तीन दशक में दोगुने से अधिक होंगे डायबिटीज के मरीज, टाइप-2 से ज्यादा ग्रसित होंगे लोग
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तीन दशक में दोगुने से अधिक होंगे डायबिटीज के मरीज, टाइप-2 से ज्यादा ग्रसित होंगे लोग

दुनियाभर में वर्ष 2050 तक मधुमेह से पीड़ित लोगों की संख्या 1.3 अरब हो जाएगी. फिलहाल भारत में 11 फीसदी यानी 7.7 करोड़ लोग डायबिटीज से पीड़ित है, जबकि 15 फीसदी से ज्यादा लोग प्री-डायबिटीक हैं.

तीन दशक में दोगुने से अधिक होंगे डायबिटीज के मरीज, टाइप-2 से ज्यादा ग्रसित होंगे लोग

एक नए अध्ययन के अनुसार, दुनियाभर में वर्ष 2050 तक मधुमेह से पीड़ित लोगों की संख्या 1.3 अरब हो जाएगी. द लांसेट की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई. डायबीटिज के वैश्विक बोझ पर अध्ययन नाम से प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया कि अगले तीन दशकों में मधुमेह मरीज दोगुने से अधिक हो जाएंगे. वर्ष 2021 में यह संख्या 52.9 करोड़ थी. साथ ही यह भी कहा गया कि आने वाले 30 साल में किसी भी देश में मधुमेह होने की दर कम नहीं होगी.

अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने 1990 से 2021 तक 204 देशों से कड़े जुटाए. इसमें डायबिटीज की व्यापकता, विकलांगता और मृत्यु का अनुमान लगाने के लिए 27 हजार से अधिक आंकड़ों को शामिल किया. अध्ययन के दौरान डायबिटीज से पीड़ित लोगों की हर गतिविधि को ध्यान में रखा गया. इसमें मोटापे, आहार, शारीरिक गतिविधि, पर्यावरण, तंबाकू और शराब के उपयोग से संबंधित जोखिम कारकों को भी चिह्नित किया गया. शोधकर्ताओं के मुताबिक, मोटापे की वजह से भी डायबिटीज के मरीज बढ़ रहे हैं. इसमें ये भी कहा गया कि ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ रही है इसलिए दुनियाभर में बीमारी और मृत्यु दर भी बढ़ रही है. इसके अलावा, कोविड महामारी के बाद से भी मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है.

भारत में 11 फीसदी मरीज
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्व (आईसीएमआर) के शोध में सामने आया कि भारत में 11 फीसदी यानी 7.7 करोड़ लोग डायबिटीज से पीड़ित है. इससे कहीं ज्यादा चिंताजनक ये है कि 15 फीसदी से ज्यादा प्री-डायबिटीक है यानी इन्हें भविष्य में डायबिटीज हो सकता है.

टाइप-2 से ग्रसित होंगे लोग
शोधकर्ताओं के मुताबिक, अगले तीन दशकों में डायबिटीज के अधिकांश नए मामले टाइप 2 के होने का अनुमान है. यानी इस प्रकार के रोगियों की संख्या बढ़ेगी. इसके लिए मोटा को भी जिम्मेदार माना जा रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2021 में मोटापा टाइप 2 मधुमेह के लिए सबसे महत्वपूर्ण जोखिम कारक था, जो बीमारी से आधे से अधिक लोगों में विकलांगता और मृत्यु के लिए जिम्मेदार था.

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