Viral Video: बिहार की मिट्टी से निकलकर Pankaj से 'द पंकज त्रिपाठी' बनने तक का ऐसा है सफर
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Viral Video: बिहार की मिट्टी से निकलकर Pankaj से 'द पंकज त्रिपाठी' बनने तक का ऐसा है सफर

पंकज त्रिपाठी ने सफलता पाने के लिए अपने गांव से दूर मुम्बई महानगर का रास्ता तो तय कर लिया, लेकिन मायानगरी के भागते-दौड़ते जीवन से अभी भी वह अपना नाता नहीं जोड़ पाए हैं.

बिहार की मिट्टी से निकलकर Pankaj से 'द पंकज त्रिपाठी' बनने तक का ऐसा है सफर

Patna: बिहार की माटी से निकलकर रंगमंच की रंगीन दुनिया को तैरते उतरते कैसे बॉलीवुड के पर्दे पर अपनी जगह बनाई जाती है सिखना है तो कोई पंकज त्रिपाठी (Pankaj Tripathi) से सीखे. लोगों के लिए पंकज त्रिपाठी यह नाम ही काफी है उनको जानने के लिए. लेकिन इस नाम के नाम बनने तक कितनी कठिनाईयों ने रास्ता रोका यह शायद ही कोई जानता हो. अगर कोई जानता भी होगा तो वह शायद ही इसे महसूस करता हो. क्योंकि उसे महसूस करना भी आपको दर्द से भर देगा. लेकिन पंकज त्रिपाठी का चेहरा हमेशा आपके सामने मुस्कुराता, खुशी से भरा, हमेशा दमकता एकदम जिंदादिल दिखेगा.   

पंकज त्रिपाठी ने बिहार की मिट्टी में अपने जीवनकाल का पहला पायदान चढ़ा. वहां से रंगमंच की दुनिया तक पहुंचना एक साधारण परिवार के लड़के के लिए कितना कठिन होता है, वह पंकज से बेहतर कौन समझ सकता है. फिर भी परेशानियों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा, लेकिन पंकज अपने नाम के मुताबिक हमेशा खिले एकदम विचारों और भावों से तरोताजा. चमकती धूप में और तेज चमकते रहे. धीरे-धीरे परेशानियों ने पंकज के सामने घुटने टेक दिये. परेशानियों ने पंकज का पीछा छोड़ा तो उन्होंने अपने सफलती की सीढ़ियों पर कदम रखना शुरू किया. लेकिन गुरूर मन में फिर भी कोई नहीं. वही शांत, सौम्य चेहरा, वही मुस्कुराती शख्सियत कुछ भी तो नहीं बदला पंकज के भीतर. 

अब जब पंकज का आपको यह अंदाज इस वीडियो में दिखेगा तो आप मेरी लिखी पहली लाइन पर गौर कर पाएंगे कि पंकज त्रिपाठी का बनना एक ऐसी प्रक्रिया का हिस्सा था, जिसको समझना एक गहरे दर्द से गुजरने जैसा होगा. पंकज मायानगरी की ऊंची इमारतों के बीच रहे लेकिन कभी उसके जाल में फंसे नहीं. वह वहां भी गौरेया की जात पहचानते हैं. उन्हें पता है कि गांव में उनके आंगन वाली गौरेया मुंबई के किस इलाके में मिलेगी. 

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पंकज त्रिपाठी ने सफलता पाने के लिए अपने गांव से दूर मुम्बई महानगर का रास्ता तो तय कर लिया, लेकिन मायानगरी के भागते-दौड़ते जीवन से अभी भी वह अपना नाता नहीं जोड़ पाए हैं. वह अभी भी समय मिलने पर सरपट अपनी जड़ों की तरफ भागते हैं, पंकज खेत खलिहान से बात करते-करते अब समंदर से बात करने लगे हैं. पंकज को इस बात का एहसास आज भी है कि गांव की खेतों से उठती मिट्टी की सोंधी खुशबू आखिर कैसी होती है. ऐसे में पंकज त्रिपाठी का यह अंदाज आपको दीवाना बना देगा. एकदम देहाती ठेठ देहाती अंदाज हीं पंकज को 'द पंकज त्रिपाठी' बनाता है. 

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