Gauraiya Live Review: 18 साल पहले गड्ढे में गिरे नन्हे प्रिंस की कहानी तो याद ही होगी. वो कहानी जिसने रात-दिन लोगों को हैरान करके रख दिया था. अब ऐसी ही एक कहानी पर फिल्म बनाई गई है 'गौरैया लाइव'. इसमें पीपली लाइव और जवान से मशहूर होने वाले एक्टर लीड रोल में हैं. पढ़िए 'गौरैया लाइव' का रिव्यू.
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फिल्म : गौरैया लाइव
बैनर: रेयर फिल्म्स, टी एंड पोएट्री फिल्म्स
कास्ट : अदा सिंह, ओंकार दास, सीमा सैनी, नरेंद्र खत्री, शगुफ्ता अली और विनय झा
डायरेक्टर: गेब्रियल वत्स
समय अवधि: 1 घंटा 50 मिनट
सर्टिफिकेट: U/A
रेटिंग: 3 स्टार
चिड़िया चहकेगी फिर से मेरी, बिखेरा न, टूटे न पर कहीं... ये गीत है खूबसूरत सी फिल्म का. एक ऐसी फिल्म जिसकी कहानी हंसाती भी है और रूलाती भी है. जी हां, ये फिल्म है 'गौरैया लाइव', जो हाल में ही सिनेमाघरों में रिलीज हुई है. इस फिल्म में अदा सिंह, ओंकार दास, सीमा सैनी, नरेंद्र खत्री, विनय झा से लेकर शगुफ्ता अली जैसी सितारे नजर आए हैं. फिल्म को गेब्रियल वत्स ने डायरेक्ट किया है.
देशभर के कोने-कोने से बच्चों के गड्ढे या बोरवेल में गिरने की कई खबरें आईं. कई घंटे जिंदगी और मौत से लड़ते बच्चों की कहानी को मीडिया ने भी खूब कवर किया. इसी एक घटना को लेकर 'गौरैया लाइव' को गेब्रियल वत्स ने बनाया है. जहां 'पीपली लाइव' और 'जवान' एक्टर ओंकार दास मणिकपुरी लीड रोल में हैं.
फिल्म की कहानी
कहानी है रामपाल और उसके हंसते खेलते परिवार की. ऐसा परिवार जो गरीब जरूर हैं लेकिन खुशियों के मामले में बहुत अमीर है. इन्हें अच्छे से पता है कि छोटी छोटी चीजों में इंसान को कैसे खुश रहना होता है. रामपाल की बीवी बच्चे हैं. बिटिया का नाम उसने गौरैया रखा है. एक दिन गौरैया की मां बताती है आखिर उन्होंने बेटी का यही नाम क्यों रखा. वह बताती हैं कि वह हमेशा चिड़िया की तरह उड़ती और चहकती रहती हैं. ऐसे में इस नाम से बेहतर तो कुछ हो ही नहीं सकता था.
गौरैया अभी दस साल की है. मगर परिवार की जिम्मेदार लड़की है. वह अभी से पायलट बनने का सपना देखती है. मजदूर पिता भी कुछ भी करके बच्ची को पढ़ाना लिखाना चाहता है. मगर हंसते-खेलते परिवार पर विपदा तब आती है जब गौरैया एक दिन गड्ढे में गिर जाती हैं. 30 घंटे तक वह गहरे गड्ढे में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ती है. आखिर कैसे परिवार से इस मुश्किल से बाहर आएगा, यही कहानी फिल्म में दिखाई गई है.
'गौरैया लाइव' रिव्यू
गेब्रियल वत्स के निर्देशन में बनी फ़िल्म गरीबी और अमीरी के बीच की पैदा हुई खाई पर असरदार चोट करती है. यह फ़िल्म आर्थिक असमानता के साथ-साथ जाति, दहेज और दूसरी सामाजिक बुराइयों पर भी बराबर बात करती है. फिल्म में जिस तरह से वत्स ने बिल्डर, राजनेता और एजुकेशन सिस्टम पर तज किया है वो दिल झकझोरने वाला वाला है.
करीब एक घंटा 50 मिनट की यह फिल्म शुरू से लेकर अंत तक आपको स्क्रीन पर बांधे रखने में सक्षम है. फिल्म में कुछ सीन फ़्लैशबैक के डाले गए हैं, जो कई बार कहानी की तारतम्यता को तोड़ते हैं. इस फिल्म का सबसे असरदार सीन वे दस मिनट हैं, जब गड्ढे में गिरी गौरया को बचाने के लिए सेना अपना बचाव कार्य शुरू करती हैं.
डायरेक्शन से लेकर कैमरा हो या पटकथा, फिल्म आपको निराश नहीं करती हैं. गेब्रियाल वत्स के निर्देशन में बनी इस फिल्म जो कुछ अधूरा है उसे ओंकार दास हमेशा की तरह अपनी एक्टिंग से पूरा कर देते हैं. ओंकार दास के साथ-साथ गौरया और दूसरे एक्टर ने अपने किरदार के साथ पूरा-पूरा न्याय किया है.