FILM REVIEW: देशभक्ति से लबरेज है जॉन अब्राहम की फिल्म 'बाटला हाउस'
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FILM REVIEW: देशभक्ति से लबरेज है जॉन अब्राहम की फिल्म 'बाटला हाउस'

पिछले कुछ सालों से जॉन का झुकाव देशभक्ति फिल्मों की तरफ ही नजर आ रहा है. इससे पहले भी वह 'परमाणु' और 'सत्यमेव जयते' जैसी फिल्मों से लोगों का दिल जीतने में सफल रहे हैं. 

फिल्म 'बाटला हाउस' कल (15 अगस्त) सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है (फिल्म पोस्टर)

नई दिल्ली: दिल्ली के बाटला हाउस एनकाउंटर पर बनी जॉन अब्राहम की मोस्ट अवेटेड फिल्म 'बाटला हाउस' कल (15 अगस्त) सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. निखिल आडवाणी द्वारा निर्देशित इस फिल्म में जॉन अब्राहम के अलावा मृणाल ठाकुर, नोरा फतेही और रवि किशन भी अहम भूमिकाओं में हैं. इस फिल्म का लोगों को काफी बेसब्री से इंतजार था. एक सच्ची घटना पर आधारित यह फिल्म देशभक्ति से लबरेज है. वैसे, पिछले कुछ सालों से जॉन का झुकाव देशभक्ति फिल्मों की तरफ ही नजर आ रहा है. इससे पहले भी वह 'परमाणु' और 'सत्यमेव जयते' जैसी फिल्मों से लोगों का दिल जीतने में सफल रहे हैं.  

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बता दें, 19 सितंबर, 2008 को जब दिल्ली के बाटला हाउस में दिल्ली पुलिस ने एक एनकाउंटर किया और उसके बाद पूरे देश में दिल्ली पुलिस के खिलाफ आवाज उठाई गई. इस एनकाउंटर को कई लोगों ने झूठा बोला तो कइयों ने मरने वाले आतंकवादियों को स्टूडेंट बताया. इसी सच और लड़ाई की कहानी लेकर डायरेक्टर निखिल आडवाणी ने फिल्म बनाई है. फिल्म में जॉन अब्राहम 'संजीव कुमार यादव' और रवि किशन 'के के' की भूमिका में हैं, जो दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के ऑफिसर हैं. फिल्म में संजीव कुमार यादव की पत्नी नंदिता कुमार का किरदार मृणाल ठाकुर ने निभाया है.  

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फिल्म की कहानी 19 सितंबर, 2008 शुरू होती है, जब दिल्ली में हुए सीरियल बम धमाकों की जांच के सिलसिले में दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के ऑफिसर के के और संजीव कुमार अपनी टीम के साथ बाटला हाउस एल-18 नंबर की इमारत पर पहुंचते हैं. इस इमारत की तीसरी मंजिल पर इनकी मुठभेड़ इंडियन मुजाहिदीन के संदिग्ध आतंकियों से होती है, जिसमें दो संदिग्ध आतंकियों की मौत हो जाती है, लेकिन इसी बीच दिल्ली पुलिस के जांबाज आफिसर 'के के' की मौत हो जाती है और एक ऑफिसर जख्मी हो जाता है. इसी दौरान एक संदिग्ध आतंकी मौके से फरार हो जाता है. इस एनकाउंटर के बाद पूरे देश में राजनीति और आरोप-प्रत्यारोपों का माहौल गरमा जाता है. 

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लोग इस एंकाउंटर को फेक बताने लगते हैं. कई राजनीतिक पार्टियों और मानवाधिकार संगठनों द्वारा संजीव कुमार की टीम पर बेकसूर स्टूडेंट्स को आतंकी बताकर फेक एनकाउंटर करने के गंभीर आरोप लगते हैं. इतना नहीं संजीव के अपने डिपार्टमेंट के लोग भी इस एंकाउंटर पर सवाल खड़े करने लगते हैं. इसी बीच संजीव कुमार पोस्ट ट्रॉमैटिक डिसॉर्डर जैसी मानसिक बीमारी की चपेट में आ जाते हैं. इसके बावजूद वह अपनी लड़ाई खुद लड़ते हैं और इस दौरान उनकी पत्नी संजीव कुमार का पूरा देती नजर आती हैं. क्या संजीव कुमार अपनी टीम को बेकसूर साबित कर पाता है या नहीं? इसके लिए आपको सिनेमाघर जाकर पूरी फिल्म देखनी होगी.

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इसमें कोई शक नहीं है कि फिल्म में हर एक कलाकार ने अपनी-अपनी भूमिका के साथ इंसाफ किया है. वहीं, फिल्म की डायरेक्शन की बात करें तो, इस एंकाउंटर के बाद की पूरी कहानी को शानदार तरीके से लोगों के बीच लाने में निखिल आडवाणी पूरी तरह से सफल साबित हुए हैं. निखिल ने फिल्म में दिग्विजय सिंह, अरविंद केजरीवाल, अमर सिंह और एल के अडवानी जैसे नेताओं के रियल फुटेज का इस्तेमाल किया है. वहीं, फिल्म की संगीत की बात करें तो इसके लगभग गाने पहले से ही सोशल मीडिया पर छाए हुए हैं, जिसे बड़े पर्दे पर देखना और भी मनोरंजक लगता है खासकर नोरा फतेही का 'ओ साकी साकी'. कुल मिलाकर हम यह सकते हैं कि जॉन अब्राहम ने एक बार फिर से अपनी जबरदस्त अभिनय से लोगों के दिल को जीत लिया है. 

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