Bharat Jodo Nyay Yatra: असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को असम में भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान मोरीगांव और जागीरोड से यात्रा नहीं करने का सुझाव दिया है. इसके लिए उन्होंने माहौल को संवेदनशील बताते हुए 1983 में हुए नेल्ली नरसंहार की भी याद दिलाई है.
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Assam CM Himanta Biswa Sarma: कांग्रेस की भारत जोड़ो न्याय यात्रा को लेकर असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने राहुल गांधी को संवेदनशील इलाके में जाने से परहेज करने के लिए कहा है. उन्होंने कहा कि 22 जनवरी को राहुल गांधी को मोरीगांव और जागीरोड से यात्रा नहीं करना चाहिए. इस इलाके में 60 फीसदी मुसलमान और 40 फीसदी हिंदुओं की आबादी है. यह इलाका संवेदनशील माना जा रहा है. उन्हें 1983 के नेल्ली नरसंहार को याद रखना चाहिए.
भारत जोड़ो न्याय यात्रा हुई तो पूरे इलाके में कमांडो तैनात करना पड़ेगा
मुख्यमंत्री हिमंता ने कहा कि वह राहुल गांधी से अनुरोध करते है कि 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दिन अपनी यात्रा स्थगित रखें. हम बलपूर्वक उनकी यात्रा नही रोकेंगे, बल्कि अगर वो उस इलाके से जाना चाहते हैं तो हमें पूरे रास्ते में कमांडो तैनात करना पड़ेगा, जो हमें सही नहीं लग रहा है. अगर कुछ हो गया तो केंद्र सरकार सवाल पूछेगी कि राहुल गांधी को यात्रा करने की अनुमति क्यों दी?
आइए, जानते हैं कि 1983 का नेल्ली नरसंहार क्या है? वह कितना भयानक था कि उसके चलते आज तक पूरा इलाका संवेदनशील माना जाता है.
असम के मोरीगांव कस्बे का नेल्ली और उसके आसपास का इलाका साल 1983 में आजादी के बाद देश के सबसे बड़े नरसंहार का गवाह बना. उस दौर में पूर्वोत्तर में असम आंदोलन भी अपने चरम पर था. लगभग 41 साल पहले 18 फरवरी, 1983 को असम के बसंतोरी, बुकदोबा-हाबी और बोरबोरी के हजारों लोग भूलना चाहें तो भी नहीं भूल सकते. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बसंतोरी, बुकदोबा-हाबी और आस-पास के गांवों में 3-4 घंटे के अंदर ही लगभग 2,600 लोग मारे गए थे. वहां से कुछ दूर बोरबोरी गांव में मारे गए लोगों की संख्या लगभघ 550 थी. इन गांवों में लगभग हर घर में कोई न कोई मारा गया था.
नेल्ली नरसंहार क्यों हुआ था, क्या है इसका बैकग्राउंड?
नेल्ली नरसंहार होने के पीछे एक लंबा इतिहास है. दरअसल, असम में साल 1826 से पहले अहोम वंश का शासन था. बाद में अंग्रेजों ने इसे अपने अधिकार में ले लिया. 19वीं सदी की शुरुआत में बंगाल और बिहार से मजदूरों को अंग्रेज चाय के बागान में मजदूर बनाकर लाने लगे. आगे चलकर ये सभी असम में ही बस गए. आजादी के बाद असम की सीमा से लगे पूर्वी पाकिस्तान (बाद में बांग्लादेश बना) से बड़ी संख्या में लोग अवैध घुसपैठ के जरिए असम आते रहे हैं. राजनीति के चक्कर में उन्हें मतदान देने का अधिकार भी मिल गया था. असम मूल के लोगों ने इसके खिलाफ 1980 के दशक में एक उग्र आंदोलन चला था.
नेल्ली इलाके के 14 गांवों में बांग्लादेशी और बाहरी लोगों का नरसंहार
नागरिकता विवाद को लेकर तेज हुए इसी आंदोलन की आड़ में नरसंहार को भी अंजाम दिया गया था. 18 फरवरी, 1983 की सुबह असम के हजारों आदिवासियों ने नेल्ली इलाके के 14 गांवों में बांग्लादेशी लोगों को घेर लिया. पीड़ित में हिंदू और मुसलमान दोनों ही शामिल थे. रिपोर्ट के मुताबिक महज सात घंटे के अंदर तीन हजार से भी ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया. नरसंहार में बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चों को मारा गया था. क्योंकि वे लोग जान बचाकर भाग नहीं पाए. नेल्ली नरसंहार के बाद कई जगहों पर तो एक साथ 200-300 लाशें पड़ी थीं. जिन्हें सामूहिक तौर पर दफनाना या उनका उनका दाह संस्कार करना पड़ा था. कई रिपोर्ट में नेल्ली नरसंहार को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़े नरसंहारों में एक बताया गया था.
सेना के डेढ़ लाख जवान की मदद से असम में चुनाव, फिर भी बड़े पैमाने पर हिंसा
गुवाहाटी से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नेल्ली इलाका 1989 तक नौगांव जिले का हिस्सा था. यहां ज्यादातर किसानों की आबादी है. हिंसा प्रभावित मुस्लिम बहुल गांवों के आसपास स्थानीय तिवा और कोछ जनजाति की आबादी है. रिसर्चर मकीको किमुरा की किताब, “The Nellie Massacre of 1983: Agency of Rioters” में लिखा है कि तब असम में चुनाव के लिए सेना के डेढ़ लाख जवान तैनात किए गए थे. इस का मतलब प्रति 57 वोटर पर एक जवान तैनात था. उस दौरान पूरा असम युद्ध के मैदान में तब्दील हो चुका था. इसके बावजूद चुनावों में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई. इसी की आंच नेल्ली इलाके तक भी पहुंची.”
असम पुलिस पर मिलीभगत का आरोप, मृतकों के परिजनों को 5 हजार मुआवजा
दर्दनाक और दिल को दहला देने वाले इस भीषण नरसंहार को लेकर राज्य की पुलिस पर भी मिलीभगत का आरोप लगा था. नेल्ली नरसंहार को लेकर शुरुआत में सैकड़ों रिपोर्ट दर्ज हुईं. कई आरोपियों को गिरफ्तार भी किया गया. हालांकि बाद में नेल्ली नरसंहार के अपराधियों को सजा दूर की कौड़ी साबित हुई. उनके खिलाफ सही से मुकदमा तक नहीं चल सका. इस नरसंहार में मारे गए लोगों के परिजनों को सरकारी तौर पर मुआवजे के रूप में पांच-पांच हजार रुपये दिए गए थे. नेल्ली के लोग भी घटना के दो हफ्ते बाद ही अपने गांव लौट गए थे.
अभी तक पेश नहीं हो पाई है नेल्ली नरसंहार जांच कमीशन की रिपोर्ट, FIR वापस
नेल्ली नरसंहार की जांच के लिए गठित कमीशन को छह महीने में अपनी जांच रिपोर्ट सौंपनी थी. इसका कार्यकाल जनवरी 1984 तक बढ़ा दिया गया. इस सब के बावजूद कमीशन की ओर से सबमिट रिपोर्ट को कभी पेश नहीं किया गया. कमीशन के प्रमुख त्रिभुवन प्रसाद तिवारी बाद में पॉन्डिचेरी के उप राज्यपाल बने. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि जांच कमीशन की रिपोर्ट सीक्रेट है. 547 पन्नों की इस रिपोर्ट की सिर्फ तीन कॉपियां तैयार हुईं. इनमें से एक असम सरकार के पास है, एक केंद्र सरकार के पास और एक खुद तिवारी के पास. ये रिपोर्ट साल 2023 तक भी सार्वजनिक नहीं हो पाई है.
नेल्ली नरसंहार के बाद के सालों में कुल 688 प्राथमिकी दर्ज हुई. वहीं, इसको लेकर 310 चार्जशीट पेश की गई थीं. साल 1983 के चुनाव में कांग्रेस जीत गई थी. दो साल 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी सरकार के दौरान असम एकॉर्ड पर दस्तखत किए गए. इसके तहत असम आंदोलन के दौरान हुई हिंसा में लोगों के खिलाफ दर्ज FIR वापिस ले ली गई.