Success Story: इंटरव्यू से पहले कोरोना से पिता की गई जान फिर भी हिम्मत नहीं हारे दिव्यांशु, ऐसे पाई 44वीं रैंक
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Success Story: इंटरव्यू से पहले कोरोना से पिता की गई जान फिर भी हिम्मत नहीं हारे दिव्यांशु, ऐसे पाई 44वीं रैंक

कोरोना महामारी के संक्रमण के कारण उनके पिता एसके निगम की तबीयत अचानक बिगड़ गई, जिसके बाद उन्हें लखनऊ के एसजीपीआई अस्पताल में भर्ती करवाया गया. पिता की बिगड़ी सेहत ने दिव्यांशु की तैयारी पर भी असर डाला और उनके इंटरव्यू की तैयारी रुक सी गई थी. कुछ दिन भर्ती रहने के बाद उनके पिता का देहांत हो गया.

Success Story: इंटरव्यू से पहले कोरोना से पिता की गई जान फिर भी हिम्मत नहीं हारे दिव्यांशु, ऐसे पाई 44वीं रैंक

नई दिल्ली. संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सर्विसेज परीक्षा को देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षाओं में  एक माना जाता है. हाल ही में आयोग की तरफ से सिविल सर्विसेज का फाइनल रिजल्ट जारी किया गया है, जिसमें कुल 761 अभ्यर्थियों को सफलता मिली है. इनमें कई अभ्यर्थी ऐसे हैं, जो विपरीत परिस्थियों में भी हार नहीं मानें और अपना लक्ष्य हासिल किया. उन्हीं अभ्यर्थियों में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के दिव्यांशु भी शामिल हैं. उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर अपने सपने को पूरा कर दिखाया है. लेकिन उनका यह सफर इतना भी आसान नहीं थी. जब दिव्यांशु यूपीएससी इंटरव्यू की तैयारी कर रहे थे, उसी दौरान उनके पिता का आकस्मिक देहांत हो गया.

कोरोना महामारी के संक्रमण के कारण उनके पिता एसके निगम की तबीयत अचानक बिगड़ गई, जिसके बाद उन्हें लखनऊ के एसजीपीआई अस्पताल में भर्ती करवाया गया. पिता की बिगड़ी सेहत ने दिव्यांशु की तैयारी पर भी असर डाला और उनके इंटरव्यू की तैयारी रुक सी गई थी. कुछ दिन भर्ती रहने के बाद उनके पिता का देहांत हो गया.

हिम्मत न हारते हुए खुद को संभाला
पिता के  देहांत के बाद दिव्यांशु के लिए खुद को संभाल पाना आसान नहीं था, फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने फिर से अपनी इंटरव्यू की तैयारी शुरू की. इंटरव्यू के दिन उन्हें लगने लगा था कि उनका चयन हो जाएगा. उनका यह अनुमान सही निकली और जब उन्होंने रिजल्ट घोषित होने के बाद चेक किया तो उनका चयन यूपीएससी में हो चुका था.

दो प्रयास में नहीं मिली थी सफलता
इससे पहले दिव्यांशु निगम सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा में दो बार पास कर लिए थे, लेकिन मुख्य परीक्षा में विफल हो रहे थे. जब तीसरी बार उनका प्रयास कामयाब हुआ तो उनके पिता बेहद खुश हुए थे. लेकिन दिव्यांशु के आईएएस बनने से पहले ही दुनिया से चल बसे.

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