खुश रहने के लिए क्‍या है सबसे जरूरी-'पैसा' या 'वक्त'?
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खुश रहने के लिए क्‍या है सबसे जरूरी-'पैसा' या 'वक्त'?

आज हम सबसे खूबसूरत अहसास यानी खुशी के अहसास का ऐसा विश्लेषण करेंगे जो आपकी जिंदगी को Dear जिंदगी में बदल सकता है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो साभार-इंटरनेट)

नई दिल्ली: आज हम सबसे खूबसूरत अहसास यानी खुशी के अहसास का ऐसा विश्लेषण करेंगे जो आपकी जिंदगी को Dear जिंदगी में बदल सकता है. आज ये भी बिल्कुल साफ हो जाएगा की पैसा नहीं बल्कि वक्त ही खुश रहने की चाबी है. किसी भी आम इंसान की तरह दीपिका की जिंदगी में भी पैसा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण था लेकिन पिछले कुछ सालों में उन्होंने सीख लिया कि खुशियां पैसे से नहीं मिलती बल्कि खुशियां तो मिलती हैं खुद के और अपनों के साथ वक्त बिताने से.

पैसा या वक्त किसे देंगे प्रियोरिटी?
यूनिवर्सिटी आफ ब्रिटिश कोलंबिया ने हाल ही में एक स्टडी पूरी की है, जिसके नतीजे बेहद दिलचस्प हैं. इस स्टडी के दौरान ग्रेजुएशन कर रहे 1,000 छात्रों से पूछा गया कि, 'वो वक्त को प्रियोरिटी देते हैं या पैसे को' तो 60 फीसदी स्टूडेंट का जवाब 'वक्त' था. लेकिन 40 फीसदी छात्रों ने पैसे को सबसे ज्यादा महत्व दिया. 

ग्रेजुएशन के बाद बदला जवाब
हैप्पीनेस की स्केल पर इन छात्रों की खुशी को ग्रेजुएशन के दौरान और उसके 1 साल बाद जब नापा गया तो जिन छात्रों ने पैसे को ज्यादा महत्व दिया था. उनकी जिंदगी में खुशी कम थी. अगर आप जिंदगी में सिर्फ पैसे कमाने के पीछे भागते हैं तो इसका असर आपकी मेंटल हेल्थ पर भी हो सकता है. दुनिया भर में हुई तमाम रिसर्च यह बताती है कि अगर आपके पास अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए पैसा है तो आप खुश हो सकते हैं, लेकिन अगर आप के पास बहुत ज्यादा पैसा है तो इसका मतलब ये नहीं कि आप कि खुशी का पैमाना भी भरा हुआ होगा.

कैंसर जैसी बीमारी की वजह बन सकता है दुख
मनोवैज्ञानिक डॉक्टर भावना वर्मा ने बताया कि जब हम अपने लिए और अपनों के लिए वक्त निकालते हैं, तब हम ज्यादा खुश रहते हैं. जिंदगी में खुशी ज्यादा मायने रखती है क्योंकि जब हम खुश रहते है तो हमारे शरीर में ऐसे हारमोंस रिलीज होते हैं, जो हमारी सेहत को भी दुरुस्त रखते हैं. जबकि दुखी होने की वजह से ऐसे हार्मोन रिलीज होते हैं जिसकी वजह से दिल की बीमारियों से लेकर कैंसर तक हो सकता है.

ऐसे समय में लोग होते हैं सबसे ज्यादा खुश
रिसर्च के दौरान अमेरिका के 12000 लोगों के बीच एक सर्वे किया गया, जिसमें पता चला कि आपके अकाउंट में कितने पैसे हैं, उस बात से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. लेकिन अगर हाथ के हाथ में थोड़े से पैसे हैं जिनसे आप जरूरत की चीजें खरीद सकते हैं तो आप ज्यादा संतुष्ट और खुश होते हैं.

खुशी के पैमाना पर आप कहां हैं ?
इस रिसर्च मैं एक रोचक तथ्य यह भी निकल कर सामने आया कि यह बात बहुत मायने रखती है कि आपके पास जो पैसे हैं आप उसे कैसे खर्च करते हैं. यानी अगर आप अपने पैसों को मैटेरियलिस्टिक चीजों पर खर्च करते हैं तो आप खुशी के पैमाने पर नीचे होंगे और अगर आप उन्हीं पैसों को अनुभव के लिए खर्च करते हैं जैसे किसी ट्रक पर जाना दोस्तों के साथ घूमना आया परिवार के साथ किसी अच्छी जगह पर जाकर खाना खाना तो आपकी जिंदगी में खुशी का भाव ज्यादा होगा.

बांटने से बढ़ती हैं खुशियां
खुशी का अहसास आपकी जिंदगी में तब ज्यादा बढ़ जाता है जब आप दूसरों के साथ खुशियां बांटना शुरू कर देते हैं. हैप्पीनेस कोच विभा गुरटू ने बताया कि सिर्फ पैसों से खुशी नहीं मिलती इसका सबसे बड़ा उदाहरण 70 वर्ष के Buddhist monk मैथ्यू रिचर्ड हैं, जिन्हें दुनिया का सबसे खुश व्यक्ति माना जाता है. मैथ्यू रिचर्ड आखिरी बार 1991 में दुखी हुए थे, जब उनके गुरू की मौत हुई थी. आपको जानकर हैरानी होगी कि मैथ्यू की खुशी से प्रभावित होकर अमेरिका की विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी ने उन पर 12 वर्षों तक एक रिसर्च किया. 

इस रिसर्च के दौरान उनके सिर पर 256 सेंसर्स लगाए गए. वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पता लगाया कि जब मैथ्यू दया पर आधारित Meditation करते हैं तो उनके दिमाग में गामा तरंगे पैदा होती हैं. मैथ्यू के ब्रेन स्कैन के दौरान गइन तरंगो को रिकॉर्ड किया गया. ये तरंगे चेतना, ध्यान और याद्दाश्त से जुड़ी हुई हैं. वैज्ञानिकों ने किसी इंसान के दिमाग में पहली बार इस तरह की तरंगों को रिकॉर्ड किया.

इस देश में GDP नहीं GNH की गणना की जाती है
खुशियों को धन और दौलत से जोड़ कर देखा जाता है. यहां तक कि देशों के मामले में भी ऐसा ही होता है. जिस देश का GDP जितना ज्यादा होता है, उसे उतना ही खुशहाल माना जाता है. लेकिन भारत के पड़ोसी देश भूटान में GDP को खुशी का पैमाना नहीं माना जाता है, बल्कि वहां GNH (Gross National Happiness) की गणना की जाती है. वर्ष 1971 में भूटान ने GDP के फॉर्मूले को मना कर दिया था. इसकी जगह का फॉर्मूला अपनाया गया है. GNH  के तहत आम लोगों के आध्यात्मिक, शारीरिक और सामाजिक विकास की गणना की जाती.

खुश कैसे रहा जाए?
अब सवाल है कि खुश कैसे रहा जाए? हर कोई खुश रहना तो चाहता है, लेकिन वह यह नहीं जानता कि आखिर खुशी मिलेगी कैसे? 2013 में छपी एक स्टडी के मुताबिक, अजनबियों से बात करने से खुशी मिलती है तो आप भी अजनबियों से बात करना शुरू कर दीजिए. व्यक्तित्व और मनोविज्ञान बुलेटिन की एक स्टडी के मुताबिक, पुरानी यादें अक्सर लोगों को खुशी देती हैं. इन्हें सोचकर हमें सकारात्मक एहसास होता है और हम खुश होते हैं. इसलिए आप भी पुरानी यादें ताजा करने के लिए पुराने एलबम पलटना शुरू कर दीजिए. हो सके तो डायरी जरूर लिखिए और अपनी डायरी में रोज होने वाली सकारात्मक घटनाओं को लिखिए. 

खुश रहने के लिए करने होंगे ये काम
जर्नल ऑफ हैप्पीनेस के अनुसार पियानो बजाना, चेस खेलना, डांस करना जैसी आदतें हमारी खुशी बढ़ाती हैं, इसलिए अपना हुनर पहचानिए और खुश रहिए. खुश रहने के लिए उज्ज्वल रंग पहनना भी जरूरी बताया गया है. ये कहा जाता है कि जो व्यक्ति चटक रंगों के कपड़े पहनता है, वो ज्यादा खुश रहता हैं. अगर आपको खुश रहना है तो अपनी उम्र की चिंता छोड़नी होगी. अमेरिका में एक Opinion poll के परिणाम बताते हैं कि जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाती है, हम ज्यादा खुश और संतुष्ट रहते हैं.

Single व्यक्ति होते हैं सबसे ज्यादा खुश
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी ने बताया कि जो लोग मदद मिलने पर शुक्रिया कहते हैं, वो ज्यादा खुश रहते हैं. इसलिए धन्यवाद कहिए और खुश रहिए. 2012 में मिशिगन यूनिवर्सिटी ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि वो लोग ज्यादा आनंदित और खुश रहते हैं जिन्होंने शादी की है. इसलिए अगर आप भी खुश रहना चाहते हैं तो जल्द से जल्द शादी कर लीजिए। हालांकि इस पर विवाद भी है. खुशियों का असली ठिकाना आपके दिल के अंदर है ना कि आपके बैंक अकाउंट या बटुए में. खुशियां पाने के लिए आप जितना पैसे के पीछे दौड़ेंगे आप उतना थक जाएंगे लेकिन अगर आप अपने अंदर खुशियां ढूंढ लेंगे और अपने परिवार और दोस्तों के साथ यादें संजोएंगे तो आपकी खुशियों का अकाउंट हमेशा भरा रहेगा.

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