Dilip Kumar थे लाइफ ट्रेनिंग स्कूल, उनके जीवन के हर किस्से से मिलती है सीख
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Dilip Kumar थे लाइफ ट्रेनिंग स्कूल, उनके जीवन के हर किस्से से मिलती है सीख

दिलीप कुमार (Dilip Kumar) ने अपने जीवन के 98 सालों में न सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री को बहुत कुछ दिया, बल्कि समाज को भी बहुत कुछ दे गए हैं. उनके जीवन के हर किस्से से कोई न कोई सीख मिलती है. 

 

दिलीप कुमार, फाइल फोटो.

नई दिल्ली: दिलीप कुमार (Dilip Kumar) ने अपने एक्टिंग करियर में जिन ऊंचाइयों को छुआ, उसके किस्से तो आपने बहुत देखे, सुने और पढ़े होंगे, लेकिन आज हम आपको ये भी बताना चाहते हैं कि दिलीप कुमार के जीवन से आप और हम क्या सीख सकते हैं. एक ऐसा जीवन, जिसमें संघर्ष था, सफलता थी, चुनौतियां थीं, उतार चढ़ाव थे, लेकिन कभी न हार मानने वाला जज्बा भी था.

  1. दिलीप कुमार के लिए सबसे पहले आता था देश
  2. दिलीप कुमार करते थे गहरी बातें
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  4. हॉलीवुड फिल्में करने से दिलीप ने किया था मना
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दिलीप कुमार के लिए सबसे पहले आता था देश

दिलीप कुमार (Dilip Kumar) के लिए देश सबसे पहले था और भारत की आजादी से पहले हर देशवासी की तरह ही दिलीप कुमार जो तब युसूफ़ खान के नाम से जाने जाते थे, यही चाहते थे कि हिंदुस्तान को अंग्रेजों की हुकूमत से आजादी मिल जाए. एक बार ब्रिटिश राज के खिलाफ बोलने की वजह से उन्हें जेल तक जाना पड़ा, लेकिन गांधीवाला नाम मिलने का उन्हें बहुत गर्व था. फिल्मस्टार बनने के बाद भी अपने पूरे सार्वजनिक जीवन के दौरान उन्होंने इस बात का खास ख्याल रखा कि एक कलाकार होने के साथ-साथ वो देश के एक जिम्मेदार नागरिक भी हैं, जिन्हें देशहित में हमेशा आवाज बुलंद करनी है. कारगिल युद्ध के दौरान दिलीप कुमार ने उस वक्त पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे नवाज शरीफ को फोन पर फटकार लगाते हुए कहा था कि आपने हमेशा अमन का बड़ा समर्थक होने का दावा किया है तो हम आपसे जंग की उम्मीद नहीं करते. उन्होंने नवाज शरीफ से जल्द हालात को काबू में लाने की बात कही थी.

दिलीप कुमार करते थे गहरी बातें

इसमें कोई शक नहीं कि दिलीप कुमार (Dilip Kumar) का स्टारडम बेजोड़ था. ऐसा बेजोड़ जो कम कलाकारों को ही देखने को मिलता है, लेकिन दिलीप कुमार ने कभी खुद पर उस स्टारडम को हावी नहीं होने दिया. इसे लेकर उनका नजरिया एकदम साफ था. वो कहते थे कि मेरे घर के बाहर जो लोगों की भीड़ लगती है या जब मैं पार्क में सायरा के साथ वॉक करने जाता हूं तो लोग रोक कर हमसे बात करना चाहते हैं, वो जो दिलचस्पी है लोगों की मुझमें वो उन किरदारों की वजह से है जो मैं बड़े पर्दे पर निभाता हूं. दिलीप कुमार ने अपने करियर में बहुत जल्द इस बात को समझ लिया था कि एक कलाकार के तौर पर मिलने वाले प्यार में अगर वो बह गए तो उन्हें बहुत मुश्किल होगी, उनका मानना था कि काम से प्यार करो, काम के अंजाम से प्यार मत करो. इतनी गहरी बात को समझ पाना और उस पर अमल करना हर कलाकार के बस की बात नहीं. दिलीप कुमार का मानना था कि एक्टर का कोई टाइम पीरियड नहीं होता और स्टार जैसे शब्द सिर्फ मार्केटिंग के काम आते हैं. कामयाबी हासिल करने से ज्यादा कामयाबी हैंडल करना मुश्किल होता है. दिलीप कुमार के जीवन से हम ये सीख सकते हैं.

हॉलीवुड फिल्में करने से दिलीप ने किया था मना

दिलीप कुमार (Dilip Kumar) ने अपने 5 दशक के करियर में कभी खुद को जरूरत से ज्यादा बेचने की कोशिश नहीं की. कभी अपनी कामयाबी को भुनाने के हथकंडे नहीं अपनाए. एक समय ऐसा भी था जब दिलीप कुमार अपने करियर के पीक पर थे, उस वक्त उन्हें एक हॉलीवुड फिल्म करने का भी ऑफर आया, लेकिन दिलीप कुमार ने ये कहते हुए उस ऑफर को ठुकरा दिया कि उन्हें हॉलीवुड में बाहरी महसूस होगा और अपनी काबलियत साबित करने के लिए मुझे हॉलीवुड जाने की आवश्यकता नहीं है.

हर रिश्ते को संभाल के रखते थे दिलीप कुमार

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को ऐसी जगह माना जाता है जहां कोई भी रिश्ता परमानेंट नहीं होता. बॉक्स ऑफिस पर जैसे हर शुक्रवार फिल्में बदलती हैं, वैसे ही रिश्ते भी बदलते हैं, लेकिन दिलीप कुमार (Dilip Kumar) के साथ ऐसा नहीं था. उन्होंने जो भी रिश्ता बनाया, उसे ताउम्र जीया भी. फिर चाहे वो धर्मेंद्र को छोटा भाई मानना हो, लता मंगेशकर को एक बड़े भाई की तरह प्यार देना हो या शाहरुख में अपना बेटा देखना हो. दिलीप कुमार की ये खासियत थी कि वो जिस तरह से सिल्वर स्क्रीन पर अपनी मौजूदगी से गरिमा लाते थे, वही शालीनता उनकी असल जिंदगी में भी नजर आती थी. Cut throat competition वाले बॉलीवुड में दिलीप कुमार का हर दौर के कलाकारों से अच्छा रिश्ता रहा. अंग्रेजी में एक कहावत है 'Respect is commanded, not demanded' यानी इज्जत मांगी नहीं जाती, कमानी पड़ती है. उस लिहाज से देखें तो दिलीप कुमार ने अपने व्यवहार से खूब सम्मान कमाया

खुद को समय के साथ बदलते रहे दिलीप कुमार

दिलीप कुमार (Dilip Kumar) की एक और खासियत रही कि उन्होंने खुद को समय के साथ बदला. 1976 में जब वो अपने करियर की आधी पारी खेल चुके थे तब उन्होंने ब्रेक लिया और खुद को एक कैरेक्टर आर्टिस्ट के तौर पर ढाला. दिलीप कुमार ने बदलते वक्त की मांग को समझा और खुद को वैसे ही ढाल लिया. नतीजा ये रहा कि करियर की अगली आधी पारी में भी वो हिट रहे और कर्मा, शक्ति और सौदागर जैसी फिल्मों में काम किया. यहां तक की ज़िंदगी के उस पड़ाव तक भी, जब तक शरीर ने साथ दिया, दिलीप साहब फिल्म इंडस्ट्री और फैंस से जुड़े रहे. वो एक्टिंग स्कूल होने के साथ साथ एक लाइफ ट्रेनिंग स्कूल भी बनकर इस दुनिया से विदा हुए.

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