Former Prime Minister Chaudhary Charan Singh: भारत रत्न चौधरी चरण सिंह ने आजादी की लड़ाई लड़ी और बाद में आपातकाल विरोधी आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई. किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह कांग्रेस और गैर कांग्रेसी दोनों सरकारों में शामिल रहे.
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Bharat Ratna Chaudhary Charan Singh: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों चौधरी चरण सिंह और पीवी नरसिम्हा राव के साथ हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न सम्मान दिए जाने की जानकारी दी. पीएम मोदी (PM Narendra Modi) के सोशल मीडिया पोस्ट को देखकर सबने नामों के चुनाव को लेकर खुशी जताई. आइए, देश के पांचवें प्रधानमंत्री रहे किसान नेता ( Farmer's Leader) चौधरी चरण सिंह के बारे में कुछ दिलचस्प कहानी (Intresting Stories) जानते हैं.
आजादी की पहली लड़ाई 1857 में चौधरी चरण सिंह के पूर्वजों ने लिया था हिस्सा
चौधरी चरण सिंह के पूर्वजों ने 1857 में देश की आजादी की पहले लड़ाई में हिस्सा लिया था. संयुक्त उत्तर प्रदेश के हापुड़ में 23 दिसंबर 1902 को चौधरी चरण सिंह का जन्म हुआ था. अपने पूर्वजों के बारे में सुनने के बाद उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने की इस परंपरा को आगे बढ़ाया. चौधरी चरण सिंह भी देश की आजादी के लिए लड़े और पहली बार 1929 में जेल गए. इसके बाद सत्याग्रह करने को लेकर साल 1940 में दूसरी बार जेल भेजे गए. साल भर के बाद जेल से निकले तो दोबारा आंदोलन में जुट गए. देश की आजादी के बाद भी उन्होंने कांग्रेस में अलग-अलग अहम पदों पर काम किया.
शैक्षणिक और राजनीतिक करियर में चौधरी चरण सिंह ने क्या- क्या हासिल किया
आगरा विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई करने वाले चौधरी चरण सिंह ने गाजियाबाद में वकालत भी की. चौधरी चरण सिंह ने अंग्रेजी भाषा में 'अबॉलिशन ऑफ जमींदारी', 'लिजेंड प्रोपराइटरशिप' और 'इंडियास पॉवर्टी एण्ड इट्स सोल्यूशंस' किताबें भी लिखीं. उन्होंने पहली बार 1937 में यूपी के छपरौली से विधानसभा का चुनाव जीता था. इसके बाद 1946, 1952, 1962 और 1967 में भी इस क्षेत्र के लोगों ने उन्हें अपना नेता चुना. उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत की सरकार में चौधरी चरण सिंह संसदीय कार्य मंत्री बने. इसके साथ ही उन्होंने राजस्व, कानून और स्वास्थ्य विभाग भी संभाला.
जमींदारी उन्मूलन कानून पास, 27 हजार पटवारियों का सामूहिक इस्तीफा मंजूर
चौधरी चरण सिंह को डॉ. संपूर्णानंद और चंद्रभानु गुप्त की सरकारों में भी महत्वपूर्ण विभाग मिले. उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व मंत्री के रूप में चौधरी चरण सिंह ने साल 1952 में उत्तर प्रदेश विधानसभा से जमींदारी उन्मूलन कानून पास करा दिया. इस कानून के लागू होने के बाद जमींदारों के पास से अतिरिक्त जमीनें लेकर वहां काम करने वाले भूमिहीन किसानों को दी गईं. जमींदारों के यहां मजदूरी करने वाले किसान अब अपनी जमीन के मालिक हो गए.
जमींदारी उन्मूलन कानून पास होने के बाद आंदोलन कर रहे 27 हजार पटवारियों का सामूहिक इस्तीफा भी उन्होंने स्वीकार कर लिया. साथ ही नए पटवारियों की नियक्ति में 18 फीसदी आरक्षण भी लागू कर दिया. इसके बाद यूपी की राजनीति में उनकी धाक और जम गई.
पंडित नेहरू से मतभेदों के बाद कांग्रेस छोड़कर बनाया भारतीय क्रांति दल
देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से मतभेदों के बाद चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस छोड़कर भारतीय क्रांति दल की स्थापना की. समाजवादी नेता राज नारायण और डॉ. राम मनोहर लोहिया की मदद से 3 अप्रैल 1967 को चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. फिर 17 अप्रैल. 1968 को इस्तीफा दे दिया. इसके बाद हुए चुनाव में 17 फरवरी 1970 को वह दोबारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद में केंद्र की राजनीति में गए और वहां प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे.
आपातकाल विरोधी आंदोलनकारी चौधरी चरण सिंह बने किसानों के मसीहा
देश के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को उनके समर्थक किसानों के मसीहा के रूप में याद करते हैं. देश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार में उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का उनका कार्यकाल भी लंबा नहीं चल सका. क्योंकि जनता पार्टी की आपसी कलह के कारण प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई थी. आपातकाल विरोधी आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले चौधरी चरण सिंह इसके बाद खुद प्रधानमंत्री बने. हालांकि, प्रधानमंत्री रहते हुए वह एक भी दिन संसद का सामना नहीं कर पाए. इंदिरा गांधी के समर्थन वापसी से उन्हें इस्तीफा देना पड़ गया.
चौधरी चरण सिंह को सम्मान देने के लिए उनकी जयंती यानी 23 दिसंबर को हर साल पूरा देश राष्ट्रीय किसान दिवस मनाता है. उस दिन किसानों की जागरूकता के लिए विभिन्न स्तरों पर कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ में चौधरी चरण सिंह के नाम से प्रसिद्ध एक यूनिवर्सिटी भी है.