मोहम्मद रफी की मौत से चंद घंटे पहले हुई थी इस गाने की रिकॉर्डिंग, सुनकर कानों में घुल जाएंगे शहद
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मोहम्मद रफी की मौत से चंद घंटे पहले हुई थी इस गाने की रिकॉर्डिंग, सुनकर कानों में घुल जाएंगे शहद

यूं तो मोहम्मद रफी के गाए लगभग सारे गाने कानों में रस घोल देते हैं, लेकिन हम रफी साहब के  93वें जन्मदिन पर हम आपको उस गाने की याद दिला रहे हैं, जिसे उन्होंने मौत से चंद घंटे पहले रिकॉर्ड किया था.

मोहम्मद रफी के जन्मदिन पर उनके सम्मान में Google ने Doodle बनाया. तस्वीर साभार: Google

नई दिल्ली: यूं तो मोहम्मद रफी के गाए लगभग सारे गाने कानों में रस घोल देते हैं, लेकिन जब कभी कोई महान शख्सियत इस दुनिया से रुखसत होते हैं तो उनकी आखिरी बड़े काम को याद किया जाता है. दुनियाभर में 24 दिसंबर को मोहम्मद रफी के जन्मदिन पर लोग उन्हें याद करते हैं. कोई उनके गाए गाने सुनकर उन्हें याद करता है तो उनसे व्यक्तिगत रिश्ते रखने वाले उनके जिंदादिली की किस्से याद याद करते हैं. रफी साहब के  93वें जन्मदिन पर हम आपको उस गाने की याद दिला रहे हैं, जिसे उन्होंने मौत से चंद घंटे पहले रिकॉर्ड किया था. या यूं कहें कि अपनी लाजवाब गायकी से दुनिया भर के लोगों की जिंदगी से गम भुलाने करने वाले रफी साहब ने आखिरी वक्त में भी लोगों को अपनी मौत का अहसास नहीं होने दिया.

  1. मोहम्मद रफी का गाया आखिरी गाना फिल्म 'आस-पास' में है
  2. इस गाने को रफी साहब ने मौत से चंद घंटे पहले रिकॉर्ड किया था
  3. रफी साहब का आखिरी गाना धर्मेंद्र पर फिल्माया गया है

मौत से चंद घंटे पहले मोहम्मद रफी साहब ने फिल्म 'आस-पास' के लिए एक गाने की रिकॉर्डिंग की थी. यह गाना है- 'शाम फिर क्यों उदास है दोस्त, तू कहीं आसपास है दोस्त...' यह गाना उस दौर की सुपरहिट जोड़ी धर्मेंद्र और हेमा मालिनी पर फिल्माया गया था. गाने में धर्मेंद्र उदास मन से फिल्म की एक्ट्रेस हेमा मालिनी को याद करते दिख रहे हैं.

मोहम्मद रफी के जन्मदिन के मौके पर गूगल (Google) ने डूडल (Doodle) बना कर उन्हें समर्पित किया है. मोहम्मद रफी का जन्म 1924 को पंजाब के अमृतसर जिले के कोटला सुल्तान सिंह गांव में हुआ था. आज भी अपने गानों से लोगों के दिल पर राज करने वाले रफी साहब को गाने की प्रेरणा उनके घर के आस पास घूमने वाले एक फकीर से मिली. रफी साहब के पिता की लाहौर में एक नाई की दुकान थी और रफी साहब का ज्यादातर वक्त उसी दुकान पर गुजरता था, जहां वह गाने गाया करते थे और लोग उनकी आवाज को काफी पसंद करते थे. 

लोगों को उनकी आवाज काफी पसंद आती थी इस बात को देखते हुए उनके पिता ने रफी साहब को क्लासिक म्यूजिक सिखाया. उन्होंने उस्ताद अब्दुल वाहिद खान, पंडित जीवन लाल मट्टो और फिरोज निजामी से क्लासिक म्यूजिक सीखा. मोहम्मद रफी ने अपनी पहली परफॉर्मेंस 13 साल की उम्र में दी थी. इसके बाद 1941 में उन्होंने 'सोनिये नी हीरीये नी' से किया था. यह गाना पंजाबी फिल्म 'गुल बलोच' का है और यह फिल्म 1944 में रिलीज हुई थी. इसके बाद 1945 में उन्होंने हिंदी सिनेमा में फिल्म 'गाओं की गोरी' से डेब्यू किया था.

इस तरह से शुरू हुआ रफी साहब का प्लेबैक सिंगर का सफर काफी लंबा चला और उन्होंने अपने करियर में सात हजार से ज्यादा गाने गाए. वह एक बहुमुखी सिंगर के तौर पर जाने जाते थे. उन्होंने क्लासिक, गजल, रोमांटिक, भजन हर तरह के गाने गाए हैं. इतना ही नहीं उन्होंने हिंदी के अलावा कोंकणी, भोजपुरी, बंगाली, मराठी जैसी कई भाषाओं में गाने गाए हैं. उन्हें 6 बार फिल्मफेयर अवॉर्ड और एक नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है. इतना ही नहीं 1967 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. 

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1970 से 1974 के बीच अपनी खबार तबियत के चलते वह कुछ फिल्मों के लिए गाया करते थे और इस दौरान किशोर कुमार काफी मशहूर सिंगर बन गए. हालांकि, उन्होंने इस वक्त में भी कई सुपरहिट गाने दिए. हालांकि, 31 जुलाई 1980 को हार्ट अटैक आने की वजह से उनकी मृत्यु हो गई थी. उस वक्त उनकी उम्र 55 साल थी. उनका आखिरी गाना 'श्याम फिर क्यों उदास है दोस्त/ तू कंही आस पास है दोस्त' है जिसे उनकी मृत्यु से कुछ वक्त पहले ही रिकॉर्ड किया गया था.

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