Explainer: रेगिस्तान में बर्फबारी, बाढ़-बारिश से तबाही, प्रचंड गर्मी... नवंबर में मौसम का ऐसा हाल कैसे हो गया?
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Explainer: रेगिस्तान में बर्फबारी, बाढ़-बारिश से तबाही, प्रचंड गर्मी... नवंबर में मौसम का ऐसा हाल कैसे हो गया?

Climate Change in India: अगर बीते कुछ वर्षों में मौसम के हाल देखें तो चौंकाने वाली स्थितियां सामने आई हैं. जिस सऊदी अरब में आजतक रेगिस्तान की धूल उड़ती नजर आई है, वहां बीते दिनों बर्फबारी हुई. स्पेन भयंकर बाढ़ की चपेट में है. इससे पहले चीन और यूरोप के कई देश भी बाढ़ की मार झेल चुके हैं. 

Explainer: रेगिस्तान में बर्फबारी, बाढ़-बारिश से तबाही, प्रचंड गर्मी... नवंबर में मौसम का ऐसा हाल कैसे हो गया?

Climate Change: नवंबर का महीना आधा गुजरने वाला है. लेकिन अब तक सर्दियों के दर्शन नहीं हो पाए हैं. अभी तक भी गर्मी का अहसास हो रहा है. मौसम के इस बदलते चक्र को लेकर लोग ही नहीं बल्कि मौसम वैज्ञानिक भी चिंता में हैं. मौसम की स्थितियों को लेकर भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की साइंटिस्ट डॉ. सोमा सेन ने कहा, 'फिलहाल पारा सामान्य से 3-5 डिग्री ज्यादा है खासकर राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और नॉर्थ मध्य प्रदेश में...14 नवंबर के आसपाल वेस्टर्स डिस्टर्बेंस होगा और तापमान में थोड़ा फर्क आएगा और आने वाले 4-5 दिनों में विशेष रूप से उत्तर भारतीय मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों में तापमान में 1-2 डिग्री सेल्सियस का मामूली अंतर आएगा.' 

दुनिया में दिखीं हैरान करने वाली चीजें

अगर बीते कुछ वर्षों में मौसम के हाल देखें तो चौंकाने वाली स्थितियां सामने आई हैं. जिस सऊदी अरब में आजतक रेगिस्तान की धूल उड़ती नजर आई है, वहां बीते दिनों बर्फबारी हुई. स्पेन भयंकर बाढ़ की चपेट में है. इससे पहले चीन और यूरोप के कई देश भी बाढ़ की मार झेल चुके हैं. 

भारत में भयंकर गर्मी का प्रकोप सबने झेला है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इंसानी गतिविधियों ने प्रकृति को जिस तरह से नुकसान पहुंचाया है, उससे तापमान में बेतहाशा वृद्धि हुई है. कहीं जला देने वाली गर्मी देखने को मिल रही है तो कहीं समुद्र का लेवल लगातार बढ़ रहा है. 

इससे धरती का जो मौसम चक्र है, वह बुरी तरह गड़बड़ा गया है. विश्व मौसम विज्ञान संगठन के मुताबिक, साल 2014 से लेकर 2023 के बीच 19वीं सदी की तुलना में औसतन दुनिया का तापमान 1.2 डिग्री ज्यादा गर्म रही. 

यूरोपियन क्लाइमेट सर्विस के ताजा अनुमान के मुताबिक, 'साल 2024 अब तक का दुनिया का सबसे गर्म साल के तौर पर दर्ज होगा.'

क्लाइमेट चेंज के लिए इंसान कैसे जिम्मेदार?

पृथ्वी के इतिहास में क्लाइमेट प्राकृतिक रूप से बदला है. यूएन क्लाइमेट संस्था के मुताबिक, लेकिन प्राकृतिक कारणों से पिछली शताब्दी में देखी गई विशेष रूप से तीव्र गर्मी की व्याख्या नहीं की जा सकती. धरती का पारा इंसानी गतिविधियों के कारण बढ़ा है जैसे घरों, फैक्टरियों और ट्रांसपोर्ट सिस्टम में कोयला, तेल और गैस का बड़े स्तर पर इस्तेमाल. 

जब ये जीवाश्म ईंधन जलाए गए तो ग्रीनहाउस गैसें निकलीं, जिन्होंने ना सिर्फ धरती का प्रदूषण बढ़ाया बल्कि ओजोन परत को बुरी तरह प्रभावित किया. 

क्लाइमेट चेंज के अब तक क्या बदलाव नजर आए?

  • भले ही वैश्विक तापमान में 1.2 डिग्री सेल्सियस का इजाफा सुनने में ज्यादा ना लगे. लेकिन पर्यावरण पर इसका प्रभाव कितना खतरनाक है, यह दिखना शुरू हो चुका है. 

  • दुनिया के कई हिस्सों में प्रचंड गर्मी पड़ रही है तो कहीं बारिश और बाढ़ का ऐसा सैलाब आया कि लोगों के होश फाख्ता हो गए. ग्लेशियर्स तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे समुद्र का स्तर बढ़ता जा रहा है.

  • आर्कटिक की बर्फ भी तेजी से पिघलती जा रही है. इतना ही नहीं समुद्र गर्म हो रहे हैं, जिससे भयंकर तूफान और सुनामी आ रही है. इससे ना सिर्फ लोग बल्कि समुद्री जीवों पर भी बुरा असर पड़ रहा है.

  • उदाहरण के तौर पर साल 2022 में पूर्वी अफ्रीका ने पिछले 40 वर्षों का सबसे बुरा सूखा देखा. हालात इतने बुरे हो गए कि 2 करोड़ लोग भूखे मरने की कगार पर पहुंच गए. उसी साल में यूरोप में इतनी भयंकर गर्मी पड़ी कि महाद्वीप में असामान्य मौतों में तेजी से उछाल आया.

आने वाले वक्त में क्लाइमेट चेंज का क्या पड़ेगा असर?

  • जितनी ज्यादा दुनिया गर्म होगी, उतना ही बुरा क्लाइमेट चेंज का असर पड़ेगा. साल 2015 में ऐतिहासिक पेरिस क्लाइमेट अग्रीमेंट हुआ था, जिसमें 200 से ज्यादा देशों ने धरती का तापमान 1.5 डिग्री कम करने पर सहमति जताई थी. लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तब क्या होगा. 

  • धरती के दिन और ज्यादा गर्म हो जाएंगे. दिन के तापमान में 4 डिग्री का इजाफा हो सकता है. समुद्र का स्तर 01. मीटर तक बढ़ जाएगा, जिससे एक करोड़ लोगों को बाढ़ जैसी स्थिति का सामना करना पड़ेगा. साल 2050 तक करोड़ों लोग गरीबी की कगार पर पहुंच जाएंगे.

  • आईपीसीसी के मुताबिक करीब 3.3 से 3.6 बिलियन लोग क्लाइमेट चेंज से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे. जो लोग गरीब देशों में रह रहे हैं, उनको ज्यादा भुगतना पड़ेगा क्योंकि उनके पास रिसोर्स ही कम हैं. 

 

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