Opinion: जाति न पूछो साधु की… संसद में इस बहस का नुकसान किसको उठाना पड़ेगा?
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Opinion: जाति न पूछो साधु की… संसद में इस बहस का नुकसान किसको उठाना पड़ेगा?

Caste Politics: जाति वाली डिबेट अब इतनी आगे बढ़ गई है कि नब्बे के दशक वाला दौर भी फीका पड़ गया है. उस दौर में और इस दौर में एक बेसिक फर्क है. मंडल के बाद कमंडल का दौर शुरू हुआ था. लेकिन यहां तो मंदिर यानि कि कमंडल वाली राजनीति के खात्मे के बाद जाति की राजनीति शरू हो रही है. क्लियर है कि नुकसान किसका होने वाला है.

Opinion: जाति न पूछो साधु की… संसद में इस बहस का नुकसान किसको उठाना पड़ेगा?

Debate Of Caste In Parliament: रमेश सिप्पी की बड़ी ही कालजयी फिल्म है शोले. उसमें अमिताभ बच्चन का किरदार जय हेमा मालिनी के किरदार बसंती से पूछता है.. तुम्हारा नाम क्या है बसंती. ये सवाल जय तब पूछता है जब बार-बार बसंती अपना नाम लेकर अपने बारे में सब कुछ बता रही होती है. असल में यह बसंती के नाम को लेकर जय की तरफ से एक बड़ा तंज था. इधर संसद में यूं तो बहस बजट पर होनी थी. लेकिन ऐसा लगता है कि विपक्ष ने साफ-साफ बीजेपी को अपने पाले में खींच लिया है और बीजेपी खिंची चली आई. जाति जनगणना कराने पर तुले विपक्ष के दो बड़े लीडर राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने इस चुनाव के बाद तो भयंकर मोर्चा खोल रखा है. ताजा बहस में बीजेपी की तरफ से अनुराग ठाकुर ने मोर्चा संभाला तो उन्होंने बिना नाम लिए राहुल गांधी की जाति पर तंज मार दिया.

किसी की जाति कैसे पूछ सकते हैं?

इसके बाद तो फिर विपक्ष ने धावा बोल दिया है. वो अखिलेश यादव जो लखनऊ में पत्रकारों से कई बार जाति पूछ बैठते हैं, वो संसद में तल्ख भरे लहजे में अनुराग ठाकुर पर हमला बोलते हुए कहते हैं कि आप किसी की जाति कैसे पूछ सकते हैं. वो विपक्ष जो देशभर के लोगों की जाति पूछने पर तुला है और जाति जनगणना कराना चाहता है वो संसद में कह रहा कि कोई किसी की जाति कैसे पूछ रहा है. 

जाति इस देश की सच्चाई है, रही है, और रहेगी

लेकिन ये देश भारत है. कोई कितना भी मुंह मोड़ ले, घूम फिरकर जाति इस देश की सच्चाई है, रही है, और रहेगी. सवर्ण.. ओबीसी से लेकर एससी एसटी इन सबका जिक्र संविधान में ही है. फिर एक उदाहरण आरक्षण भी है. आरक्षण किस वजह से है और किस वजह से रहना चाहिए, इसका भविष्य क्या है. इन सबकी डिबेट जाति ही तो है. इन सबका मुख्य केंद्र जाति ही तो है.

पुराने दौर की राजनीति की आहट!

फिर सवाल है कि बीजेपी लगातार तीसरी बार में सत्ता है और मोदी के नाम पर तो सभी जातियों का वोट बीजेपी को मिल चुका है. फिर इस बार आखिर कैसे वो विपक्ष के जाल में फंसती हुई दिख रही है. इसके कारणों के तह में जाना पड़ेगा. ये कुछ कुछ पुराने दौर की राजनीति का वापस आना लग रहा है लेकिन इस बार दूसरी तरह से. पहले मंडल की राजनीति पर कमंडल हावी हुआ तो बीजेपी पनप गई. अटल सरकार बनी. बाद में कमोबेश मंदिर और हिंदुत्व की ही राजनीति पर मोदी का उभार हो गया. लेकिन इसके बाद फिर जाति का तड़का लग गया.

जाल में फंस रही बीजेपी

जाति का तड़का लगते ही धराशायी हुए विपक्ष को एक उम्मीद दिख गई और उसने जाति जनगणना को लेकर खुलकर बैटिंग शुरू कर दी. इतना ही नहीं बिहार में तो जाति जनगणना भी हो गई. उसके आधार पर आरक्षण का भी ऐलान हो गया. ये अलग बात है कि कोर्ट ने आरक्षण वाले फैसले पर रोक लगा दी. लेकिन विपक्ष को उसमें फायदा होता दिखा है. इस चुनाव में तो भयंकर फायदा दिखा. जिस यूपी में अयोध्या मंदिर बना वहीं बीजेपी धूलधूसरित हो गई. 

विपक्ष जी जान से लगा हुआ

राजनीति के प्रोफेसर ये साफ-साफ कह रहे हैं कि आने वाले समय में जमकर जाति की राजनीति होने वाली है और यही सच है. इसका फायदा विपक्ष को ही मिलता दिखाई देना है. शायद इसीलिए येन केन प्रकारेण विपक्ष इसमें जी जान से लगा हुआ है. रही बात इस वाली डिबेट का तो इसमें अनुराग ठाकुर को पीएम समेत उनकी पार्टी से शाबाशी जरूर मिली है लेकिन इसमें भी विपक्ष ही बाजी मारता हुआ दिख रहा है. वहीं इस डिबेट से एक चीज और क्लियर हुई है कि जाति जनगणना वाले मुद्दे पर विपक्ष पीछे नहीं हटेगा और बीजेपी इस जनगणना के मूड में नहीं दिख रही है.

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