फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' को लेकर जारी विवाद पर बोले इतिहासकार बाबासाहब पुरंदारे
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फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' को लेकर जारी विवाद पर बोले इतिहासकार बाबासाहब पुरंदारे

संजय लीला भंसाली की फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' में तथ्यों के साथ छेड़छाड़ को लेकर जारी विवाद के बीच मराठों के अध्ययन पर अच्छी पकड़ रखने वाले वयोवृद्ध इतिहासकार बाबासाहब पुरन्दारे का कहना है कि 'पेशवाओं' से जुड़े लाखों दस्तावेजों को पढ़ा जाना और उनपर शोध करना अब भी बाकी है।

फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' को लेकर जारी विवाद पर बोले इतिहासकार बाबासाहब पुरंदारे

पुणे: संजय लीला भंसाली की फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' में तथ्यों के साथ छेड़छाड़ को लेकर जारी विवाद के बीच मराठों के अध्ययन पर अच्छी पकड़ रखने वाले वयोवृद्ध इतिहासकार बाबासाहब पुरन्दारे का कहना है कि 'पेशवाओं' से जुड़े लाखों दस्तावेजों को पढ़ा जाना और उनपर शोध करना अब भी बाकी है।

पुरन्दारे ने कहा कि पुणे के रिकार्ड रूम में पेशवाओं के समय के लाखों से अधिक दस्तावेजों के करीब 5,000 पृष्ठ ही पड़े हैं और उनका अध्ययन और शोध करने पर पेशवाओं के शासनकाल की जिंदगी के बारे में गहन जानकारी मिल सकती है। महाराष्ट्र की शिवसेना-भाजपा सरकार ने हाल में पुरन्दारे को राज्य के सर्वोच्च सम्मान 'महाराष्ट्र भूषण' से सम्मानित किया था।

सरकार के इस फैसले का कुछ समूहों ने विरोध किया था। पुरन्दारे ने मराठा शासक छत्रपति शिवाजी पर कई किताबें लिखी हैं। उन्होंने कहा कि मराठा शासन पर अधिकतर साहित्य मराठी भाषा में लिखा गया है और देश की गैर मराठी भाषी आबादी महाराष्ट्र के समृद्ध इतिहास से अच्छे से वाकिफ नहीं है।

पुरन्दारे ने कहा, कम से कम किसी ने हिन्दी में बाजीराव पेशवा पर फिल्म बनाने के बारे में सोचा और फिल्म लेकर आए। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश चाहते थे कि मराठों का इतिहास खासकर उत्तर भारत में रिकार्ड रूम तक सीमित रहे। इसलिए किसी तरह के व्यवस्थित शोध को बढ़ावा नहीं दिया गया। इस कारण मराठा साम्राज्य के बारे में कम जानकारी है।

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