Explainer: क्‍या है जूतों का साइज तय करने का भारतीय सिस्टम 'भा'? क्‍यों पड़ी इसकी जरूरत
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Explainer: क्‍या है जूतों का साइज तय करने का भारतीय सिस्टम 'भा'? क्‍यों पड़ी इसकी जरूरत

What is Bha: सर्वे से सामने आया क‍ि पूर्वोत्तर भारत के लोगों के पैरों का साइज बाकी भारतीयों की तुलना में औसतन छोटा होता है. इसे अभी ब्यूरो ऑफ इंड‍ियन स्टैंडर्ड से मंजूरी नहीं म‍िली है.

Explainer: क्‍या है जूतों का साइज तय करने का भारतीय सिस्टम 'भा'? क्‍यों पड़ी इसकी जरूरत

Footwear Bha Size: अभी आप फुटव‍ियर खरीदने जाते हैं तो यूके के साइज के ह‍िसाब से अपना जूता खरीदते हैं. लेक‍िन अब यह पूरा स‍िस्‍टम बदलने वाला है और जल्‍द आपको भारतीय नंबर के ह‍िसाब से फुटव‍ियर खरीदेंगे. जी हां, जूतों के नंबर का यह पूरा स‍िस्‍टम बदलने वाला है. अब तक फुटव‍ियर मार्केट में साइज के लिए कोई इंड‍ियन स्‍टैंडर्ड नहीं है. लेकिन अब स्‍थानीय स्‍टैंडर्ड से जूतों का साइज तय किया जाएगा. इस सिस्टम के ल‍िए 'भा' कोड का यूज क‍िया जाएगा, ज‍िसका मतलब भारत से है. इसे जल्‍द ही बाजार में लागू क‍िया जाएगा. लेक‍िन क्‍या आपने यह सोचा क‍ि जूतों के साइज को लेकर भारतीय स‍िस्‍टम की जरूरत क्यों पड़ी?

पांच फुटवियर साइज सिस्टम की जरूरत होगी

पहले यह माना जाता था क‍ि भारतीयों के लिए पांच फुटवियर साइज सिस्टम की जरूरत होगी. सर्वे से यह भी सामने आया क‍ि पूर्वोत्तर भारत के लोगों के पैरों का साइज बाकी भारतीयों की तुलना में औसतन छोटा होता है. इसे अभी ब्यूरो ऑफ इंड‍ियन स्टैंडर्ड से मंजूरी नहीं म‍िली है. नए स‍िस्‍टम के ह‍िसाब से जूते-चप्पलों के इंड‍ियन स्‍टैंडर्ड तैयार हो रहे हैं. फुटव‍ियर कंपन‍ियां भारतीयों के लिए फुटव‍ियर को 2025 से तैयार करेंगी. इसके लिए 'भा' कोड को यूज क‍िया जाएगा, ज‍िसका मतलब भारत से है. भारतीयों के पैरों के पांव की शेप और साइज को समझने के लिए काउंस‍िल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च और सेंट्रल लेदर रिसर्च भार इंस्टीट्यूट ने सर्वे किया है.

लेडीज के पैर का साइज 11 साल की उम्र तक बढ़ता है
सर्वे में यह भी सामने आया क‍ि लेडीज के पैर का साइज 11 साल की उम्र तक बढ़ता है. वहीं, पुरुषों में यह साइज 15-16 साल की उम्र तक बढ़ता है. भारतीयों के जूतों के साइज को लेकर दिसंबर 2021 से मार्च 2022 के बीच एक सर्वे किया गया. सर्वे को 5 भौगोलिक इलाकों में 79 जगहों पर क‍िया गया. इस दौरान करीब 1,01,880 लोगों ने हिस्सा लिया. इस दौरान 3D फुट स्कैनिंग मशीनों से पांव के नाप लिए गए. इसके आधार पर पैर के साइज को समझने की कोशिश की गई. भारतीयों का पैर यूरोपीय या अमेरिकियों की तुलना में ज्‍यादा चौड़ा पाया गया. अमेरिकी और यूके वालों के पैरा का साइज छोटा होता है. यूके नंबर के बने जूते भारतीयों के पैर में पूरी तरह फ‍िट नहीं होते. इससे उन्हें परेशानी होती है.

इंड‍ियन स‍िस्‍टम की जरूरत क्‍यों महसूस हुई?
आजादी से पहले अंग्रेजों ने भारत में फुटव‍ियर साइज की शुरुआत की. इस स्‍टैंडर्ड के अनुसार औसतन एक भारतीय महिला 4 से 6 नंबर साइज का जूता पहनती है. वहीं, पुरुष औसतन 5 से 11 साइज का जूता पहनता है. उस समय भारतीयों के पैरों के आकार और डायमेंशन से जुड़ा क‍िसी प्रकार का डाटा मौजूद नहीं था. इसल‍िए उस समय भारतीय सिस्टम को तैयार करना मुश्किल था और इसे कभी शुरू भी नहीं क‍िया गया. इस समय भारत दुन‍िया की सबसे ज्‍यादा आबादी वाला देश है और हर भारतीय के पास औसतन 1.5 फुटवियर है. इस ह‍िसाब से भारत फुटव‍ियर न‍िर्माताओं के ल‍िए सबसे बड़ा बाजार है. कई बार जूतों के साइज को लेकर ग्राहकों को श‍िकायत रहती है. अब भारतीय साइज 'भा' के साथ यूजर्स और फुटवियर बनाने वाली कंपन‍ियों दोनों को फायदा होगा.

'भा' के ल‍िए 8 फुटवियर साइज का प्रस्ताव दिया गया
> 1 नंबर-0 से 1 साल तक के बच्‍चे के ल‍िए
> 2 नंबर-1 से 3 साल तक के बच्‍चे के ल‍िए
> 3 नंबर-4 से 6 साल तक के बच्‍चे के ल‍िए
> 4 नंबर-7 से 11 साल तक के बच्‍चे के ल‍िए
> 5 नंबर-12 से 13 साल तक के बच्‍चे के ल‍िए
> 6 नंबर-12 से 14 साल तक के बच्‍चे के ल‍िए
> 7 नंबर-14 साल से ऊपर की मह‍िलाओं के ल‍िए
> 8 नंबर-15 साल से ऊपर के पुरुषों के ल‍िए

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