस्त के दौरान इंग्लैंड में और दिसंबर-जनवरी के दौरान ऑस्ट्रेलिया में 'द एशेज' होती है. दरअसल, इन्हीं महीनों के दौरान दोनों देशों में 'समर सीजन'(गर्मियों का मौसम) रहता है. 


इंडिया-पाकिस्तान के बाद इंग्लैंड-ऑस्ट्रेलिया के देशों के बीच क्रिकेट को दुनिया में सबसे बड़ी क्रिकेटिंग राइवलरी माना जाता है. 


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द गाबा में शुरू हुई 72वीं 'द एशेज' 
1882 से अब तक कुल 71 एशेज सीरीज खेली जा चुकी हैं, 33 बार ऑस्ट्रेलियन और 32 बार इंग्लिश क्रिकेट टीम ने इस पर कब्जा जमाया. सीरीज का रोमांच इस कदर रहता है कि अब तक केवल 6 सीरीज ही ड्रा रहीं, अन्य सभी सीरीज के नतीजे आए. इस बार इंग्लिश क्रिकेट टीम के पास सीरीज जीत का आंकड़ा बराबर करने का मौका रहेगा. लेकिन ऑस्ट्रेलिया की तेज, उछाल भरी पिच और स्टार्क, कमिंस व हेजलवुड जैसे गेंदबाजों के सामने ये काम बहुत मुश्किल होने वाला है. 


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