हाथ में हॉकी स्टिक लेकर कभी प्रतिद्वंद्वी टीम के गोल पोस्ट में गेंद को दागना तो कभी सामने वाली टीम को गोल करने से रोकने की दौड़-भाग छोड़कर एक्टिंग की दुनिया में आने की प्रियंका सिंह (Priyanka Singh) की जिंदगी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं. ऐसा है खिलाड़ी से एक्ट्रेस बनने का सफर&nb
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नई दिल्ली: हाथ में हॉकी स्टिक लेकर कभी प्रतिद्वंद्वी टीम के गोल पोस्ट में गेंद को दागना तो कभी सामने वाली टीम को गोल करने से रोकने की दौड़-भाग छोड़कर एक्टिंग की दुनिया में आने की प्रियंका सिंह (Priyanka Singh) की जिंदगी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं.
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले से मुंबई में बॉलीवुड की चका-चौंध भरी दुनिया में आकर अलग-अलग किरदार निभाने का जुनून सिर पर कुछ ऐसा सवार हुआ कि प्रियंका सिंह (Priyanka Singh) हॉकी में ज्यादा देर तक मन नहीं लगा. एक्टिंग के लिए उन्होंने हॉकी स्टिक छोड़ दी और 2017 मुंबई का रुख किया. फिर शुरू हुआ ऑडिशन पर ऑडिशन देने का सिलसिला.
ऐसे में काम ना मिलने पर एक बार प्रियंका निराश होकर फिर कभी भी मुंबई लौटकर नहीं आने के लिए सहारनपुर भी चली भी गईं. लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था इसलिए एक ऐड फिल्म की शूटिंग का हिस्सा बनने के लिए प्रियंका सिंह को फिर से मुंबई आने का न्यौता मिला. प्रियंका सिंह की वापसी और एक्टिंग के प्रति उनके जुनून ने अपना रंग दिखाया. जल्द उन्हें 'काशी - इन सर्च ऑफ गंगा' में शरमन जोशी की बहन का अहम किरदार निभाने का मौका मिला. प्रियंका सिंह ने फिल्म में गंगा का रोल निभाया था. फिल्म में प्रियंका की अदाकारी को लोगों ने पसंद किया. अब वह जल्द ही कई और फिल्मों में नजर आने वाली हैं.
2018 में रिलीज हुई अपनी पहली फिल्म 'काशी - इन सर्च ऑफ गंगा' के लिए वाहवाही पाने के बाद अब प्रियंका सिंह अपनी दूसरी फिल्म 'सुस्वागतम् खुशामदीद' में जल्द नजर आने वाली हैं. पुलकित सम्राट, इसाबेल कैफ स्टारर इस फिल्म में प्रियंका सिंह इसाबेल की बहन के अहम रोल में नजर आएंगी. फिल्म का निर्देशन किया है धीरज कुमार ने जिन्होंने 'काशी - इन सर्च ऑफ गंगा' का भी निर्देशन किया था.
बॉलीवुड में अपने इस रोचक सफर के बारे में प्रियंका सिंह कहती हैं, 'सहारनपुर से मेरा मुंबई आ जाना और फिल्मों में काम करना आज भी मुझे एक ख्वाब सा लगता है. मुझे यकीन नहीं होता कि मैं इस वक्त फिल्मों में काम कर रही हूं और एक्टिंग करते हुए रोज नई-नई चीजें सीख रही हूं. मुझे पूरा यकीन है कि एक दिन मैं अपनी मां को अपने काम से जरूर गौरवान्वित महसूस कराऊंगी. वैसे उन्हें अब भी मुझपर नाज है.' वह स्ट्रगल करने वालों को एक सलाह देती हैं, 'मुंबई आओ तो अपने साथ मुट्ठी भर हौसला लेकर आओ. संघर्ष के दिन लम्बे... बहुत लम्बे हो सकते हैं, इस बात की मानसिक तैयारी होनी चाहिए कि कुछ पाने का इंतजार लंबा भी हो सकता है.'