Euthanasia Guidelines: अपने सीनियर पर वर्कप्लेस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए उत्तर प्रदेश की एक महिला जज ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को चिट्ठी लिखी. इस मामले में पहले कोई कार्रवाई नहीं होने का हवाला देते हुए उन्होंने इच्छा मृत्यु की इजाजत की मांग की.
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Law About Euthanasia: उत्तर प्रदेश की एक महिला जज ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की मांग की है. हाल ही में सामने आए इस चर्चित पत्र में महिला जज ने अपने एक सीनियर और उनके सहयोगियों पर वर्कप्लेस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है. महिला जज ने सीजेआई को लिखे पत्र में दावा किया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और एडमिनिस्ट्रेटिव जज ने उसकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की. इसलिए अब वह इच्छा मृत्यु चाहती है. इसके बाद 'इच्छा मृत्यु' शब्द एक बार फिर सुर्खियों में शामिल हो गया है. आइए, जानते हैं कि इच्छा मृत्यु क्या होता है? इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पहले क्या कहा है? आत्महत्या, संथारा और इच्छा मृत्यु में कितना अंतर है? इसके अलावा किन परिस्थितियों में कौन इच्छा मृत्यु की मांग कर सकता है?
क्या है इच्छामृत्यु और कहां से आया शब्द, दुनियाभर में क्यों बढ़ रही है मांग
इच्छा मृत्यु या यूथनेशिया (Euthanasia) का मतलब किसी गंभीर और लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को दर्द से मुक्ति दिलाने के लिए डॉक्टर की सहायता से उसके जीवन का अंत करना है. इसे मर्सी किलिंग भी कहा जाता है. यूथनेशिया ग्रीक (यूनानी) शब्द है. Euthanasia में Eu का मतलब अच्छी और Thanatos का अर्थ मौत होता है. हालांकि, बाद में इसे इच्छा मृत्यु कहा जाने लगा है. मतलब अपनी मर्जी से गरिमापूर्ण मौत. दुनियाभर में इच्छा-मृत्यु को कानूनी तौप पर जायज करने और इसकी इजाजत देने की मांग बढ़ी है. दुनिया के कई देशों ने इसे कानूनी मान्यता भी दे दी है. अपने देश में भी इच्छा मृत्यु की मांग करने पर कोई कानूनन रोक नहीं है.
नीदरलैंड में इच्छा मृत्यु को पहली बार मिली कानूनी मान्यता, इन देशों ने भी बनाए नियम
नीदरलैंड दुनिया में इच्छा मृत्यु को कानूनी मान्यता देने वाला पहला देश बना है. 30 साल के संघर्ष के बाद नीदरलैंड की संसद के ऊपरी सदन में 10 अप्रैल 2001 को इच्छा मृत्यु का बिल पास हुआ था. एक साल बाद 2002 में यह कानून लागू हुआ. इसके बाद दुनिया के कई देश इच्छा मृत्यु को कानूनी मान्यता दे चुके हैं. वहीं, सौ से ज्यादा देशों में इच्छा मृत्यु अब भी गैरकानूनी है. नीदरलैंड के बाद बेल्जियम इच्छा मृत्यु को सशर्त कानूनी मान्यता देने वाला दूसरा देश बना. बेल्जियम में गंभीर मानसिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों को ही इच्छा मृत्यु की कानूनी इजाजत है. शर्तों को नहीं मानने और किसी के मरने में मदद करने वालों को एक से तीन साल की सजा का प्रावधान है. लक्जमबर्ग में 2008 में गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीजों को इच्छा मृत्यु को वैधता मिली. इसके लिए मरीज को कम से कम दो डॉक्टर और एक मेडिकल पैनल से इच्छा मुत्यु के पक्ष में लिखित सिफारिश जमा करनी होती है. ऑस्ट्रेलिया के एक राज्य विक्टोरिया में 2019 में इच्छा मृत्यु को कानूनी मान्यता दी गई. जानलेवा बीमारी से पीड़ित और जिंदगी के सिर्फ 6 महीने बचे हो तो ही इच्छा मृत्यु की मांग की जा सकती है.
स्विट्जरलैंड में तो विदेशियों की इच्छा मृत्यु को भी मान्यता, बाकी देशों में अलग-अलग नियम
स्विट्जरलैंड में भी इच्छा मृत्यु को कानूनी मान्यता है. यहां कोई विदेशी भी जाकर इच्छा मृत्यु पा सकता है. इस देश में अगर कोई गंभीर मरीज चाहता है तो मेडिकल मदद से उसको मौत दी जा सकती है. कोलंबिया में साल 2015 में इच्छा मृत्यु को कानूनी मान्यता दी गई है. इस देश की संवैधानिक अदालत ने साल 1997 में इच्छा मृत्यु के समर्थन में अपना फैसला सुनाया था. लेकिन डॉक्टर ऐसा करने से कतराते थे, क्योंकि एक और कानून के तहत इच्छा मृत्यु के लिए 6 महीने से 3 साल की सजा का प्रावधान था. जर्मनी ने 2017 में गंभीर रूप से बीमार लोगों को इच्छा मृत्यु की इजाजत दी थी. एक साल के भीतर ही 108 मरीजों ने इच्छा मृत्यु के लिए आवेदन कर दिया था. उनमें से कई लोगों ने यूथेनेसिया ड्रग लेकर मौत को चुना. अमेरिका के ऑरेगन में साल 1997 से इच्छा मृत्यु वैध है. बाद में कैलिफोर्निया ने भी इच्छा मृत्यु को वैधता दे दी. यहां इच्छा मृत्यु चाहने वाले गंभीर मरीज को डॉक्टर कॉकटेल नाम की एक दवा देते हैं, जिससे आधे घंटे के भीतर मौत हो जाती है. कनाडा में सबसे पहले क्यूबेक प्रांत ने जून 2014 में इच्छा मृत्यु कानून को मान्यता दी. वहीं, पुर्तगाल ने साल 2023 में इच्छा मृत्यु कानून को कुछ शर्तों के साथ अपना लिया है.
क्या होता है पैसिव यूथेनेसिया? भारत में इच्छा मृत्यु पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
इच्छा मृत्यु को दो भागों में बांटा गया है. एक्टिव यूथेनेसिया या सक्रिय इच्छा मृत्यु और पैसिव यूथेनेसिया या निष्क्रिय इच्छा मृत्यु. सक्रिय इच्छा मृत्यु में डॉक्टर की मदद से जहर का इंजेक्शन देकर लाइलाज बीमारी के मरीज के जीवन खत्म करने जैसा कदम उठाया जा सकता है. वहीं, निष्क्रिय इच्छा मृत्यु यानी जब लाइलाज बीमारी का मरीज लंबे समय से कोमा में हो तो परिवार और रिश्तेदारों की सहमति से डॉक्टर उसके जीवनरक्षक उपकरण (वेंटिलेटर) बंद कर देते हैं. बहुत से लोगों का मानना है कि सक्रिय हो या निष्क्रिय, इच्छा मृत्यु भी एक तरह से हत्या है. कॉमन कॉज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस में पांच जजों की कॉन्सिटट्यूशनल बेंच ने 9 मार्च 2018 को 'पैसिव यूथेनेशिया' को सशर्त मंजूरी दी थी. जस्टिस दीपक मिश्र, जस्टिस ए के सिकरी, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण ने यूथनेसिया को लागू करने के लिए कुछ गाइडलाइंस भी जारी की छी. कोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जिस तरह व्यक्ति को जीने का अधिकार है, उसी तरह गरिमा से मरने का अधिकार भी है. कोर्ट ने सम्मान से मरने के अधिकार को भी मौलिक अधिकार माना. हालांकि, यह सिर्फ लाइलाज बीमारियों के मरीजों के लिए ही थी. सुप्रीम कोर्ट ने साल 2023 में इच्छा मृत्यु के अधिकार को आसान बनाने के लिए 2018 के गाइडलाइंस में कुछ बदलाव भी किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने पैसिव यूथेनेसिया की शर्तों में क्या कहा, कौन कर सकता है आवेदन
सुप्रीम कोर्ट ने पैसिव यूथेनेसिया की शर्तों में कहा था कि इसके लिए इच्छुक व्यक्ति को स्वस्थ शारीरिक और मानसिक स्थिति में यह वसीयत करनी होगी. इसे 'लिविंग विल' कहा जाता है. इसके तहत धीरे-धीरे मरीज को लाइफ सपोर्ट से हटाया जाता है. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस में किसी खास बीमारी का जिक्र नहीं है. इसके अनुसार, लिविंग विल की इजाजत के लिए सिर्फ गंभीर और लाइलाज बीमारी से जूझ रहे, जिंदा रहने में बेहद कष्ट उठा रहे मरीज ही परिजनों की जानकारी में लिखित आवेदन कर सकते हैं. इसके अलावा डॉक्टरों की टीम (मेडिकल बोर्ड) को सिफारिश और फैसला करना पड़ता है कि मरीज का बच पाना संभव नहीं है, लिविंग विल दी जा सकती है और इच्छा मृत्यु की इजाजत दी जा सकती है.
इच्छा मृत्यु, आत्महत्या और संथारा में क्या अंतर है? क्या कहता है कानून
इच्छा मृत्यु, आत्महत्या को संथारा को जोड़कर नहीं देखा जा सकता है. ये सभी अलग-अलग हैं. भारत में सशर्त निष्क्रिय इच्छा मृत्यु के अलावा इच्छा-मृत्यु और दया मृत्यु दोनों ही गैरकानूनी है. आत्महत्या या आत्महत्या की कोशिश करना भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 309 के अंतर्गत दंडनीय अपराध है. इसके मुताबिक अगर कोई शख्स आत्महत्या की कोशिश करता है तो दोषी पाए जाने पर एक साल तक की जेल की सजा या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है. हालांकि, मेंटल हेल्थकेयर एक्ट 2017 की धारा 115 आत्महत्या की कोशिश करने वाले तनाव से जूझ रहे लोगों को सजा से राहत देती है. इस धारा के मुताबिक, अगर ये साबित हो जाता है कि आत्महत्या की कोशिश करने वाला शख्स बेहद तनाव में था, तो उसे कोई सजा नहीं दी जा सकती. केंद्र की ओर से भारतीय दंड संहिता को बदलने के लिए संसद में भारतीय न्याय संहिता (BMS) बिल पेश किया गया है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसमें धारा-309 को शामिल नहीं किया गया है. यानी आत्महत्या की कोशिश को अपराध नहीं माना गया है. इसकी जगह धारा 224 जोड़ी गई है. इसके तहत कोई किसी लोकसेवक को काम करने के लिए मजबूर करने या रोकने के मकसद से आत्महत्या की कोशिश करता है, तो उसे एक साल तक की सजा और जुर्माना लगाया जा सकता है.
दूसरी ओर, सल्लेखना, समाधि या संथारा मृत्यु को नजदीक जानकर अपनाई जाने वाली एक जैन प्रथा है. जैन पंथ की इस मान्यता में जब व्यक्ति को लगता है कि वह मौत के करीब है तो वह खुद खाना-पीना छोड़ देता है. दिगम्बर जैन शास्त्रों के अनुसार इसे समाधि या सल्लेखना कहा जाता है. वहीं, श्वेतांबर जैनों की साधना पध्दती में इसे संथारा कहा जाता है. दो शब्दों सत् और लेखना से मिलकर बने सल्लेखना का अर्थ है सम्यक् प्रकार से काया और कषायों को निर्बल करना. श्रावक और मुनि दोनो के लिए इसे जीवन की अंतिम साधना माना जाता है. बीते वर्षों में देश में इसको लेकर भी काफी कानूनी चर्चा की जा चुकी है.