हिम्मत सिंह (Himmat Singh) एक बार फिर लौट आया है एक नई गुत्थी के साथ. 'स्पेशल ऑप्स 1.5 द हिम्मत स्टोरी' (Special Ops) एक खास स्टोरीलाइन के साथ अपने दर्शकों के लिए उपलब्ध है.
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नई दिल्ली: ए वेडनेस्डे, बेबी, स्पेशल 26 और अय्यारी जैसी मूवीज की तर्ज पर ही नीरज पांडे ने ओटीटी की 'स्पेशल ऑप्स' (Special Ops) सीरीज बना डाली है. इस बार कुछ नया किया, स्पेशल ऑप्स 2.0 की जगह 'स्पेशल ऑप्स 1.5 द हिम्मत स्टोरी' नाम दे दिया और इसके जरिए 2 फायदे किए. एक तो आधे एपिसोड यानी केवल 4 ही बनाए, दूसरे इस टाइटिल ने लोगों में उत्सुकता जगा दी और आम जनता को भी इस सीरीज का तकरीबन एक मूवी जितने ही वक्त में खत्म होना अच्छा लग रहा है.
तो ये सीक्वल या प्रिक्वल हिम्मत सिंह (Himmat Singh) की क्रोनोलॉजी के बारे में है कि वो कैसे हिम्मत सिंह बना. हालांकि पूरा देखते वक्त तो मजा आता है, लेकिन ये हिम्मत की पूरी जिंदगी की कहानी नहीं बल्कि एक केस की ही कहानी लगती है, जैसा पहले ऑपरेशन था, बल्कि उससे छोटा भी. ये अलग बात है कि चार एपिसोड्स में भी डायरेक्टर आपको लंदन, कोलम्बो, ढाका, कीव आदि कई शहरों की सैर करवाता है.
हालांकि हिम्मत सिंह (Himmat Singh) की कहानी को कहने के लिए जो पुराना तरीका आजमाया गया है, वो गले नहीं उतरता कि किसी व्यक्ति को रिटायरमेंट के बाद क्या मिले, इसके लिए दो अधिकारियों की जांच कमेटी बैठती है, पिछले वाले ही बनर्जी साहब (काली प्रसाद मुखर्जी) और चड्ढा साहब (परमीत सेठी) और उनके सामने इंस्पेक्टर अब्बास (विनय पाठक) हिम्मत की जिंदगी की कहानी बयां करता है, जो कि दरअसल केवल एक ऑपरेशन की कहानी होती है.
सो कहानी 20 साल पहले की होती है, किसी भी तरह हिम्मत सिंह (केके मेनन) को जवान दिखाने की कोशिश की गई है, तीन किरदार इस सीरीज में नए और अच्छी भूमिकाओं में हैं. आदिल खान रॉ ऑफिसर मनिंदर सिंह के रोल में, ऐश्वर्या सुष्मिता करिश्मा के रोल में और आफताब शिवदासानी विजय के रोल में. आफताब मौके को नहीं भुना पाए, लेकिन आदिल और ऐश्वर्या कमाल करते हैं.
कहानी का मूल आइडिया है हनी ट्रैप, कैसे नेताओं, फौजी अधिकारियों को हनी ट्रैप (Honey Trap) करके जाल में फंसाकर ब्लैक मेल किया जाता है, उस पर रॉ काम करना शुरू करता है. हिम्मत सिंह को फिर बुलाया जाता है और विजय के साथ इस ऑपरेशन की कमान सौंपी जाती है. आखिर में पता चलता है कि खुद हिम्मत सिंह को हनी ट्रैप का शिकार बना लिया जाता है. इसी के चलते उनकी सारी कोशिशें फेल होती चली जाती हैं, लेकिन आखिर में हिम्मत सिंह इस केस के इंटरनेशनल खिलाड़ी के साथ मिलकर देसी खिलाड़ी को मौत की नींद सुला देता है. हालांकि इस प्रिक्वल में ये भी बताया गया है कि सरोज (गौतमी कपूर) से मिलने की हिम्मत की क्रोनोलॉजी क्या है.
नीरज पांडे (Neeraj Pandey) पिछली बार की तरह इस बार भी कई सच्ची घटनाओं की तरफ इशारा करते नजर आते हैं. जिस तरह पिछली बार उन्होंने संसद की सच्ची घटना के साथ मूवी देख रही बेटी पर हिम्मत के नजर रखने का वाकया दिखाया था, वैसा ही वाकया रॉ के संस्थापक रामनाथ काव की बेटी ने एक इंटरव्यू में बताया था. उसी तरह इस प्रिक्वल में सन 2000 में वो विपक्ष की नेता एक महिला को दिखाते हैं, जो हनीट्रैप में फंसे अपने एक बेटे की मदद के लिए रॉ के जासूस हिम्मत की मदद लेती है, बाद में उसी की सरकार बनती है.
सीधे शब्दों में समझेंगे तो ये 1.5 सीरीज नीरज पांडे (Neeraj Pandey) टाइप ही है, स्पीड बनाए रखी गई है, आदिल खान और ऐश्वर्या के किरदार ही इस तरह रचे गए थे कि खलनायकी पर खरे उतरते हैं. उन्होंने भी काफी मेहनत की, आदिल खान को इस सीरीज से पहचान मिलनी तय है. केके मेनन और विनय पाठक तराशे हुए खिलाड़ी हैं और हमेशा की तरह निराश नहीं करते, दोनों के बीच की चुहलबाजी इस सीरीज में आपकी दिलचस्पी बनाए रखती है. मामूली सी गड़बड़ जरूर हैं, जो नजरअंदाज करने लायक हैं. सो पहली वाली देखी है, तो कम समय में इसमें भी आनंद लेंगे. सिनेमेटोग्राफी शानदार है, कैमरा वर्क और एडीटिंग पर हुई मेहनत भी आपको परदे पर से आंखे हटाने नहीं देती.
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