Ulajh Review: ' जाह्नवी कपूर, गुलशन देवैया, रोशन मैथ्यू, आदिल हुसैन, जितेन्द्र जोशी, चैंग, राजेश तेलंग और राजेन्द्र गुप्ता की फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है जिसे सुधांशु सरिया ने डायरेक्ट किया है. चलिए बताते हैं आखिर जान्हवी कपूर की ये फिल्म कैसी है.
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स्टार कास्ट: जाह्नवी कपूर, गुलशन देवैया, रोशन मैथ्यू, आदिल हुसैन, जितेन्द्र जोशी, चैंग, राजेश तेलंग और राजेन्द्र गुप्ता
निर्देशक: सुधांशु सरिया
कहां देख सकते हैं: थिएटर्स में
स्टार रेटिंग: 3
फिल्म को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वो दर्शकों को सीट से बांधे रख सके कि क्या हो रहा है? या आगे क्या होने वाला है. इसीलिए ना जाह्नवी के बॉयफ्रेंड की शक्ल दिखाई गई और ना ही फिल्म में इतने बड़े चरित्र अभिनेताओं के होने के बावजूद उन सबको ज्यादा तबज्जो ही दी गई. ज्यादा से ज्यादा फोकस जाहन्वी और गुलशन देवैया पर किया गया और अगर आप इस मूवी को देखने हॉल में घुस गए हैं तो निराश नहीं होंगे लेकिन असली लड़ाई तो जाहन्वी के नाम पर लोगों को सिनेमाघरों में लाने की है.
Ulajh Review Story
‘उलझ’ टाइटिल मूवी की कहानी को छुपाने के लिए शायद रखा गया है, क्योंकि लिटरेचर फेस्टीवल का तो ये अच्छा नाम हो सकता है लेकिन दर्शकों को आकर्षित नहीं करता. इसकी कहानी है एक ऐसे आईएफएस अफसरों के भाटिया खानदान की, जिनकी ‘भाटिया लीगेसी’ की देश चर्चा करता है. ऐसे में सुहाना भाटिया (जाह्नवी कपूर) का नाम जब लंदन दूतावास के ‘डिप्टी हैड’ के तौर पर चुना जाता है तो पिता धनराज भाटिया (आदिल हुसैन) भी चौंक जाते हैं, लेकिन बेटी को लगता है कि पापा को पसंद नहीं आया.
अपने बॉयफ्रेंड से अरसे से नाराज चल रहीं सुहाना की जिंदगी में बहुत जल्द लंदन में नकुल (गुलशन देवैया) आता है, कई भाषाओं का जानकार और बेहतरीन कुक, सुहाना उसे दिल दे बैठती है और जिस्म भी. फिर सामने आता है नकुल का असली चेहरा और सुहाना ब्लैकमेलिंग के जाल में फंसती चली जाती है. वो तमाम गुप्त कागजात और सूचनाएं उसे देश के दुश्मनों को देनी पड़ती हैं, जो बेहद संवेदनशील हैं. इधर भारत के स्वतंत्रता समारोह की वर्षगांठ पर पाक के प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रची जा रही है. साजिश के इस जाल से जाह्नवी कैसे निकलती है, यही कहानी है मूवी की.
राजेन्द्र गुप्ता विदेश मंत्री के रोल में हैं और चैंग व रोशन मैथ्यू लंदन में काम कर रहे रॉ ऑफीसर्स के रोल में तो राजेश तैलंग के हिस्से लंदन दूतावास के ड्राइवर का रोल आया है. वहीं एक सीन में साक्षी तंवर भी एक स्पेशल महिला कमांडोज की यूनिट हैड के तौर पर दिखी हैं. सबसे दिलचस्प है ‘गोदावरी’ फिल्म के लिए IFFI, गोवा में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार पा चुके जितेन्द्र जोशी का रोल, रॉ के डिप्टी हैड के तौर पर उनकी भूमिका है.
ऐसे में इन तमाम जाने पहचाने और मंझे हुए कलाकारों को अगर सही से इस्तेमाल किया गया होता तो मूवी और बेहतर हो सकती थी, लेकिन मूवी देखकर आपको लगेगा कि आदिल हुसैन, राजेन्द्र गुप्ता, चैंग, साक्षी तंवर और किसी हद तक राजेश तैलंग को भी सही से इस्तेमाल किया नहीं गया है. सारा फोकस जाह्नवी पर है, फिर गुलशन देवैया पर. गुलशन आपको कभी निराश नहीं करते, जाह्नवी लगातार बेहतर हुई हैं, लेकिन उनको रोल के हिसाब से ज्यादा निरीह दिखने से बचना चाहिए था. हालांकि उन पर फोकस होना कहानी की मांग भी थी. लेकिन क्या जाह्नवी अकेला ये लोड ले पा रही हैं. क्योंकि जिस तरह जाह्नवी ने अपने कैरियर को चुना है, उन्होंने हीरो को एक तरह से फिल्म में गायब ही करना शुरू कर दिया है.
जिसके चलते उनकी कई फिल्मों को ओटीटी पर ही रिलीज करना पड़ा. जो आम फॉर्मूला फिल्म थी, वो थी उनकी पहली फिल्म ‘धड़क’, जो उनकी इकलौती 100 करोड़ मूवी थी, जिसमें जाह्नवी आम हीरोइंस की तरह थीं. लेकिन बाद में गुंजन सक्सेना, रूही, गुड लक जैरी, मिली जैसी फिल्मों के टाइटिल ही बताते हैं कि महिला प्रधान फिल्म ही होगी. ऐसे में धड़क के बाद केवल राजकुमार राव के बराबर रोल वाली ‘माही’ ने 50 करोड़ से ऊपर बिजनेस किया, बाकी फिल्में या तो ओटीटी पर रिलीज हुईं या बस फिल्म की लागत ही निकाल पाईं.
'उलझ' का रिव्यू
हालांकि नामी चरित्र अभिनेताओं की फौज, अनावश्यक सींस, रोमांस, गानों को ना डालने का फैसला निर्देशक सुधांशु सरिया का अच्छा था, जिसके चलते आप बोर नहीं होते, लेकिन इतनी जल्दी गुलशन के जाल में जाह्नवी का फंसना भी जमा नहीं. सवाल इस पर भी उठेंगे कि कैसे लंदन दूतावास में बैठे किसी विदेश सेवा के अधिकारी को कराची में तैनात भारतीय रॉ एजेंट्स की खबर हो सकती है. लंदन दूतावास के तहत कहीं से भी पाकिस्तानी दूतावास नहीं आता. किसी के दिमाग में ये भी आ सकता है कि पाकिस्तानी पीएम की हत्या भारत में करवाने की योजना से बेहतर था कि एक आंतकी को पाकिस्तान में ही मरवा देना, जैसा आजकल हो रहा है. लेकिन शायद निर्देशक ने इसका ज्यादा लोड नहीं लिया. वैसे सुंधाशु सरिया एक साइकोलॉजिकल थ्रिलर ‘नॉक नॉक नॉक’ के लिए नेशनल अवॉर्ड भी ले चुके हैं, उसका तजुर्बा इस मूवी का पेस बनाए रखने में काम आया.
ये अलग बात है कि ‘उलझ’ की कहानी को थोड़ा अपमार्केट ले जाने की कोशिश हुई है, यानी आईएफएस, रॉ आदि. लेकिन फिल्म की एडवांस बुकिंग काफी निराशाजनक हैं, जो मुकाबले में उतरी अजय देवगन की फिल्म ‘औरों में कहां दम था’ की भी हैं, दोनों ही फिल्मों की कोई खास चर्चा नहीं है. ऐसे में फिल्म के एक एक सीन को एंगेजिंग बनाने के बावजूद, फिल्म पर पकड़ बनी रहने के बावजूद, गुलशन देवैया के साथ साथ बाकी सितारों की अच्छी एक्टिंग के बावजूद और जाह्नवी के होने के बावजूद अगर दर्शक सिनेमा हॉल्स में पहुंचे ही नहीं तो इसमें जाह्नवी भी कुछ नहीं कर सकतीं. वैसे भी महानगरों में बारिश ने हालात इस कदर खराब कर रखे हैं कि लोग घरों से निकलने से डर रहे हैं. ऐसे में जब ओटीटी पर ये मूवी आएगी, तो आपके लिए एक अच्छा टाइम पास साबित होगी.