Haddi Film Review: हड्डी की कहानी में सिनेमा का भूगोल और चेहरे बदले हुए हैं. यह एक किन्नर (Trans Gender) के प्यार और बदले की कहानी है. दो घंटे से अधिक की यह फिल्म एक अलग दुनिया और किरदारों से रू-ब-रू कराती है. वीकेंड (Weekend Film) में इसे आप देख सकते हैं.
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Haddi Movie Review: जी5 (zee5) पर आज रिलीज हुई फिल्म हड्डी (Film Haddi), नवाजुद्दीन सिद्दिकी का फर्स्ट लुक मीडिया में रिलीज होने के साथ ही चर्चा में आ गई थी. फिल्म आपको एक अलग दुनिया में ले जाती है. किन्नरों की दुनिया. पिछले दिनों वेब सीरीज ताली (Web Series Taali) में यह दुनिया दिखाई थी, परंतु वह एक बायोपिक (Biopic) थी. हड्डी फिल्म है और ताली के बिल्कुल अलग. किन्नर किरदार को लीड रोल में रखकर बनाई गई यह किसी एक्शन-मसाला फिल्म की तरह है. जिसमें क्रूर विलेन और अच्छी खासी लड़ाई है. प्यार है. बदला है. इस कहानी में परतें धीरे-धीरे खुलती हैं. लेकिन आखिरी के आधे घंटे में घटनाक्रम तेज घूमता है.
राजनीति का मिक्स
हड्डी उत्तर भारत (North India) में रहने वाले एक लड़के हरी के हरिका और फिर हड्डी बनने की कहानी है. नवाजुद्दीन सिद्दिकी (Nawazuddin Siddiqi) बदलते-बदलते हड्डी यानी एक ट्रांसमहिला (Transwoman) के किरदार में बदल जाते हैं. यहां किन्नरों की पूरी एक दुनिया नजर आती है. रामायण (Ramayana) और महाभारत (Mahabharata) में उनकी कहानियां, उन्हें लेकर समाज में होने वाली बातें भी प्रमुखता से सामने आती हैं. यहां किन्नरों के घराने और राजनीति का मिक्स भी है. जो कहानी में वास्तविक उतार-चढ़ाव पैदा करता है. नोएडा (Noida) में एक राजनेता प्रमोद अहलावत (अनुराग कश्यप) संपत्ति और रसूख बढ़ाने के लिए, किन्नर घरानों की बस्तियां अपनी ताकत और रसूख से कब्जा रहा है. ताली में दिखाया गया था कि साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद किन्नरों को देश में थर्ड जेंडर (Third Gender) का दर्जा मिला. वर्ना उससे पहले जनगणना तक में उनकी गिनती नहीं होती थी. ऐसे में उनके नाम पर संपत्ति के कागजात कहां से होतेॽ हड्डी यह बात नहीं कहती, परंतु समझा जा सकता है कि अहलावत इसी बात का फायदा उठाता है.
हड्डियों का कारोबार
इसी पूरे घटनाक्रम के बीच अहलावत और हड्डी किस तरह आमने-सामने आ जाते हैं, यह जानने के लिए फिल्म देखनी चाहिए. एक शक्तिशाली राजनेता के सामने मामूली किन्नर की क्या हैसियतॽ लेकिन यह लड़ाई कई मोड़ों से होकर गुजरती है और इसमें तेजी से उभरने वाला इंसानी हड्डियों का धंधा सामने आकर चौंकाता है. सड़कों, अस्पतालों से लेकर मुर्दाघरों तक जिन लाशों (Unclaimed Dead Bodies) पर किसी का दावा नहीं होता, उनका मांस गलाकर बची हुई हड्डियों का कारोबार करोड़ों में चलता है. फिल्म इस बारे में भी रोचक तथ्य रखती है. वास्तव में हड्डी और अहलावत की कहानी के आखिरी पल फिल्म को रोमांचक तो बनाते ही हैं, वही इसे बेहद फिल्मी भी बना देते हैं. हड्डी का कहना है कि मैं मरती नहीं... कनफ्यूजन पैदा करता है. कुछ एक्शन दृश्य गले नहीं उतरते.
अनुराग का राग
अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap) फिल्म में छाप छोड़ते हैं. हालांकि कहीं-कहीं वह लड़खड़ाते हैं और लगता है कि अपने काम को हल्के में ले रहे हैं, परंतु बाकी वह बेहद प्रभावी हैं. नवाजुद्दीन सिद्दिकी का अभिनय अच्छा है, मगर ऐसा लगता है कि उनकी एक्टिंग पर उनका व्यक्तित्व हावी हो गया है. वह अपने किरदार पर भारी पड़ जाते हैं. हर दृश्य में नवाज ही लगते हैं. बीती कुछ फिल्मों में लगातार उनके साथ यह हो रहा है. फिल्म की बाकी स्टारकास्ट रोचक है, लेकिन अदम्य भल्ला और अक्षत अजय शर्मा स्क्रिप्ट में उसका बेहतर इस्तेमाल नहीं कर सके. नवाज और अनुराग की कहानियों में जितनी परतें हैं, सहायक कलाकारों के ट्रेक वैसे मोड़ों से नहीं गुजरते. खास तौर पर विपिन शर्मा और मोहम्मद जीशान अयूब के किरदार देखकर लगता है कि इनके साथ न्याय नहीं हुआ.
दिल रखें मजबूत
निर्देशक के रूप में अक्षत अजय शर्मा ने फिल्म पर पकड़ बनाए रखी और जटिलाओं के बीच कहानी को संभालने में सफल रहे. आपको ऐसा कंटेंट सिनेमा पसंद है, जो मुख्यधारा की फिल्मों के आस-पास होता है, तो हड्डी एंटरटेन करेगी. फिल्म के संवाद भी अच्छे हैं. इसे अच्छे से शूट किया गया है. गीत-संगीत ध्यान खींचता है. वीकेंड पर आप घर में ही हैं, तो दो घंटे से कुछ अधिक की यह फिल्म देखने योग्य है. हालांकि कहीं-कहीं खून-खराबा अधिक है. थोड़ी हिम्मत आपको दिखानी होगी.
निर्देशकः अक्षत अजय शर्मा
सितारे: नवाजुद्दीन सिद्दिकी, अनुराग कश्यप, जीशान अयूब, इला अरुण
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