बच्चे के जन्म के बाद अक्सर माताएं ऐसी गलती करती हैं, जो आगे जाकर बच्चे के पूरे जीवन पर बुरा असर डाल सकती है. WHO ने अपील की है कि मां अपने बच्चों को बाजार में मिलने वाले डिब्बाबंद मिल्क पाउडर बिल्कुल ना पिलाएं.
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बच्चे के जन्म के बाद अक्सर माताएं ऐसी गलती करती हैं, जो आगे जाकर बच्चे के पूरे जीवन पर बुरा असर डाल सकती है. हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने मेडिकल जर्नल लैंसेट में छपी एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए दुनिया के सभी माता-पिता को सावधान किया है. डब्ल्यूएचओ ने अपील की है कि माता-पिता अपने छोटे बच्चों को बाजार में मिलने वाले डिब्बाबंद मिल्क पाउडर बिल्कुल ना पिलाएं.
डब्ल्यूएचओ ने चिंता जताई है कि मिल्क पाउडर पीने से बच्चों को कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं. क्योंकि बंद डिब्बे में मिलने वाले मिल्क पाउडर में बिना मलाई वाला दूध होता है, जो बच्चों को उतना पोषण नहीं देता जितना एक शिशु के शरीर के विकास के लिए जरूरी होता है. इसके अलावा इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि तमाम कंपनियों के मिल्क पाउडर में वनस्पति तेल और शुगर मिलाया जाता है जो बच्चे के लिए खतरनाक है.
रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि मिल्क पाउडर में कई तरह के खनिज और मिनरल्स अलग से मिलाए जाते हैं, जिनकी एक नवजात शिशु को कोई जरूरत नहीं होती. मिल्क पाउडर में जो विटामिन और मिनरल्स मिलाए जाते हैं, उन्हें पचाना नवजात शिशु के लिए आसान नहीं होता. इतना ही नहीं, मिल्क पाउडर पीने से बच्चों को डायरिया, कफ, जुकाम समेत कई तरह बीमारियां हो जाती हैं.
एक्सपर्ट की राय
क्लाउड नाइन अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रतिभा सिंघल बताती हैं कि मिल्क पाउडर में गाय के दूध के मुकाबले कैल्शियम और प्रोटीन कम जबकि चीनी और कैलोरी ज्यादा होती है, जबकि नवजात शिशु को चीनी की कोई जरुरत ही नहीं होती.
6 महीने तक सिर्फ मां का दूध
डॉक्टर सलाह देते हैं कि नवजात शिशु को कम से कम 6 महीने तक केवल मां का दूध ही पिलाना चाहिए. सरकार भी कई तरह के प्रोग्राम चलाकर माताओं को ब्रेस्ट फीडिंग के लिए जागरुक करती है. लेकिन सच्चाई ये है कि तमाम कंपनियां पाउडर वाले दूध के फायदे गिनाकर महिलाओं में भ्रम फैला रही हैं और अपना प्रोडक्ट बेचकर हर साल लाखों करोड़ों रुपये का बिजनेस कर रही हैं.
कितना बड़ा है मिल्क पाउडर का बाजार
फॉर्मूला मिल्क पाउडर का बाजार कितना फैला है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दुनिया भर में फॉर्मुला मिल्क पाउडर का कारोबार सालाना 55 बिलियन डॉलर (यानी साढ़े 4 लाख करोड़ रुपये) से ज्यादा है. अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इतने बड़े कारोबार को जिंदा रखने के लिए कंपनियां क्या-क्या तिकड़म अपनाती हैं.
माइंड डाइवर्ट कर देते हैं विज्ञापन
बच्चे का जन्म अभी हुआ भी नहीं होता है कि तमाम विज्ञापनों के जरिए मां-बाप के दिमाग में ये भर दिया जाता है कि आने वाले शिशु के लिए डिब्बे का फॉर्मूला मिल्क पाउडर ही उसकी सेहत के लिए बेहतर है. मां के दूध की अहमियत जाने या न जानें माताएं फॉर्मूला मिल्क पाउडर के गुणों को जरूर रट लेती हैं. यूनिसेफ के सर्वे से तो यही खुलासा होता है.
यूनिसेफ की रिपोर्ट
यूनिसेफ ने 8500 पेरेंट्स और 300 हेल्थ केयर वर्कर्स के इंटरव्यू किए. ये इंटरव्यू बांग्लादेश, मेक्सिको, मोरक्को, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, चीन, यूनाइटेड किंगडम और वियतनाम में किए गए थे. इंटरव्यू के दौरान यूनाइटेड किंगडम की महिलाओं से जब पाउडर मिल्क के बारे में पूछा गया तो 84% महिलाओं को मिल्क पाउडर की जानकारी थी. चीन में 97 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि वो जन्म के बाद बच्चों को मिल्क पाउडर ही पिलाती हैं जबकि वियतनाम की 92 प्रतिशत महिलाओं ने मिल्क पाउडर को ही नवजात शिशु के लिए बेहतर माना. इससे यह साबित होता है कि मिल्क पाउडर बनाने वाली तमाम कंपनियों के भ्रामक प्रचार ने मां-बाप के जहन में ये डाल दिया कि फॉर्मूला मिल्क पाउडर बच्चे के लिए फायदेमंद होता है.
कंपनियों की तरफ से एक झूठ ये भी फैलाया जाता है कि केवल स्तनपान से बच्चे का पेट नहीं भरता इसलिए बच्चे को मिल्क पाउडर देना जरूरी है. जबकि सच्चाई ये है कि स्तनपान को बच्चे की पहली वैक्सीन कहा जाता है. मां के दूध में मौजूद तत्व बच्चे को कई तरह की बीमारियों से बचाते हैं और अगर मां अपने बच्चे को नियमित ब्रेस्टफीडिंग करवाती है. तो मां को भविष्य में डायबिटीज, मोटापे और कैंसर का खतरा कम रहता है. लेकिन इन सब फायदों के बावजूद केवल 44% बच्चों को 6 महीने की उम्र तक स्तनपान नसीब हो पाता है.