Bollywood Great Actors: क्या ऐसा हो सकता है कि कोई सितारा 25 कमरों के बंगले में रहे और देखते-देखते उसकी आर्थिक स्थिति यह हो जाए कि उसे चॉल में रहने को मजबूर होना पड़े. यह फिल्मी बात नहीं, हकीकत है. अपने जमाने में स्टार रहे भगवान दादा की यही कहानी है.
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Bhagwan Dada Story: वक्त कभी एक जैसा नहीं रहता और इस बात के जितने उदाहरण बॉलीवुड (Bollywood) में मिल सकते हैं, उतने शायद कहीं और नहीं. यहां आदमी की किस्मत शुक्रवार के शुक्रवार बदलती है. यहां लोग गरीबी से उठ कर सितारों को छूने वाली ऊंचाई तक पहुंचे हैं और रात-दिन आसमान में उड़ने वाले पल भर में जमीन पर आकर गिरे हैं. 1950 और 60 के दौर के ऐसे ही सितारे थे, भगवान दादा. किसी समय वह सचमुच इंडस्ट्री के भगवान थे. महंगी कारों का सबसे बड़ा काफिला उनके पास था. बंगला और बैंक बैलेंस था. मगर वह भी समय आया जब फिल्मों में घाटे की वजह से वह सब लुटा बैठे और दादर की चॉल में दो कमरे के मकान में रहने को मजबूर हो गए.
महंगे शौक ने निकाला दिवाला
पुराने दौर में एक्टर आज की तरह निवेश नहीं किया करते थे और जमकर पैसे उड़ाते थे. 1951 में आई फिल्म अलबेला (Albela) के गाने शोला जो भड़के में आज भी भगवान दादा को देखने वाले खूब पसंद करते थे. उन्हें महंगी शराब, घुड़दौड़ और जुए में पैसे लगाने का खूब शौक था. उन्हें लोग भी आस-पास ऐसे मिले, जिन्होंने उनका खूब फायदा उठाया. अतंतः वह दिवालिया हो गए. इंडस्ट्री के लोगों ने, जो कभी उनके आगे-पीछे काम और पैसे के लिए चक्कर लगाते थे, उनका साथ छोड़ दिया. एक समय ऐसा आया, जब स्टार रहे भगवान दादा ने फिल्मों में छोटे-छोटे रोल के लिए यहां-वहां धक्के खाए.
कुछ अच्छे लोग भी हैं
उम्र के साथ यह हुआ कि भगवान दादा बीमार हो गए और उनके लिए अपने कमरे से बाहर निकलना भी मुश्किल हो गया. लेकिन अपने आखिरी दिनों के एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि इंडस्ट्री भले ही बहुत खुदगर्ज लोगों से भरी हो, लेकिन कुछ लोग यहां हमेशा अच्छे होते हैं. उन्होंने बताया कि उनके बुरे दौर में भी अशोक कुमार (Ashok Kumar) और दिलीप कुमार (Dilip Kumar) जैसे लोग उनसे मिलने आते थे. भगवान दादा इन्हें असली मर्द कहते थे. उन्होंने यह भी बताया कि यह दोनों एक्टर कैसे उनकी मदद करते थे. असल में, ये लोग भगवान दादा से मिलने के लिए जब जाते तो चुपके से उनके तकिये के नीचे कुछ रुपये रख देते थे. भगवान दादा ने कहा कि मैं अच्छा एक्टर हूं और सामने वाले को खूब बारीकी से देखता हूं. मैं इन दोनों की हरकत देख लेता था, मगर यही बताता कि मैंने नहीं देखा क्योंकि अगर ऐसा नहीं करता, तो उनसे पैसा ले भी नहीं पाता. कभी 25 कमरों के बंगले में रहने वाले भगवान दादा का दादर की इसी चाल में 2002 में निधन हो गया.
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